अफगानिस्तान आज तक गुलामी की जंजीर नहीं तोड़ पा रहा है. इस देश का इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव से भरा है. आजादी के बाद 102 सालों में इसने 18 बार अपना राष्ट्रीय ध्वज बदला है. 1839 से लेकर साल 1842 तक ब्रिटिश शाही सेनाओं ने अफगानिस्तान में एक भयंकर युद्ध लड़ा. इसके बाद 1919 में एंग्लो-अफगान संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद इसे ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली. अफगानिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस 19 अगस्त को मनाता है.
25 सितंबर, 1996 को काबुल पर तालिबान का कब्जा होने से बवाल मच गया. राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद प्रमुख प्रतीकात्मक सवाल यह था कि क्या अफगानी राष्ट्रीय ध्वज होगा या तालिबान का झंडा लहराएगा. झंडों के लिए लड़ाई जलालाबाद में शुरू हुई, जब प्रदर्शनकारियों ने तालिबान के सफेद झंडे की जगह अफगानी तिरंगे झंडे का इस्तेमाल किया. संघर्ष में तालिबान द्वारा 3 लोगों की हत्या कर दी गई, देश का आधिकारिक झंडा अब तालिबान के खिलाफ विरोध का प्रतीक है.
102 साल में अफगानिस्तान के ब्रिटेन से पूरी तरह स्वतंत्र होने के बाद से, इसका झंडा कम से कम 18 बार बदला गया है. पिछले 100 वर्षों में अफगानिस्तान का झंडा कैसे विकसित हुआ इसकी कहानी दिलचस्प है. केवल साल 1919 में ही इसने 6 बार अपने झंडे में बदलाव किया. अफगानिस्तान ने अपनी पहचान पाने के लिए विभिन्न झंडे लहराए. अफगान इतिहास में झंडों का बार-बार बदलना परिवर्तनशील समाज का उदाहरण है. झंडों की यह विविधता अफगान समाज की विविधता को प्रदर्शित करती है.
अधिकांश अफगान झंडों में तीन रंगों को देखा गया. काला, सफेद, और हरा. अफगानिस्तान ने आजादी के बाद दो बार काले झंडों का भी प्रयोग किया. अफगान झंडों में अधिकतर लाल, नीला और और सफेद रंग देखा गया. लाल लगभग सभी अफगान झंडों का मुख्य रंग रहा है. सफेद रंग ‘तालिबान के विश्वास और सरकार की पवित्रता’ का प्रतीक है.
साल 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर कब्जा जमाया. इसके बाद उसने वहां अपने तरीके से नियम बनाए और अपने मन के मुताबिक कानून लागू करना शुरू कर दिया. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दो साल होने वाले हैं. अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से पूरा देश गरीबी में चला गया है. तालिबानियों ने महिलाओं को नए-नए फरमान देना शुरू कर दिया है. यहां महिलाओं और प्रेस की आजादी को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है.