हजारों में मिलने वाली जीत सबक है, खुशी मनाइए जश्न नही
रणघोष खास. गुरुग्राम
गुरुग्राम संसदीय सीट पर भाजपा के ताकतवर उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह जिस अंदाज में जीते वह पूरी तरह से उनके राजनीति जीवन में एक सबक के अलावा कुछ नही है। इस जीत पर खुशी मनाइए लेकिन जश्न इसकी इजाजत नही देता। यह ठीक उसी तरह की जीत है जिस तरह क्रिकेट में अंतिम बॉल पर चार या छह रन चाहिए जिसमें क्लीन बोल्ड होने का पूरा खतरा बना रहता है। यहा भाग्य ज्यादा भूमिका में आ जाता है। इस सीट पर राव इंद्रजीत सिंह 77 हजार 594 मतों से विजयी हुए। देखा जाए तो कांग्रेस उम्मीदवार रा बब्बर हारकर भी लोगों के दिलों में जीत दर्ज कर गए। महज 25 दिन इस कांग्रेस प्रत्याशी को इस सीट पर लड़ने के लिए मिले थे। उनका मुकाबला ऐसे धाकड़ नेता राव इंद्रजीत सिंह से था जो लगातार पांच बार सांसद बनते आ रहे थे। राव इस सीट पर वे तीसरी बार सांसद बने हैं। जाहिर है जिन गांवों को राव कई बार देख चुके थे उसका रास्ता भी बब्बर को नही पता था। ऐसे में महज 25 दिनों में अंतराल में भाजपा की एकतरफा जीत को धाराशाही कर उसे बेहद ही कांटे की बनाकर रखना किसी भी सूरत में राव इंद्रजीत सिंह के राजनीति जीवन में सबसे बड़ा सबक है की चुनाव हो या युद्ध अपने प्रतिद्ंदी को कभी कमजोर नही आंकना चाहिए। दूसरा देखा जाए तो यह चुनाव सही मायनों में जनता ने लड़ा है। जो पूरी तरह से धर्म व जातीय गठजोड़ बनकर बीजेपी के लिए चुनौती बन गया। गुरुग्राम सीट पर पहली बार हिंदू- मुस्लिम कार्ड में हार जीत का आधार जातीय समीकरण ने तय किया है जिसमें जाट एवं एसएसीएसटी समाज की राजनीति गणित बनाने व बिगाड़ने में विशेष भूमिका रही है। कुल मिलाकर उम्मीद से कम मतों से मिली जीत का असर चार महीने बाद होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में विशेष तौर से नजर आएगा। राव इस जीत के बाद किस भूमिका में नजर आएंगे यह देखने वाली बात होगी।