केंद्र को हाई कोर्ट की फटकार : भीख माँगो, उधार लो, चोरी करो, पर ऑक्सीजन दो

अदालत ने पूछा, ‘क्या हो रहा है सरकार सच से रूबरू क्यों नहीं हो रही है?’

अदालत ने अपने आदेश में केंद्र सरकार से कहा,


आप यह नहीं कह सकते कि आप इतना ऑक्सीजन इतने दिन के लिए दे सकते हैं, लोग मरते हैं तो मरें। यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है और एक सार्वभौम सरकार का यह जवाब नहीं हो सकता।

‘कहीं से दो, पर दो’

दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार से कहा, ‘हमें लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी है और हम आदेश देते हैं कि आम भीख मांगें, उधार लें या चोरी करें, जो करना हो करें लेकिन आपको ऑक्सीजन देना है। हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते।’ 

अदालत में मौजूद सरकारी वकील ने कहा कि फ़ाइल ‘आगे बढ़ाई जाने’ लगी हैं तो कोर्ट ने पूछा, ‘नतीजा क्‍या है? हमें इन फाइलों को लेकर फर्क नहीं पड़ता। उद्योग मदद के लिए तैयार है। आपके पास अपनी पेट्रोलियम कंपनियाँ हैं, एअरफोर्स है, हमने कल कई आदेश दिए थे, आपने पूरे दिन क्‍या किया।’

केंद्र को कड़ी फटकार

केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऑक्सीजन सप्लाई 378 मीट्रिक टन से बढ़ा कर 480 मीट्रिक टन कर दी गई है। इस पर अदालत ने कहा, ‘इसका क्या मतलब है? यदि उन्हें 700 मीट्रिक टन चाहिए क्योंकि उनके पास ज्यादा मरीज हैं तो आपको वह देना चाहिए।’ दिल्ली हाई कोर्ट की इस खंडपीठ ने कहा कि ‘स्थिति बहुत ही खराब, हजारों लोगों की मौत हो सकती है क्योंकि हम उन्हें ऑक्सीजन नहीं दे सकते।’ अदालत ने आदेश देते हुए कहा,

हम आपको आदेश देते हैं कि सार्वभौम सरकार के रूप में यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप देश के हर रोगी को उसकी ज़रूरत का ऑक्सीजन दें। यह आपकी ज़िम्मेदारी है, आप यह नहीं कह सकते कि हमारे पास ऑक्सीजन नहीं है, तुम मर रहे हो तो मरो।

बता दें कि पिछले साल घोषित ऑक्सीजन प्लांट अभी तक नहीं लग पाए हैं। कोरोना के हालात और ऑक्सीजन की कमी को लेकर जिस तरह अब एक के बाद एक बैठकें हो रही हैं, फ़ैसले लिए जा रहे हैं यदि उस तरह की जल्दबाज़ी नहीं भी की गई होती और सामान्य प्रक्रिया के तहत भी काम हुआ होता तो शायद ये हालात नहीं बनते। सरकार ने देश के 162 ज़िला अस्पतालों में ऑक्सीज़न प्लांट लगाने की घोषणा की। लेकिन जान बचाने वाली इतनी ज़रूरी चीज के लिए भी सरकारी प्रक्रिया कितनी धीमी है, इसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाइए। 30 जनवरी को देश में संक्रमण के मामले आने के बाद आठ महीने में यानी अक्टूबर महीने में टेंडर निकाला गया और अभी भी सिर्फ़ 33 प्लांट ही लगाए जा सके हैं। यह बात ख़ुद सरकार ही मान रही है। स्वास्थ्य विभाग ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है।

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