मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और रिमांड के खिलाफ दाखिल याचिका पर बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबी बहस हुई। केजरीवाल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने चुनाव के समय उनके मुवक्किल की गिरफ्तारी को उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करार दिया। वहीं, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कहा कि वह अंधेरे में तीर नहीं चला रहे हैं। उनके पास केजरीवाल के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य हैं। न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें व तर्क को विस्तृत रूप में सुना।
ED की 7 दलीलें
1. क्या हत्या के बाद गिरफ्तारी नहीं होगी
मान लीजिए चुनाव से 2 दिन पहले कोई हत्या कर देता है तो क्या उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। आप हत्या करेंगे और कहेंगे कि मुझे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे मूलभूत ढांचे को नुकसान होगा।
2. अंधेरे में तीर नहीं चला रहे
जांच एजेंसी अंधेरे में तीर नहीं चला रही है। उसके पास आरोपी केजरीवाल को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं। केजरीवाल के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के साथ ही प्रत्यक्ष गवाह भी जांच एजेंसी के पास हैं। साक्ष्यों में व्हाट्सएप चैट, हवाला ऑपरेटर्स के बयान और इनकम टैक्स का डेटा है। इसके अलावा इस घोटाले में शामिल रहे शराब कारोबारी भी सरकारी गवाह बने हैं। उन्होंने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया है।
3. जांच करना एजेंसी का कर्तव्य
अपराधी और आरोपी यह नहीं कह सकते कि हम गुनाह करेंगे और हमें इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, क्योंकि चुनाव हैं। ये हास्यास्पद है। इससे तो अपराधियों को खुलेआम घूमने का लाइसेंस मिल जाएगा। किसी व्यक्ति के खिलाफ साक्ष्य सामने आने पर उसे गिरफ्तार करना जांच एजेंसी का कर्तव्य है, जिसे वह पूरा कर रहे हैं। यह मामला कोई अनोखा नहीं है। कानून की नजर में प्रत्येक आरोपी समान है। आरोपी की गिरफ्तारी के लिए कोई समय विशेष तय नहीं होता।
4. सरकारी गवाहों पर भरोसा जरूरी
जब ऐसे प्रभावशाली लोग अपराध मे शामिल हों तो उनके खिलाफ सबूत जुटाना मुश्किल है, इसलिए कानून यह है कि जब ऐसे लोग शामिल हों तो सरकारी गवाहों पर भरोसा किया जा सकता है। कल अगर हमें लगेगा कि इसके लिए अन्य लोग भी जिम्मेदार हैं, तो हम उन पर भी कार्रवाई करेंगे।
5. केजरीवाल कैसे साधारण
कोई भी आम आदमी दो वरिष्ठ वकीलों का खर्च वहन नहीं कर सकता। केजरीवाल अपने आप को साधारण व्यक्ति कहते हैं। फिर आप दो वरिष्ठ वकीलों का खर्च कैसे वहन कर रहे हैं। आप साधारण होने का सिर्फ दावा करते हैं। आपकी आर्थिक स्थिति निश्चित तौर पर मजबूत है।
6. आप की संपत्ति पर…
ईडी आपकी कुछ संपत्तियों को लेकर तफ्तीश कर खुलासा करना चाहती है। अगर ईडी ऐसा करती है तो आप कहेंगे की चुनाव के समय ऐसा किया गया और अगर ईडी ऐसा नहीं करती है तो आप कहेंगे कि जांच एजेंसी के पास साक्ष्य नहीं हैं। इसी बात को लेकर ईडी दुविधा में है। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि यह गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका है ना कि जमानत याचिका।
7. रियायत के आधार पर जमानत
संजय सिंह के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश अभी भी कायम है, जो उनकी अवैध गिरफ्तारी को लेकर दाखिल किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। संजय सिंह को केवल जांच एजेंसी द्वारा दी गई रियायत के आधार पर जमानत पर रिहा किया गया है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ईडी के पास साक्ष्य नहीं थे। इसलिए संजय सिंह ने जमानत पाई है।
केजरीवाल की तरफ से दलीलें
1. प्रचार से रोकने की साजिश
आम आदमी पार्टी के संयोजक को अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का प्रचार करने से रोकने की साजिश की जा रही है। केजरीवाल को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने के लिए साजिश रची गई है। वह भी लोकतंत्र का हिस्सा और उसके आधारभूत ढांचे से जुड़े हुए हैं।
2. बयान बदलते ही जमानत
मंगुटा चार बार बयान देते हैं। तीन बार के बयानों में केजरीवाल के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाते। मुख्यमंत्री के खिलाफ बयान देने के दस दिन बाद ही मंगुटा को जमानत मिल जाती है। इसी तरह सरथ रेड्डी का बयान भी उनके पहले के बयानों से उलट है। ये अब सत्ताधारी पार्टी के गठबंधन वाले हिस्से में शामिल हो गए हैं।
3.जांच एजेंसी के हाथ खाली
बुच्ची बाबू के बयानों का जिक्र ईडी कर रही है। सरकारी गवाह बने बुच्ची बाबू के बयान के मुताबिक, उन्होंने एक फाइल मनीष सिसोदिया को दी थी। उस वक्त उसी कमरे में केजरीवाल खड़े थे। केजरीवाल के खिलाफ बस इतना ही है। इसके अलावा एजेंसी के हाथ खाली हैं। इसमें केजरीवाल की भूमिका कहां से सामने आती है। यह एक सुनिश्चित मैच है जिसे खेलना चाहते हैं।
4. ईडी को जल्दी क्या थी
पहले समन और गिरफ्तारी के बीच केजरीवाल का बयान ईडी ने दर्ज नहीं किया। आखिर ईडी को इतनी जल्दी क्या थी। धनशोधन अधिनियम की धारा 19 के मुताबिक, गिरफ्तारी का कोई आधार नही है और ना ही कोई साक्ष्य रिकॉर्ड पर मौजूद हैं। बगैर साक्ष्यों के किसी को गिरफ्तार करना आपकी मंशा को दर्शाता है।
5. समय का मुद्दा बहुत गंभीर
आप स्पष्ट रूप से बिना किसी पूछताछ, बयान आदि के गिरफ्तारी कर रहे हैं। यह अनोखी बात है। इस केस में चुनाव से पहले गिफ्तारी करके पार्टी को खत्म करने की कोशिश हो रही है। इस केस में समय का मुद्दा बहुत गंभीर है। यह सुनिश्चित करता है कि याचिकाकर्ता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग नहीं ले पाए। ईडी का पहला समन अक्तूबर में जारी किया गया था। गिफ्तारी मार्च में जाकर होती है।
6. भागने की आशंका भी नहीं थी
धनशोधन अधिनियम की धारा 19 के तहत जमानत आसानी से नहीं मिलती है। इसलिए धारा के तहत गिरफ्तारी दिखाई। इसका एकमात्र उद्देश्य केजरीवाल को अपमानित करना व अक्षम बनाना है। केजरीवाल के भागने की आशंका भी नहीं थी।
7. दो साल बाद हिरासत
धनशोधन की शिकायत दर्ज होने के दो साल बाद केजरीवाल की हिरासत चाहिए, क्योंकि उनसे पूछताछ करनी है। ईडी का यह आधार बेमानी है। ईडी जिस तरह से दलीलें पेश कर रही है वह समझ से परे है। यदि केजरीवाल का नाम पहले सामने आ गई थी, तो ईडी ने इतना लम्बा इंतजार क्यों किया। ईडी खुद कह रही है कि उन्हें बहुत पहले केजरीवाल के इस घोटाले में शामिल होने के साक्ष्य मिल गए थे। फिर ईडी चुप क्यों बैठी थी।