आईजीयू प्रबंधन ने माना..

आईजीयू में एक लॉबी नहीं चाहती सबकुछ बेहतर चले इसलिए स्थापना से आज तक रचते आ रहे साजिशें


– आईजीयू में हो रही भर्ती में कोर्ट से राहत नहीं मिली तो मीडिया की आड लेकर करने लगे झूठा प्रचार


रणघोष अपडेट. रेवाड़ी


 जब से गांव मीरपुर में इंदिरा गांधी यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई है। उसी समय से लेकर आज तक एक लॉबी इस तरह सक्रिय है कि वह तमाम तरह के बेहतर प्रयासों को अपनी साजिशों के तहत रूकवाने में जुटी रहती है। इसलिए समय पर ना आईजीयू को विकसित करने के लिए आए बजट का पूरा इस्तेमाल हो पाता है और ना हीं समय पर विभिन्न पदों पर भर्तियां हो पाती हैं। इसी वजह से पिछले 5-10 सालों में आईजीयू को जिस स्वरूप में नजर आना चाहिए था। उस आधार पर वह काफी पिछड़ गई हैं। यह मानना है विवि प्रबंधन का। शुक्रवार को आईजीयू कैंपस में अधीक्षक पद के लिए साक्षात्कार की प्रक्रिया हुईं। कोरोना का हवाला देकर पहले उसे स्थगित करने का प्रयास किया गया। यह नहीं बताया गया कि पंजाब- हरियाणा हाई कोर्ट इस साक्षात्कार प्रक्रिया को लेकर अपनी अनुमति दे चुका है। पांच दिन पहले इसे रूकवाने के लिए कोर्ट में दायर की गई याचिका नामंजूर हो गई थी। प्रबंधन ने माना कि  मीडिया में आई एक तरफा जानकारी का समय पर जवाब नहीं दिए जाने से आईजीयू के कामकाज की नकारात्मक छवि अपनी जगह बना लेती है। रणघोष ने इस बारे में जब विवि प्रबंधन से विस्तार से बातचीत की तो तस्वीर एकदम अलग ही नजर आईं। प्रबंधन के मुताबिक 2015 में एक पॉलिसी निर्धारित हुई थी। जिसके तहत आईजीयू जब भी विभिन्न पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करेंगी उसमें 75 प्रतिशत खुली भर्ती और 25 प्रतिशत प्रमोशन के आधार पर नियुक्त किए जाएंगे। इस पॉलिसी के खिलाफ एक लॉबी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। पहले सिंगल बैंच उसके बाद डबल बैंच ने उसे खारिज कर दिया। प्रबंधन ने इसी पॉलिसी को आधार बनाते हुए जब भी भर्तियां निकाली। यह लॉबी किसी ना किसी बहाने से कोर्ट में पहुंच जाती थी जिस कारण आज तक समय पर भर्तियां नहीं हो पाईं। शुक्रवार को अधीक्षक पद को लेकर जो साक्षात्कार हो रहे हैं उसे भी रूकवाने के लिए तीन बार कोर्ट में याचिका दायर हुई और रिजेक्ट भी हो गईं। प्रबंधन का कहना है कि जब कोर्ट से राहत नहीं मिलती है यह लॉबी सोशल मीडिया एवं मीडिया का सहारा लेकर झूठी जानकारियों से यूनिवर्सिटी की छवि को धूमिल करने का खेल करना शुरू कर देती हैं। पिछले दिनों ऐसा किया गया। प्रबंधन ने हैरानी जताई कि कुछ कर्मचारी आईजीयू स्थापना के कुछ समय बाद गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी हिसांर से डेपुटेशन पर आकर यहां तीन प्रमोशन भी ले चुके हैं। वे चाहते हैं कि अन्य कोई डेपुटेशन पर नहीं आए। हमने उन्हें भी अधीक्षक पद पर अप्लाई करने के लिए छूट दी लेकिन उन्होंने आवेदन नहीं किया। पता चला इस पद के लिए शैक्षणिक योग्यता में कम से कम 50 प्रतिशत अंक जरूरी होने की अनिवार्यता को ही वे पूरा नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में बताइए आईजीयू प्रबंधन कहां गलत है। दूसरा प्रबंधन ने कुछ सीटों को प्रमोशन के आधार पर अभी खाली रखा है। अगर आईजीयू में मेन पॉवर को मजबूत नहीं किया गया तो कोई भी कार्य सुचारू रूप से चल हीं नहीं पाएगा।

आईजीयू में आधे से ज्यादा प्रोफेसर करते धड़ेबाजी

आईजीयू की अंदरूनी हकीकत यह है कि हर माह एक से दो लाख रुपए प्रति माह वेतन लेने वाले जूनियर- सीनियर्स प्रोफेसर्स में अधिंकाश इस आईजीयू की गरिमा और स्तर को बेहतर बनाने की बजाय आपसी गुटबाजी के चलते अपने हितों की लड़ाई लड़ते रहते हैं। इसलिए आईजीयू का शुरूआत से लेकर आज तक का शैक्षणिक रिकार्ड देखा जाए तो बहुत ही कमजोर रहा है। कुछ प्रोफेसर्स पर तो आपसी लड़ाई के चलते गंभीर आरोप भी लगे हैं जिसकी अभी भी जांच चल रही है। कुल मिलाकर जिन पर बच्चों के बेहतर भविष्य की जिम्मेदारी है वे अपने  निजी स्वार्थ के लिए इस विवि को राजनीति अखाड़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।   

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