हम इंसानों से अच्छे तो गिद्ध जो मरने के बाद मांस नोंचते हैं..
एक विडिेयो के साथ यह लेख हम इंसानों का असली चरित्र है, जिसकी बदबु के सामने कोरोना वायरस संक्रमण भी कुछ भी नहीं है। सुनिए-पढ़िए और जरूर मंथन करिए।
हम इंसानों में धूर्त, मक्कारी, छल- कपट, पांखड़, लालच, ऊंच- नीच, बेईमानी, चोरी- चक्कारी समेत ना जाने कितने वायरस शरीर के भीतर खून के रास्ते दिलो दिमाग में दौड़ते रहते हैं। मजाल उसके इलाज के लिए किसी ने वैक्सीन बनाई हो जिसे लगवाने के लिए मारामारी मची हो। इन दिनों सोशल मीडिया पर 1953 के दशक में बनी फिल्म फुटपाथ में दिलीप कुमार का डॉयलाग सबकुछ कह रहा है जो इन दिनों हम घरों में दुबक कर महसूस कर रहे हैं। कहने को यह फिल्मी संवाद है जबकि इसका एक एक शब्द इंसान के असल चरित्र को उजागर कर रहा है। हम पूरी तरह से ईमानदार नहीं है। इसे स्वीकार करना ही असल ईमान है। मौजूदा हालात में इंसान कोरोना से कम इंसानी करतूतों से ज्यादा सहमा हुआ है। इलाज-दवाइयों के नाम पर लूट, श्मशान की लकड़ियों में भी खेल, जहां मौका मिला एक दूसरे को लूटना शुरू। हालात यह बन रहे हैं कि सरकारी सिस्टम कोरोना से कम लूटने वालों से ज्यादा लड़ रहा है। कोरोना ने साबित कर दिया है कि हम इंसान गिद्ध से बुरे हो चुके हैं। वह कम से कम मरने के बाद मांस नोंचता है हम जीते जी।
सच में खुद को इंसान देखना चाहते हैं तो दिलीप साहब के डॉयलाग को खून समझकर शरीर में दौड़ा लिजिए सबकुछ ठीक हो जाएगा
सुनिए दिलीप साहब क्या कर रहे हैँ: वे भूख से मर रहे थे हम उनके हिस्से का अनाज ऊंचे दामों में बेचकर अपने खजाने भर रहे थे। जब शहर में बीमारी फैली तो हमने दवाइंया छिपा ली उसके दाम बढ़ा दिए। हमें पता चला कि पुलिस छापे मारने वाली है हमने वहीं दवाइयां गंदे नालों में फिकंवा दी। मगर आदमी की अमानत को आदमी के काम नहीं आने दिया। मुझे अपने बदन से सड़ी हुई लाशों की बू आती है। अपने हर सांस में मुझे दम तोड़ते बच्चों की सिसकियां सुनाई देती है। हम जैसे जलील कुत्तों के लिए आपके कानून में शायद कोई मुनासिफ सजा नहीं होगी। हम इस धरती पर सांस लेने के लायक नहीं है। हम इंसान कहने के लायक नहीं है । इंसानों में रहने लायक नहीं है। हमारे गले घोंट दो। हमें दहकती आगो में जलाओ, हमारी बदबूदार लाशों को शहर की गलियों में फैंकवा दो। ताकि वो मजबूर, गरीब जिनका हमने अधिकार छीना है जिनको घरों में हम तबाही लाए वह हमारी लाशों पर थूके। आराम से जिंदा रहना हर आदमी का अधिकार है। मगर इस तरह दूसरो को लूटना, लोगो की रोटी छीनना, गरीब और मासूम लोगों को व्यापार के नाम पर बर्बाद करना और उसे मार डालना किसी का अधिकार नहीं…। लेख के साथ में विडियो जरूर देखे खुद के लिए।