रणघोष अपडेट. नई दिल्ली
उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्र के बढ़ते हमलों के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने शुक्रवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कानून मंत्री किरेन रिजिजू को निशाने पर लिया. वे खुद अगस्त 2021 में सेवानिवृत्त होने से पहले कॉलेजियम का हिस्सा रहे हैं.एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, नरीमन ने रिजिजू की सार्वजनिक टिप्पणियों को निंदनीय बताते हुए कानून मंत्री को याद दिलाया कि अदालत के फैसले को स्वीकार करना उनका ‘कर्तव्य’ है, चाहे वह सही हो या गलत. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम लिए बिना नरीमन ने उन पर भी निशाना साधा. गौरतलब है कि धनखड़ संविधान के बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठा चुके हैं.कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों पर केंद्र के ‘बैठे रहने’ पर उन्होंने कहा क यह ‘लोकतंत्र के लिए घातक’ है और सरकार को अनुशंसाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए 30 दिनों की समय सीमा का सुझाव दिया, अन्यथा सिफारिशें स्वत: ही स्वीकृत मानी जाएं.इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मुंबई विश्वविद्यालय के कानून विभाग द्वारा आयोजित शुक्रवार के कार्यक्रम में बोलते हुए नरीमन ने कहा, ‘हमने कानून मंत्री द्वारा इस प्रक्रिया (न्यायधीशों की नियुक्ति) की आलोचना सुनी है. मैं कानून मंत्री को आश्वस्त करना चाहता हूं कि दो बेहद ही बुनियादी संवैधानिक मूलभूत बातें आपको जानना चाहिए. एक अमेरिका के विपरीत है, जिसमें कम से कम पांच अनिर्वाचित जजों पर संविधान की व्याख्या का भरोसा किया जाता है… और एक बार उन पांच या अधिक जजों ने उस मूल दस्तावेज़ की व्याख्या कर ली है, तो अनुच्छेद 144 के तहत एक प्राधिकरण के तौर पर उसका पालन करना आपका कर्तव्य होता है.’उन्होंने कहा, ‘एक नागरिक के रूप में मैं आलोचना कर सकता हूं, इससे कोई समस्या नहीं है, लेकिन यह कभी नहीं भूलें… आप एक प्राधिकरण हैं और एक प्राधिकरण के तौर पर सही या गलत के फैसले से बंधे हैं.’जस्टिस नरीमन ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन की सभी खामियों को दूर करने के लिए एक संवैधानिक पीठ का गठन करना चाहिए और इसे ‘फिफ्थ जज केस’ कहना चाहिए.उन्होंने कहा कि संविधान पीठ को यह निर्धारित करना चाहिए कि एक बार जब कॉलेजियम द्वारा किसी न्यायाधीश की सिफारिश दोहराई जाती है, तो नियुक्ति एक निश्चित अवधि के भीतर की जानी चाहिए, चाहे वह कितनी भी अवधि हो.उन्होंने कहा कि संविधान ऐसे ही काम करता है और अगर आपके पास स्वतंत्र एवं निडर जज नहीं हैं तो कुछ नहीं बचता.उन्होंने कहा कि अगर यह गढ़ (न्यायालिका) भी गिर जाता है तो हम अंधकार युग के गर्त में चले जाएंगे, जिसमें आरके लक्ष्मण का आम आदमी खुद से केवल एक प्रश्न पूछेगा: यदि नमक का स्वाद खो जाए, तो इसे किससे नमकीन किया जाएगा?