देश एवं समाज में रिश्वत देने वालों व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे व्यक्तियों की भी कमी हो रही है जो बेदाग चरित्र हों। विडम्बना तो यह है कि भ्रष्टाचार दूर होने के तमाम दावों के बीच भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। इन विडम्बनापूर्ण एवं त्रासद स्थितियों से कम मुक्ति मिलेगी, कब हम ईमानदार बनेंगे ? रिश्वतखोरी एवं भ्रष्टाचार से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि-परीक्षा देता है। भ्रष्टाचार ऐसे ही पनपता रहा तो सब कुछ काला पड़ जायेगा, प्रगतिशील कदम उठाने वालों ने और राष्ट्र-निर्माताओं ने अगर व्यवस्था सुधारने में मुक्त मन से ईमानदार एवं निस्वार्थ प्रयत्न नहीं किया तो कहीं हम अपने स्वार्थी उन्माद में कोई ऐसा धागा नहीं खींच बैठे, जिससे पूरा कपड़ा ही उधड़ जाए। रिश्वतखोरी के मामले में भारत पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, जापान, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों से आगे है। भ्रष्टाचार के खिलाफ तमाम आंदोलनों और सरकार की सख्ती के बावजूद रिश्वत के मामलों में भारतीय अपने पड़ोसी देशों को मात दे रहे हैं। विडम्बनापूर्ण है कि बड़े औद्योगिक घराने, कंपनी या कॉर्पोरेट हाउस अपने काम करवाने, गैरकानूनी कामों को अंजाम देने एवं नीतियों में बदलाव के लिये मोटी रकम रिश्वत के तौर पर या राजनीतिक चंदे के रूप में देते हैं। इस बड़े लेवल से अधिक खतरनाक है छोटे लेवल पर चल रहा भ्रष्टाचार क्योंकि इसका शिकार आम आदमी होता है। जिससे देश का गरीब से गरीब तबका भी जूझ रहा है। ऊपर से नीचे तक सार्वजनिक संसाधनों को गटकने वाला अधिकारी-कर्मचारी, नेता और दलालों का एक मजबूत गठजोड़ बन गया है, जिसे तोड़ने की शुरुआत तभी होगी, जब कोई सरकार अपने ही एक हिस्से को अलग-थलग करने की हिम्मत दिखाए। यह समय कहने का नहीं बल्कि करने का है। लाखों की संख्या में लोग लोकसेवकों को रिश्वत देने के लिए बाध्य होते हैं और इस बुराई का सर्वाधिक असर गरीब लोगों पर पड़ता है। ईमानदारी अभिनय करके नहीं बताई जा सकती, उसे जीना पड़ता है कथनी और करनी की समानता के स्तर तक।