अमरिंदर ने विधायकों-सांसदों को लंच पर बुलाया, सिद्धू को न्यौता नहीं?

रणघोष अपडेट. पंजाब से 

ऐसा लगता है कि पंजाब में कांग्रेस के झगड़े की कहानी बहुत लंबी चलने वाली है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 21 जुलाई को सांसदों और विधायकों को लंच पर बुला लिया है। ख़बर ये है कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए नवजोत सिंह सिद्धू को इसमें शामिल होने का न्यौता नहीं दिया गया है। पंचकुला में यह लंच रखा गया है। दूसरी ओर, सिद्धू के समर्थकों को जश्न जारी है। अमरिंदर ने बीते शुक्रवार को पत्र लिखकर कहा था कि पार्टी हाईकमान पंजाब के मामलों में जबरन दख़ल दे रहा है। तीन महीने से चल रहे इस सरहदी सूबे के सियासी संग्राम में रविवार रात को जब नवजोत सिंह सिद्धू को सूबे की कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का फ़ैसला हुआ तो लगा कि कुछ दिन में सब सुलझ जाएगा। लेकिन हालात इसकी गवाही देते नहीं दिखते।

कैप्टन की परवाह नहीं 

कैप्टन सिद्धू को अध्यक्ष बनाने का पुरजोर विरोध भी कर चुके थे लेकिन हाईकमान ने उनके विरोध को नकारते हुए सिद्धू के नाम पर मुहर लगा दी। इसके अलावा पार्टी ने जो चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें भी कैप्टन की पसंद की अनदेखी की गई है। तो सवाल यह है कि क्या हाईकमान अब कैप्टन के बजाय सिद्धू में ही पंजाब कांग्रेस का भविष्य देख रहा है। अमरिंदर ने सिद्धू को अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए हिंदू अध्यक्ष वाला दांव चला था, उसमें उन्होंने वरिष्ठ नेताओं मनीष तिवारी और विजय इंदर सिंगला का नाम आगे बढ़ाया था जबकि दलित वर्ग से राजकुमार वेरका और संतोष चौधरी को वह कार्यकारी अध्यक्ष बनवाना चाहते थे। लेकिन पार्टी ने इनमें से किसी को संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं दी। सिद्धू साढ़े चार साल पहले कांग्रेस में आए हैं जबकि कैप्टन लंबा वक़्त पार्टी में गुजार चुके हैं। एक बड़ी बात यह है कि टिकट बंटवारे में इन दोनों नेताओं के बीच जबरदस्त खींचतान होगी और इसका नुक़सान पार्टी को हो सकता है।नवजोत सिंह सिद्धू को रोकने के लिए कैप्टन ने अपने सियासी विरोधी प्रताप सिंह बाजवा का भी नाम आगे बढ़ाया लेकिन शायद हाईकमान ‘सब कुछ’ तय कर चुका था।

मुश्किल हालात 

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को चुनाव में जीत दिलाने की है। लेकिन इनके सियासी रिश्तों को देखते हुए लगता नहीं कि सरकार और संगठन साथ आ पाएंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पंजाब में कांग्रेस की नाव डूबनी तय है और अगर दोनों नेता मिलकर लड़े तो फिर से कांग्रेस राज्य की सत्ता में आ सकती है।

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