शिशुशाला स्कूल बेचने वालों का काम तमाम, चपेट में आएंगे वारे न्यारे करने वाले
-डीसी अशोक कुमार गर्ग- एडीसी स्वाप्निल रविंद्र पाटिल की ईमानदार सोच से शिशुशाला स्कूल बेचने का काला सच उजागर हुआ
– दैनिक रणघोष लगातार 2018 से स्कूल बेचने वालों का सार्वजनिक तौर पर पर्दाफाश करता आ रहा था
रणघोष अपडेट. रेवाड़ी
शहर की सबसे पॉश कालोनी मॉडल टाउन में चल रहे शिशुशाला स्कूल की जमीन को बेचने का काला सच अब प्रशासनिक स्तर पर भी साबित हो गया है। डीसी अशोक कुमार गर्ग- एडीसी स्वाप्निल रविंद्र पाटिल की ईमानदार सोच ने एक बार फिर आमजन का सिस्टम् के प्रति भरोसा कायम कर दिया है। यहां बता दें कि पिछले चार सालों से स्कूल को बेचने का खेल खेला जा रहा था जिसमें शहर के प्रोपर्टी डीलर्स, स्कूल को संचालित कर रही हरिज्ञान एजुकेशन सोसायटी के आधे से ज्यादा सदस्य, तहसील व प्रशासन स्तर पर कुछ अधिकारी एवं फर्म एवं सोसायटी रजिस्ट्रार विभाग के छोटे- बड़े अधिकारी भी शामिल थे। इसलिए जांच अधिकारी स्वाप्निल रविंद्र पाटिल की जांच रिपोर्ट में उन सभी अधिकारियों को भी दोषी माना गया है जिसकी वजह से स्कूल को बेचने के हालात पैदा कर दिए थे। एडीसी ने अपनी जांच में स्कूल जमीन की फर्जी वसीयत तैयार कर उसे बेचने की साजिश बनाने वाली स्कूल की पूर्व प्राचार्य सुनंदा दत्ता, उसके बेटे कर्ण दत्ता एवं वसीयत की जांच किए बिना रजिस्ट्री करने वाले तत्कालीन तहसीलदार के खिलाफ मामला दर्ज करने की सिफारिश की है। साथ ही हरिज्ञान एजुकेशन सोसायटी के उन सदस्यों को भी सोसायटी से बाहर करने को कहा है जिसने सोसायटी के संविधान खिलाफ जाकर स्कूल को बचाने की बजाय बेचने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका निभाईं। इतना ही नहीं फर्म एवं रजिस्ट्रार सोसायटी के कुछ छोटे एवं बड़े अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सीधे सवाल खड़े किए कि उन्होंने सबकुछ जानते ओर समझते हुए भी सोसायटी एक्ट के खिलाफ ही जाकर स्कूल बेचने वालों के इरादों को मजबूत करने का काम किया। इसलिए इस मामले की जांच करने वाले अधिकारियों की मंशा की असलियत सामने के लिए भी अलग से जांच कर उचित कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही जांच में यह सिफारिश की गई है कि मौजूदा हालात में स्कूल का संचालन यथावत एसडीएम के पास होना चाहिए। सरकार एवं प्रशासन चाहे तो इस स्कूल को संचालने के लिए इसे पूरी तरह अपने अधीन लेकर उसका सरकारीकरण कर सकते हैं क्योंकि इस स्कूल की बुनियाद ही सोसायटी के तहत जनहित में ही की गई थी।
आइए जांच रिपोर्ट के आधार पर इस स्कूल के सच को समझे
चार माह से कम समय में इस स्कूल की जांच डीसी अशोक कुमार गर्ग के पास पहुंची थी। उन्होंने एडीसी स्वाप्निल रविंद्र पाटिल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। एडीसी पाटिल ने इस मामले से सभी संबंधित लोगों को जांच में शामिल किया। सभी दस्तावेजों की पूरी तरह पड़ताल की तो हैरान करने वाला खुलासा सामने आया। जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस स्कूल को शांतिदत्ता एवं उनकी बहन चंद्र दत्ता जनसहयोग से मिलकर चला रही थी। 1963 से यह स्कूल बेहतर पोजीशन के साथ चल रहा था। उसके बाद दोनों बहनो ने मिलकर 4 अगस्त 1987 को हरिज्ञान एजुकेशन सोसायटी बनाई जिसमें शहर के मौजिज 7 सदस्यों को शामिल किया। समय के साथ दोनो बहनें बुजुर्ग होती चली गईं। शांति दत्ता ने अपने रिश्तेदारी में सुनंदा दत्ता को स्कूल का प्राचार्य बना दिया और 2001 के आस पास एक वसीयत लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि स्कूल की जमीन पर 375 वर्ग पर बने घर में सुनंदा मेरे बाद रह सकती है। स्कूल की जगह एवं सोसायटी की जगह कभी नहीं बेची जाएगी। यह सोसायटी के एक्ट में भी आता है। इसी आधार पर ही सोसायटी का गठन होता है। सुनंदा दत्ता ने प्राचार्य बनने के बाद सोसायटी के सदस्यों की संख्या धीरे धीरे बढ़ानी शुरू कर दी और ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार के सदस्यों को शामिल करना शुरू कर दिया। उनका इरादा स्कूल में बच्चों की संख्या कम करना और अव्यवस्था का माहौल बनाना था कि हर कोई परेशान होकर स्कूल बेचने के हालात पैदा हो जाए। साथ ही 2017 में सुनंदा दत्ता ने अपने नाम कोई जमीन नहीं होते हुए भी तत्कालीन तहसीलदार से मिलकर महज नगर परिषद की प्रोपर्टी टैक्स की रसीद के आधार पर 4 हजार वर्ग गज स्कूल की जमीन को अपनी दिखाकर बेटे कर्ण दत्ता के नाम कर दी। जिसका डीड नंबर 3702 है। जबकि प्रोपर्टी टैक्स की रसीद पर खुद ही लिखा होता हे कि यह मलकियत का आधार नहीं है और ना हीं रजिस्ट्री के लिए मान्य है। इससे स्पष्ट होता है कि जब सुनंदा खुद ही जमीन की मालकिन नहीं है तो उसने किस आधार पर बेटे के नाम पर कर दी। इसके साथ साथ जो जिम्मेदारी जिला फर्म एवं सोसायटी को निभानी चाहिए थी, उसमें कुछ अधिकारी बजाय सकूल को बचाने के बेचने वालों के साथ खड़े नजर आए। क्योंकि समय रहते इस पर ध्यान दिया जाता तो स्कूल की करोड़ों के नाम पर जमीन की फर्जी तरीके से रजिस्ट्री नहीं होती। सोसायटी का जो संविधान बना हु है। उसकी शर्ते है उनको भी हरिज्ञान एजुकेशन सोसायटी के अधिकांश सदस्यों द्वारा उनके अनुरूप कार्य नहीं किया गया। कई सदस्यों ने तो जमीन के हस्तारण वाले प्रस्ताव पर अपनी सहमति दिखा रखी है जबकि सोसायटी के संविधान में पूरी तरह स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है कि सोसायटी की जमीन को ना बेचा जाए और ना मोरगेज या लीज किया जाए। इतना ही नहीं जांच अधिकारी ने कहा कि जिला रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी के अधिकारियों के खिलाफ राज्य स्तर पर जांच बैठाई जाए जिनकी वजह से स्कूल की संपत्ति को चोर दरवाजे से बेचने का खेल किया जा रहा था। 7 अक्टबूर 2022 को उनसे टिप्पाणी मांगी गई थी लेकिन उन्होंने उचित जवाब नहीं दिया। चंडीगढ़ में बैठे कुछ अधिकारी भी इसमें शामिल है जिसकी वजह से सोसायटी ने समय रहते स्कूल को बचाने में कोई सार्थक प्रयास नहीं किए।