कोरोना से मात खा गया

हिस्ट्रीशीटर शहाबुद्दीन का ऐसा था खौफ; चंदा बाबू के दो बेटे को जिंदा तेजाब से नहला दिया था, एमएलएए रहते एसपी तक को नहीं बख्शा था


शनिवार को हिस्ट्रीशीटर और पूर्व राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की कोरोना से मौत हो गई। वो बीते सप्ताह कोविड संक्रमित पाए गए थे। जिसके बाद सेहत बिगड़ती गई और आज उन्होंने दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में आखिरी सांस ली। वो दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे। बाहुबली शहाबुद्दीन ने भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया हो लेकिन किए गए अपराध और खौफ आज भी जिंदा हैं। एक समय था जब शहाबुद्दीन के खौफ से लोग सहम जाते थे। अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। सबसे खौफनाक वारदात सिवान के तेजाब कांड को शहाबुद्दीन ने अंजाम दिया था। जिसने एक परिवार को बर्बाद कर दिया। शहाबुद्दीन ने दो सगे भाइयों को तेजाब से नहलाया दिया था जबकि जो तीसरा चश्मदीद भाई था, उसकी कुछ साल बाद गोली मारकर हत्या करवा दी गई थी। 16 अगस्त 2004 का साल था। शाम का वक्त। इस घटना की शुरूआत एक लूटकांड से हुई थी। व्यवसायी राजीव किराना स्टोर पर सात-आठ युवकों ने धावा बोलकर कैश लूट लिया था। उस वक्त दुकान पर राजीव नाम का सख्त बैठा था। खतरा देख उनके भाई गिरीश बगल के बाथरूम में घुसकर तेजाब की बोतल दिखाकर बदमाशों को डराने लगा। लेकिन, कुछ घंटे बाद ही बदमाशों ने धावा बोल दिया और तीन भाई- राजीव, गिरीश और सतीश को सिवान के प्रतापपुर उठाकर ले गए। वहां शहाबुद्दीन की उपस्थिति और कहने पर बदमाशों ने दो भाई को तेजाब से जिंदा नहला दिया गया। दोनों की मौके पर मौत हो गई। जबकि तीसरा भाई किसी तरह एक दो दिन बाद भागने में कामयाब रहा। पिता चंदा बाबू को जब भाई ने बताया वो बेसुध हो गए। खौफ इतना था कि चश्मदीद गवाही से इंकार कर गए और पुलिस एफआईआर नहीं दर्ज की।2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार आई तब शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसा गया। उसी साल शहाबुद्दीन को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद उसे मामले में सजा का दोषी पाते हुए शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा मिली थी। पटना हाई कोर्ट के फैसले पर साल सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने 2004 में हुए दोहरे कत्ल के मामले में ये सजा दी थी।दोहरे हत्याकांड हत्या के चश्मदीद बेटे राजीव को 16 जून 2014 को गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद वो जमानत पर बाहर आ गया। 2016 में जेल से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत को रद्द कर दिया था।शहाबुद्दीन के नाम एक अपराध दर्ज नहीं थे। उसके नाम दर्जनों मामलों में शामिल था। मार्च 2001 में बिहार के सीवान में जिला पुलिस प्रमुख बच्चू सिंह मीणा के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम ने मोहम्मद शहाबुद्दीन को पकड़ने के लिए प्रतापपुर गांव में ऐसा ही ऑपरेशन चलाया था। दरअसल, प्रतापपुर गांव में हुई मुठभेड़ में 10 लोगों की जान गई थी, जिनमें दो पुलिसवाले भी थे। लेकिन शहाबुद्दीन के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छापे के अगले ही दिन राबड़ी देवी सरकार ने उस वक्त के जिला पुलिस प्रमुख बच्चू सिंह मीणा समेत जिले के सभी वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला कर दिया। उस वक्त शहाबुद्दीन गिरफ्त में तो नहीं आया लेकिन पुलिस ने छापे में उसके घर से एके-47 राइफलों समेत हथियारों का जखीरा बरामद किया। इसके बाद शहाबुद्दीन ने यह कहते हुए एसपी को मारने की कसम खाई कि भले ही इसके लिए राजस्थान (एसपी के गृह प्रदेश) तक पीछा करना पड़े। इस घटना से पांच साल पहले जीरादेई से जनता दल का विधायक रहते शहाबुद्दीन ने सीवान के तत्कालीन एसपी संजीव कुमार सिंघल पर कातिलाना हमला किया था। सिंघल उसके खिलाफ 1996 के संसदीय चुनाव से संबंधित एक शिकायत की जांच कर रहे थे।

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