आखिर हम कब तक भगवान श्री राम को अंधेरे में रखकर दीवाली मनाते रहेंगे..

ऐसे कितने रामभक्त है जो यह दावा कर सकते हैं कि वे अपने घर में माता-पिता का पूरा ख्याल रखते हैं, नारी का सम्मान उनके लिए सर्वोपरि है। बेटा- बेटी में भेदभाव उनके लिए पाप है। जिस पद पर कार्यरत है या व्यवसाय चलाते हैं उसकी गरिमा और पवित्रता को दूषित नहीं होने देते। बात दीवाली की हो रही है इसलिए सवाल खुद को रामभक्त कहलाए जाने वालो से ही किया जाएगा।

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


क्या कोई भक्त यह प्रमाणित कर सकता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राक्षस रावण का वध कर जब 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या लौटे तो आसमान में जमकर आतिशबाजी हुईं। बहुत बैचेन करता है यह सवाल आखिर हम सबकुछ जानते हुए अपनी हरकतों से बाज नहीं आए। सरकार चलाने वालों की मजबूरी समझी जा सकती है उन्हें अपने वोट बैंक की मर्यादा बनाए रखने के लिए  आसमान और हवाओं में जहरीला धुआं छोड़ने के लिए 2 घंटे पटाखे चलाने की छूट देनी पड़ी। यानि गुड खाइए और गुलगुले से परहेज रखिए का संदेश देने में भी वे नहीं चूके। यहां किसी पार्टी या नेता की कोई गलती नहीं है। वे वहीं करेंगे जो उन्हें कुर्सी पर बनाए रखे। अब आइए मुद्दे पर। हम दीवाली क्यों मनाते हैं वह इसलिए कि यह पर्व हमें असत्य पर सत्य, पाप पर पुण्य की विजय का संदेश देता है। मर्यादा का पालन करना सीखाता है। समाज में सभी को सम्मान और समानता से जीने का अहसास कराता है। महल से लेकर गरीब की कुटिया में खुशियों के दीपक से निकलने वाली लौ उम्मीदों की रोशनी बिखेरती नजर आए। यही भावना और संवेदना ही तो हम चाहते हैं। हकीकत में क्या कर रहे हैं। यह भी जान ले। इस पर्व के आने की खुशी में एक दूसरे को तरह- तरह की मिठाई, उपहार देते हैं। अधिकतर किसे देते है गौर करिए। सालभर में किसने किसके हितों की चिंता की, आने वाले दिनों में कौन किसके काम आ सकता है या फिर कोई किसी मसले पर नाराज हो गया हो और भविष्य में उसकी जरूरत पड़ेगी उसे मनाने के लिए यह पर्व छोटे- बड़े उपहारों के रास्ते इस तरह की दूरियों को खत्म करने में बहुत काम आता है। बताइए ऐसे कितने लोग हैं जो मिठाई एवं उपहार लेकर किसी गरीब की कुटिया का दरवाजा खटखटाते हैँ। ऐसे कितने भक्त है जो अपनी माचिस से एक दीया सीमा पर तैनात जवान की हिफाजत के लिए जलाते हैं। ऐसे कितने रामभक्त है जो यह दावा कर सकते हैं कि वे अपने घर में माता-पिता का पूरा ख्याल रखते हैं, नारी का सम्मान उनके लिए सर्वोपरि है। बेटा- बेटी में भेदभाव उनके लिए पाप है। जिस पद पर कार्यरत है या व्यवसाय चलाते हैं उसकी गरिमा और पवित्रता को दूषित नहीं होने देते। बात दीवाली की हो रही है इसलिए सवाल खुद को रामभक्त कहलाए जाने वालो से ही किया जाएगा। बताइए जब सबकुछ जानते हुए भी कोरोना वायरस अभी तक किसकी वजह से बेकाबू है।  पर्यावरण पर प्रदूषण का खतरा मंडराया हुआ है। इसके बावजूद हमने दीवाली पर आसमान को पटाखो के शोर से और निकलने वाले जहरीले धुआं से दूषित करने में कोई कसर छोड़ी हो। ऐसा सभी ने नहीं किया लेकिन ऐसा करने वालों को रोकने की हिम्मत भी नहीं दिखा सके। पटाखे कैसे तैयार होकर बाजार के रास्ते घरों में पहुंच गए। इसका सवाल सरकार चलाने वालों को देना चाहिए कि वे अपनी दोगली मानसिकता से यह खेल खेलना बंद करें। कायदा यह बनता है कि जिसे पटाखे चलाने का शौक है तो वह पौधे भी लगाए। यह हरगिज नहीं होना चाहिए हरकतें कोई ओर करिए और उसकी कीमत सभी को चुकानी पड़े। जिम्मेदारी- जवाबदेही बराबर तय होनी चाहिए। यकीन मानिए जिसने  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन को करीब से महसूस किया है उसकी भावनाएं उस जरूरतमंद से जरूर जुड़ी होगी। शबरी के झूठे बेर खाकर श्रीराम ने यही महसूस कराया जीवन में प्रेम एव  मानवता- इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं। अगर सच में हम राम को मानते हैं तो फिर समाज जाति- धर्म में क्यों बंट गया है। घर- मंदिर में सुबह शाम पूजा करते हैं तो फिर घरेलु हिंसाओं के बढ़ते मामले क्या बता रहे हें। राम- लक्ष्मण- भरत भाईयों में एक दूसरे के प्रति त्याग की बात करते हैं तो फिर घरों में बंटवारें की दीवार क्यों खड़ी हैं। आखिर एक ऐसा कोई छोटा- बड़ा कोई उदाहरण तो बताइए जिस पर हम गर्व कर सके कि सचमुच में हम दीवाली मनाते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो मेहरबानी करके अपने बच्चों को श्रीराम के बारे में बताना बंद कर दीजिए। उन्हें बताइए यह दीवाली इसलिए मनाते हैं। इसी बहाने घर- बाहर की सफाई हो जाती है। नए कपड़े खरीदते हैं। तरह तरह के व्यंजनों का आनंद लेते हैं। जमकर मस्ती का समय मिलता है। एक दूसरे से अपनापन दिखाने का यह बेहतर समय होता है।  भगवान श्रीराम को अंधेरे में रखकर दीवाली मत बनाइए। यही अहसास ही हमारे जीवन में हर रोज हर पल दीवाली की तरह होगा। शुरूआत तो करिए।

 

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