रणघोष खास. प्रदीप नारायण
कृषि से जुड़े तीन बिलों को कोरोना काल में पास करना केंद्र सरकार के लिए मौजूदा हालात में कोरोना से भी बड़ी चुनौती बन गया है। विरोध की गूंज इतनी दूर तक फैल चुकी है कि अब उसे कंट्रोल करना आसान नहीं होगा। दिल्ली सीमा से सटे राजस्थान- पंजाब राज्यों की कांग्रेस सरकार के लिए यह मुद्दा भाजपा पर हमला करने का सबसे बड़ा हथियार है। यह कांग्रेस का स्वास्थ्य ही बताएगा कि वह इसके लिए कितनी मजबूत है। इतना जरूर है कि पिछले 24 घंटों में हरियाणा की राजनीति में उथल पुथल शुरू हो गई हैं। सरकार में भाजपा की सहयोगी 10 सीटों वाली जेजेपी के संस्थापक और नीति निर्धारक पूर्व सांसद डॉ. अजय चौटाला और रणनीतिकार दिग्विजय चौटाला ने बहुत सोच समझकर नपे तुले शब्दों में संकेत दे दिया है कि राजनीति में साथ चलने की कोई उम्र नहीं होती है। वह अवसर देखकर शरीर बदलती है। जेजेपी की जड़ किसान नेता पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की विचारधारा से जुड़ी हुई है। ऐसे में लाजिमी है कि जिस किसान आंदोलन ने देश चला रहे पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह को बैचेन कर दिया तो फिर जेजेपी को उसकी खामोशी बहुत महंगी पड़ सकती है। मंगलवार को केंद्र की किसानों से पहली मीटिंग बेनतीजा निकली। दूसरी 3 दिसंबर को होगी। अगर सरकार पीछे हटती है तो भी उसे राजनीति में कुछ मिलने वाला नहीं है। अगर अड़ी रहती है तो उसे किसान आंदोलन के परिणामों का झेलने के लिए खुद को तैयार करना होगा। दोनो ही परिस्थितियों में घिरी मोदी सरकार पिछले 6 सालों में पहली बार किसानों की मन की बात को समय पर समझने में चूक कर गईं। किसान आंदोलन के पीछे विपक्ष अपनी रोटियां सेंक रहा है। यह जग जाहिर है। राजनीति में हमेशा से ही ऐसा होता आ रहा है। सवाल यह है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने अति उत्साह एवं लगातार मिल रही राजनीति सफलतों के नशे में चूर होकर किसानों को इतने सस्तें ओर हल्के में क्यों ले लिया। वे क्यों भूल गए कि मिट्टी से सने कपड़ों में, चेहरों पर वक्त की झुर्रियों को समेटे ये किसान बिना पढ़े, सूटबुट पहने बिना किसी सुविधा के यह बता सकते हैं कि खेत की मिट्टी फसल को पैदा करने में कितनी हैसियत रख सकती है। ऐसे में उनके नाम पर राजनीति करने वाले कैसे हवा में खेत की माटी को अपने हिसाब से उड़ा सकते हैं। लिहाजा किसानों के इस मिजाज को समझने में भाजपा फेल हो गईं। वह भूल गई कि किसानों के लिए उनके खेत ही भगवान श्री राम का मंदिर है और पैदा होने वाली फसल उनकी मर्यादा। नहीं तो वह समझदारी से कदम उठाते हुए तीनों बिलों की ड्राफ्टिंग तैयार करते समय देश के किसान संगठनों को विश्वास में लेकर विपक्ष के उन दावों को खत्म् कर सकती थी जहां उसे पूंजीपतियों की पार्टी कहकर आरोपित किया जाता है। किसानों का आंदोलन जारी रहा तो आने वाले दिनों में हरियाणा में भाजपा सरकार पर संकट गहरा जाएगा। जेजेपी के समर्थन वापस लेने पर सरकार अल्पत में होगी। उसके पास निर्दलीय विधायकों को अपने पक्ष में करने की चुनौती रहेगी जो मौजूदा हालात में आसान नहीं है। कोई भी निर्दलीय विधायक किसानों को नाराज कर अपनी राजनीति को मजबूत नहीं कर सकता। चरखी दादरी के निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने समर्थन वापस लेकर इसका संकेत दे दिया है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार किसानों के सामने बैकफुट पर आ चुकी है। यह आंदोलन जितना लंबा चलेगा भाजपा उतनी घिरती चली जाएगी। 2019 के चुनाव में भाजपा देश की सरहदों पर डटे जवानों के हौसलों को बढ़ाकर सत्ता में आ गई लेकिन देश का पेट भरने वाले किसानों को समझने में चूक कर गई हैं। इसलिए इसका असर अब आने वाले समय में भाजपा गठबंधन वाली राज्य सरकारों एवं पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव पर साफ तौर से नजर आएगा। विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। बस यही भाजपा के लिए फील गुड करने वाली बात है।