एक- एक वोट के लिए बिखर रहा सालों पुराना भाईचारा, जाति कार्ड का चल रहा खेल
रणघोष खास. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट
शहर की नामी शिक्षण संस्था केएलपी कॉलेज के सात साल बाद होने जा रहे प्रबंधन समिति चुनाव आने वाले समय के लिए एक नई तस्वीर प्रस्तुत करने जा रहा है। 4 अप्रैल को कुल 70 कॉलेजियम सदस्यों में 23 के लिए मतदान होगा। शेष 47 पहले ही निर्विरोध घोषित हो चुके हैं।
पहली बार कॉलेजियम सिस्टम से होने वाले इस चुनाव की खास बात यह रहेगी कि सालों पुराना आपसी भाईचारा पूरी तरह दांव पर लग गया है। कुल वोटरों की संख्या के आधार पर 70 कॉलेजियम मेंबर चुनकर नई कार्यकारिणी का गठन करेंगे। 47 निर्विरोध बनने से काफी हद तक आपसी संबंधों का बचाव हो गया। शेष 23 के लिए चुनाव होने हैं जिसमें एक- एक वोट के लिए मारकाट मची हुई है। 15 से 20 सदस्यों को मिलाकर एक कॉलेजियम बनाया गया है। वोट के लिए उम्मीदवार उन सभी ताकतों का इस्तेमाल कर रहा है जो उन्हें जीत दिला सके। मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा धर्म संकट बना हुआ है कि वह किसे मना करे और किस पर अपनी सहमति दे। सबसे बड़ी बात चुनाव में जाति का गणित सबसे ज्यादा हावी हो चुका है। इस चुनाव से पहले सदस्यों में आपसी भाईचारा और संबंध एक दूसरे की ताकत बनते आ रहे थे। अब वोट के लिए तरह तरह की रिश्तेदारी और गिले शिकवों को दूर किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं की जिसके हिस्से में हार आएगी वह आसानी से इसलिए नहीं भूला पाएगा क्योंकि इस छोटे से चुनाव में सबकुछ साफ है कि वोट किस दिशा में इधर उधर हुआ है। इससे पहले जितने भी चुनाव हुए हैं उसमें अलग अलग पदों पर चुनाव लड़ने वालों के अलग से दो धड़े बन जाते थे। एक साथ हजारों मतदाता वोट डालते थे इसलिए गोपनीयता बनी रहती थी। कॉलेजियम सिस्टम में चाहकर भी कोई नहीं छिपा सकता। इस चुनाव का गणित ही इतना छोटा है कि झट पकड़ में आ जाता है। कुल मिलाकर इस चुनाव में हार- जीत से ज्यादा आपसी संबंधों की गरिमा पूरी तरह से दांव पर लग गई है। कौन कितने सहज भाव से हार-जीत को समान तोर पर ले पाता है यह देखने वाली बात होगी।
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