रणघोष अपडेट. नई दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक विवादित फैसले में कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जानकारी प्राप्त करने के लिए कारण या मकसद का खुलासा करना जरूरी है, ताकि आवेदक की प्रामाणिकता सिद्ध हो सके। हालांकि आरटीआई एक्ट की धारा 6(2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदनकर्ता को कोई कारण बताने की जरूरत नहीं है। धारा 6 (2) में कहा गया है, ‘सूचना के लिए अनुरोध करने वाले आवेदक से सूचना का अनुरोध करने के लिए किसी कारण को या किसी अन्य व्यक्तिगत ब्यौरे को, सिवाय जो संपर्क करने के लिए आवश्यक हों, देने की अपेक्षा नहीं की जाएगी। हालांकि जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने एक आदेश में कहा, ‘इस कोर्ट की राय है कि जब कभी आरटीआई एक्ट के तहत सूचना मांगी जाए, इसके पीछे के कारण का खुलासा करना जरूरी है ताकि आवेदक की प्रमाणिकता सिद्ध हो सके। कोर्ट ने राष्ट्रपति भवन में मल्टी-टास्किंग स्टाफ (एमटीएस) की नियुक्ति को लेकर मांगी गई सूचना के संबंध में ये टिप्पणी की। इस एक सदस्यीय पीठ ने ये भी कहा कि कारण न बताने से उन लोगों के साथ अन्य होगा, जिनके बारे में सूचना मांगी गई है। कोर्ट के इस फैसले की पारदर्शिता एवं आरटीआई कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है और इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है।याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने इस तथ्य को छिपाने के लिए याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया कि उनकी बेटी ने भी इस पद के लिए आवेदन किया था। उन्होंने कहा कि ये बात याचिका में नहीं बताई गई है और याचिकाकर्ता खुद 2012 से 2017 तक एड-हॉक पर खुद राष्ट्रपति भवन में काम कर रहे थे। आदेश में कहा गया, ‘इस याचिका में बड़ी चालाकी से इस बात को छिपा लिया गया कि याचिकाकर्ता की बेटी ने भी राष्ट्रपति भवन में एमटीएस पद के लिए आवेदन किया था. बेटी की नियुक्ति नहीं होने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा इन जानकारियों को मांग स्पष्ट रूप से कुछ गलत उद्देश्य की ओर इशारा करता है। आवेदक हर किशन ने साल 2018 में संबंधित नियुक्ति को लेकर जानकारी मांगी थी. हालांकि विभाग ने उन्हें ज्यादातर जानकारी मुहैया करा दी थी, लेकिन एक सवाल का जवाब नहीं दिया जिसमें चुने गए कैंडिडेट का आवासीय पता व उनके पिता के नाम की जानकारी मांगी गई थी। इसे लेकर राष्ट्रपति सचिवालय ने कहा कि इस जानकारी के खुलासे से व्यक्ति के निजता का उल्लंघन होगा क्योंकि यह निजी जानकारी है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि किशन ने इन नियुक्तियों की जांच करने के लिए एक अन्य याचिका भी दायर की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर 10 लोगों की नियुक्ति हुई थी.