रणघोष अपडेट. देशभर से
ऐसा क्यों है कि चुनाव आते ही डीजल-पेट्रोल के दाम कम होने के कयास लगाए जाने लगते हैं? लेकिन लगता है कि इस बार यह कयास भर नहीं है। खुद केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने रविवार को तेल कंपनियों से भारत में भी तेल की क़ीमतों को कम करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि अगर अंतरराष्ट्रीय तेल की क़ीमतें नियंत्रण में हैं और कंपनियों ने अंडर-रिकवरी बंद कर दी है तो दाम कम किए जा सकते हैं। तो सवाल है कि केंद्रीय मंत्री अब तेल कंपनियों से क्यों आग्रह कर रहे हैं?इस सवाल का जवाब बाद में, पहले यह जान लें कि हरदीप सिंह पुरी ने कहा क्या है। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने वाराणसी में एक कार्यक्रम में कहा, ‘मैं तेल कंपनियों से अनुरोध करता हूँ कि अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें नियंत्रण में हैं और उनकी कंपनियों की अंडर-रिकवरी बंद हो गई है तो भारत में भी तेल की कीमतें कम करें।’पुरी ने कहा कि तेल कंपनियों ने जिम्मेदारी से व्यवहार किया और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि का भार उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें क़ीमतों पर लगाम लगाने के लिए नहीं कहा। उन्होंने यह खुद किया।’पिछले साल जून में कच्चे तेल की क़ीमतें बढ़कर 116.01 डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं और इस महीने ये 82 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं। इसके बावजूद 6 अप्रैल, 2022 के बाद से कंपनियों ने डीजल-पेट्रोल की दरों में बदलाव नहीं किया है। पर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी ज़रूर घटाई थी।बता दें कि सरकारी तेल कंपनियाँ इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने 15 महीनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को नहीं बदला है। अब जब कच्चे तेल की क़ीमतें गिर गई हैं तो कंपनियाँ हुए नुक़सान की भरपाई कर रही हैं।हालाँकि, इस बीच जब नवंबर-दिसंबर महीने में गुजरात और हिमाचल के चुनाव से पहले कुछ लोगों ने पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने के कयास लगाए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन चुनावों में हिमाचल में कांग्रेस जीती, जबकि गुजरात में बीजेपी जीती। हालाँकि उससे पहले कई मौक़ों पर चुनाव से पहले डीजल-पेट्रोल के दाम या तो घटे थे या फिर कच्चे तेल के दाम बढ़ने के बावजूद डीजल-पेट्रोल के दाम नहीं बढ़े थे और चुनाव ख़त्म होने के बाद दाम फिर से बढ़ गए थे। पिछले साल की शुरुआत में जब उत्तर प्रदेश सहित पाँच राज्यों में चुनाव चल रहे थे तो तीन महीने से ज़्यादा समय तक तेल की क़ीमतें नहीं बढ़ी थीं। जबकि उस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम क़रीब 85 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर क़रीब 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गये थे। प्रति बैरल 1 डॉलर से भी कम की बढ़ोतरी होने पर भी डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाने वाली भारतीय तेल कंपनियाँ कच्चे तेल में क़रीब 15 डॉलर यानी 18 फ़ीसदी बढ़ोतरी के बाद भी दाम क्यों नहीं बढ़ाया था, यह सवाल उठा था।
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