त्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है, पर सियासी पारा बढ़ने लगा है। आम आदमी पार्टी (आप) के विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद एआईएमआईएम ने भी बिहार मॉडल को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। इन पार्टियों की दस्तक के बाद यूपी में नए राजनीतिक समीकरण उभरने तय हैं। इसका नुकसान तीसरी और चौथी पार्टी की लड़ाई लड़ रहे दलों को हो सकता है। ऐसे में विपक्षी दलों का गणित भी बिगड़ सकता है।
बिहार विधानसभा चुनाव में छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पांच सीट जीतने में सफल रही है। यही मॉडल पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी यूपी में भी आजमाना चाहते हैं। उनकी कोशिश सफल रहती है, तो बिहार की तरह कांग्रेस और कुछ सपा व बसपा को भी नुकसान होगा। बिहार की तरह ओवैसी और बसपा गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं, तो कांग्रेस व सपा को नुकसान होना स्वाभाविक है।
यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालें तो करीब 90 फीसदी वोट भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस को मिला है। एआईएमआईएम ने इस चुनाव में 38 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई थी, पर एक फीसदी से भी कम वोट मिला। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि छोटे छोटे दलों को मिलने वाला यह आधा-आधा फीसदी वोट एक साथ जुड़ता है, तो निर्णायक हो जाता है।
बिहार चुनाव के बाद मुस्लिम मतदाता खासकर युवाओं में असदुद्दीन ओवैसी की पहुंच बढ़ी है। एआईएमआईएम मुस्लिम बहुल सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी, ऐसे में इसका सीधा नुकसान विपक्षी पार्टियों को होगा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ओवैसी और बसपा का गठबंधन होता है, तो बिहार की तरह विपक्ष के वोट काटकर एआईएमआईएम यूपी में भी सीट जीत सकती है।
भाजपा के वोट में सेंध की आशंका:
‘आप’ का ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में ज्यादा असर होगा। आप कुछ हद भाजपा के वोट में सेंध लगा सकती है। पर वह नुकसान कांग्रेस, सपा और बसपा को ही करेगी। इससे गैर भाजपा वोट विभाजित होने का खतरा बढ़ जाएगा। आम आदमी पार्टी भी एआईएमआईएम और दूसरे दलों के गठबंधन में शामिल होती है, तो विपक्षी दलों को राजनीतिक नुकसान बढ़ जाएगा। एआईएमआईएम पश्चिम बंगाल में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है पर तस्वीर अभी बहुत साफ नहीं है। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेता ने कहा कि बंगाल में छोटी पार्टियों के लिए बहुत ज्यादा संभावना नहीं है। क्योंकि, करीब 96 फीसदी मतदाता तृणमूल, लेफ्ट, भाजपा और कांग्रेस में विभाजित है।