मिलिए ऐसे डॉक्टर्स से दिनभर डयूटी करने के बाद रोज रात को तीन घंटे कोरोना पीड़ितों से गुगल मीट करता है
रणघोष का प्रयास है कि लोगों के सामने एक ऐसा उजला पक्ष भी रखा जाए ताकि लोग जान सकें कि इस सिस्टम में सब कुछ बुरा ही नहीं है बल्कि कुछ अच्छा भी है।
रणघोष खास. पूनम यादव
ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और अस्पतालों में बिस्तर को लेकर आज पूरे देश में हड़कंप मचा हुआ है।लोग कोरोना से डरे हुए हैं तो दूसरी तरफ सिस्टम से खासे नाराज भी नजर आ रहे हैं।बीमार लोग अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनमें से अधिकांश भर्ती ही नहीं हो पा रहे हैं।ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर जो अफ़रा तफ़री मची है उसके बारे में जितनी चर्चा की जाये उतनी ही कम है। ऐसे में फिर से सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं।लेकिन इसी सिस्टम में कुछ ऐसे भी लोग काम कर रहे हैं जिनकी भूमिका इस समय किसी महानायक से कम नहीं है। डॉक्टर सुरेंद्र यादव एक ऐसी ही शख्सियत हैं जो कोरोना को मात देने के लिए अपनी टीम के साथ दिन रात जुटे हुए हैं। हरियाणा के जिला नूंह में बतौर मुख्य चिकित्सा अधिकारी काम कर रहे डॉक्टर सुरेंद्र हाल ही में कोरोना से संक्रमित हुए और ठीक होते ही इन्होंने फिर से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को संभालने का काम शुरू कर दिया । मूल रूप से रेवाड़ी के रहने वाले सुरेंद्र यादव ने महेन्द्रगढ़ और रेवाड़ी जिले में लंबे समय तक काम किया है।एक शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में इनकी प्रसिद्धि दूर तक फैली हुई है।अपने काम को लेकर बेहद गंभीर रहने वाले सुरेंद्र यादव आजकल कोरोना की इस दूसरी लहर से लोगों को बचाने में लगे हुए हैं।कोरोना के मरीजों को बचाने की ये जद्दोजहद सिर्फ दिन में ही नहीं बल्कि रात भर भी चलती रहती है।किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए इनकी टीम लगातार बेहतर प्रयास कर रही है। दिन भर की थकान के बाद डॉक्टर सुरेंद्र रोज रात 9 बजे एक गूगल मीट करते हैं जिसमें वो कोरोना से लड़ रहे लोगों को निशुल्क परामर्श देते हैं।इस मीटिंग में प्रतिदिन औसतन 30-40 कोरोना संक्रमित व्यक्ति मौजूद रहते हैं जो देश के अलग अलग हिस्सों से इसमें भाग लेते हैं।सुरेंद्र यादव इन सभी की बातें तसल्ली से सुनते हैं और उन्हें आवश्यक सुझाव भी देते हैं।इसी बीच उनके विभाग का कार्य भी चलता रहता है।ये अक्सर इसी मीटिंग के दौरान ही अपना रात्रि भोज भी लेते हैं और कई बार निवाला अंदर लेने से पहले ही कोई मरीज आपात स्थिति में जुड़ जाता है और ये अपना खाना छोड़कर उसे परामर्श देने लगते हैं। ये सिलसिला रात 11 से 12 बजे तक चलता रहता है। जब कोई मरीज उखड़ती साँसों से इनसे बात करता है तो ये उसे ना केवल सांत्वना देते हैं बल्कि उसके उपचार का मार्ग भी उसे बताते हैं।इस दौरान इनके दो तीन साथी मरीजों की समस्याएँ सुनकर नोट करते रहते हैं और बारी आने पर इनके सामने केस हिस्ट्री रखते हैं।इसके बाद सुरेंद्र यादव इसका अध्ययन करके उचित सलाह देते हैं।वहीं कोई भी कोरोना पीड़ित व्यक्ति मीटिंग में जुड़कर इनसे सीधे भी परामर्श ले सकता है। वैसे तो डॉक्टर सुरेंद्र एक वरिष्ठ सरकारी चिकित्सा अधिकारी हैं और हमारे सिस्टम का ही एक हिस्सा हैं लेकिन इनकी कार्यशैली को देखकर अक्सर लोग कहते हैं कि अगर सरकार में हर अधिकारी सुरेंद्र यादव जैसा हो जाये तो व्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है।कोरोना के इस भयावह दौर में लोगों को सिर्फ ऑक्सीजन और वेंटिलेटर ही नहीं चाहियें बल्कि ऐसे योद्धा भी चाहियें जो इस बुरे दौर में उनकी पीड़ा को सुन सकें और उनकी यथासंभव मदद भी कर सकें।डॉक्टर सुरेंद्र यादव उन्ही योद्धाओं में से एक हैं जो सिस्टम में रहकर सिस्टम को सुधारने का काम कर रहे हैं।