2021 की शुरूआत का दूसरा दिन है। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। मौजूदा हालात को देखते हुए हम खुद को बदल लेना चाहिए। किसान आंदोलन से किसी को कुछ मिलने वाला नहीं है। ना ही वे हमारा कुछ बिगाड़ सकते हैं। थक हारकर वापस खेतों में लौट जाएंगे। उनकी मजबूरी है। पापी पेट का सवाल है। सरकार से कभी नहीं टकराना चाहिए। वह सबकुछ है। सबसे बड़ी बात वह कभी गलत नहीं हो सकती।
गौर करिए जब किसान भारत बंद कर रहे थे। उससे पहले ही आपको न्यूज़ चैनलों ने भारत में बंद कर दिया है। चैनलों के बनाए भारत में बेरोज़गारी का मुद्दा गायब है। जिनकी नौकरियां चली गई हैं, मीडिया के लिए वह भी कोई मुद्दा नहीं है। आप किसानों के लिए भी मीडिया का यही रवैया होगा।आपकी थोड़ी सी जगह अखबारों के ज़िला संस्करणों में बची है, जहां आपसे जुड़ी अनाप–शनाप खबरें भरी होंगी मगर उन खबरों का कोई मतलब नहीं होगा। उन खबरों में गाँव का नाम होगा, आपमें से दो चार का नाम होगा, ट्रैक्टर की फोटो होगी, एक बूढ़ी महिला पर सिंगल कॉलम खबर होगी बस।ज़िला संस्करण का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि आप किसान अब राष्ट्रीय संस्करण के लायक नहीं बचे हैं। न्यूज़ चैनलों में आप सभी के भारत बंद को स्पीड न्यूज़ में जगह मिल जाए तो आप इस खुशी में अपने गांव में भी एक छोटा सा गाँव–बंद कर लेना। किसानों से चैनलों को कुछ नहीं मिलता है। बहुत से एंकर तो खाना भी कम खाते हैं। उनकी फिटनेस बताती है उन्हें आपके अनाज की मुट्ठी भर ही ज़रूरत है। खेतों में टिड्डी दलों का हमला हो तो इन एंकरों को बुला लेना। एक एंकर तो इतना चिल्लाता है कि उसकी आवाज़ से ही सारी टिड्डियां पाकिस्तान लौट जाएंगी। आपको थाली बजाने और डीजे बुलाने की ज़रूरत नहीं होगी।आज भी दो–चार अफवाहों से आपको भीड़ में बदला जा सकता है। व्हाट्सएप्प के नंबरों को जोड़कर एक समूह बनाया गया। फिर आपके फोन में आने लगे तरह–तरह के झूठे मैसेज। जो लोग ऐसा कर रहे थे उन्हें पता है कि आपको सांप्रदायिक बनाने का काम पूरा हो चुका है। आप जितने आंदोलन कर लो, सांप्रदायिकता का एक बटन दबेगा और गाँव का गाँव भीड़ में बदल जाएगा। भारत वाकई प्यारा देश है। इसके अंदर बहुत कमियां हैं। इसके लोकतंत्र में भी बहुत कमियां हैं मगर इसके लोकतंत्र के माहौल में कोई कमी नहीं थी। मीडिया के चक्कर में आकर इसे जिन तबकों ने खत्म किया है, उनमें से आप किसान भाई भी हैं। किसानों के पास कभी भी कोई ताकत नहीं थी। एक ही ताकत थी कि वे किसान हैं। किसान का मतलब जनता हैं। किसान सड़कों पर उतरेगा, यह एक दौर की सख्त चेतावनी हुआ करती थी, हेडलाइन होती थी। अखबार से लेकर न्यूज़ चैनल कांप जाते थे। आपको इन चैनलों ने एक सस्ती भीड़ में बदल दिया है। आप आसानी से इस भीड़ से बाहर नहीं आ सकते। यकीन ना हो तो कोशिश कर लें। मोदी जी कहते हैं कि खेती के तीन कानून आपकी आज़ादी के लिए लाए गए हैं। इस पर पक्ष–विपक्ष में बहस हो सकती है। बड़े–बड़े पत्रकार जिन्होंने आपके खेत से फ्री का गन्नातोड़ कर खाते हुए फोटो खींचाई थी, वे भी सरकार की तारीफ कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं कि क्यों भारत बंद करते हैं, आप इन्हीं एंकरों से खेती सीख लीजिए। उन्हीं से समझ लीजिए।शास्त्री जी के एक आह्वान पर आपने जान लगा दी। उन्होंने एक नारा दिया जय जवान–जय किसान, उनके बाद से जब भी यह नारा लगता है कि किसान की जेब कट जाती है। नेताओं को पता चल गया कि हमारा किसान भोला है। भावुकता में आ जाता है।
देश के लिए बेटा और अनाज सब दे देगा। आपका यह भोलापन वाकई बहुत सुंदर है। आप ऐसे ही भोले बने रहिए। सब न्यूज़ चैनलों के बनाए प्यादों की तरह हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा। बस जब भी कोई नेता जय जवान–जय किसान का नारा लगाए, अपने हाथों से जेब को भींच लीजिए। यह लेख खेती के कानूनों के बारे में नहीं है। उस मीडिया संस्कृति के बारे में हैं, जहां एक फिल्म अभिनेता की मौत के बहाने बालीवुड को निशाने बनाने का तीन महीने से कार्यक्रम चल रहा है। आप सब भी वही देख रहे हैं। आप सिर्फ यह नहीं देख रहे हैं कि निशाने पर आप हैं।