जाति- धर्म की राजनीति हार जीत का नेतृत्व करेगी, विकास ताली बजाएगा
रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण
देश की मिलेनियम सिटी का दर्जा हासिल कर चुके गुरुग्राम की इस लोकसभा चुनाव में चर्चा करना इसलिए जरूरी हो गया है की यहा वोट विकास की बुनियाद पर नही जाति और धर्म में बंटे मतदाताओं की सोच से मिलेगे। इसलिए कोई भी उम्मीदवार इस भ्रम में रहे की वह विकास करने या नही करने के नाम पर जनता में भरोसा कायम कर वोट हासिल कर लेगा समझ जाइए उसकी राजनीति का गणित पूरी तरह से फेल हो चुका है और वह परिणाम से पहले ही अपने घर बैठने जा रहा है।
रणघोष मोटे तौर पर जाति और धर्म के नाम पर जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर इस सीट की तस्वीर को साफ करने की कोशिश कर रहा है। जिससे यह पता चल जाएगा की कौनसा मजबूत उम्मीदवार किस पोजीशन पर खड़ा है और मतदान से बचे कुछ दिनों में वह किस तौर तरीकों के साथ मैदान में जनता के बीच जाकर वोट की अपील करेगा। हालांकि इसकी शुरूआत हो चुकी है। जगह जगह जाति और धर्म से जुड़े लोग अपने नेता को जीताने के लिए अलग अलग धड़ों में बदल चुके हैं।
आंकड़े जारी करने से पहले यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं की रणघोष आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नही करता है। यह कुछ प्रतिशत में कम ज्यादा हो सकते हैं। ना ही यह लेख किसी की हार जीत का इशारा जाहिर कर रहा है। मतदान होने तक बहुत कुछ बदल जाता है। इतना जरूर है की मौजूदा राजनीति का मापदंड अब जाति और धर्म पर आधारित हो चुका है। जिसे नकारा नही जा सकता।
जाति- धर्म के खेल को समझने राव को पूरी ताकत लगानी होगी
शुरूआत भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह से करते हैं। जिनकी जीत को शुरूआत से ही बेहद सुरक्षित माना जा रहा है। अगर जाति और धर्म का पूरा खेल चला तो यहा राव को जीत के लिए जमकर मेहनत करनी पडेगी ओर अपनी रणनीति को पूरी तरह से बदलना होगा। तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक मुकाबला पूरी तरह से भाजपा- कांग्रेस के बीच में है। अन्य दलों के उम्मीदवार महज मौजूदगी के तौर पर ही नजर आएंगे। भाजपा को सबसे ज्यादा यादव, गुर्जर, सैनी, वैश्य समाज मिलने जा रहे हैं। जबकि मेव पूरी तरह से कांग्रेस के साथ नजर आ रहा है जिसमें सेंधमारी करने में राव इंद्रजीत सिंह पुराने संबंधों का बार बार हवाला देकर उन्हें अपने विश्वास में लेने का पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। जिसमें कामयाबी मिलना मुश्किल नजर आ रही है। पंजाबी वोट बढ़त के तोर पर भाजपा के साथ रहेगे लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले प्रतिशत कम रहेगा। वजह कांग्रेस की तरफ से राज बब्बर इसी समाज से संबंध रखते हैं। जाहिर कांग्रेस ने यही सोचकर जाति का यह कार्ड खेला है। पंडित, राजपूत,खाती,कुम्हार,नाई, सुनार भी मोदी गारंटी व अन्य छोटी छोटी वजहों से भाजपा को बढ़त देगे लेकिन प्रतिशत इतना कम नही रहेगा की वह मुकाबले में भाजपा को तरफा दिखा दे। यहा कांग्रेस पिछले चुनाव के मुकाबले अच्छी खासी सेंध मार चुकी है ओर वह पहले से ज्यादा कुछ बढ़त लेती दिखाई दे रही है। जाट और एससीएसटी जिसमें चमार, वाल्मिकी, धानक, गुवारिया, बावरिया विशेष तौर से शामिल है। इस बार भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनते नजर आ रहे है। अगर ये जातियां एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में जाती नजर आई तो वह भाजपा का गणित पूरी तरह से बिगाड़ सकती है। सिख समुदाय भी किसान आंदोलन के चलते भाजपा के लिए इस बार इतना मजबूत नजर नही आ रहा है। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत नरेंद्र मोदी के नाम पर पीएम का मजबूत हिंदूत्व चेहरा है जिस वजह से इस सीट पर हिंदू- मुस्लिम का कार्ड आने वाले अंतिम दिनों में राजनीति के चाल चरित्र को पूरी तरह से बदल सकता है। इंडिया गठबंधन इस मामले में पीएम चेहरा नही होने की स्थिति में अच्छा खासा नुकसान उठा सकती है। इसलिए वह पूरी ताकत के साथ जाति और धर्म पर आधारित राजनीति से भाजपा के हिंदूत्व चेहरे को किसी तरह बेअसर करने में जुटी हुई है। अगर मतदान 70 प्रतिशत से ज्यादा हुआ तो इससे भाजपा को फायदा होगा। कम होने पर नुकसान झेलना पड़ सकता है। मोटे तोर पर 17 से 18 लाख वोटिंग होने की संभावना लगाई जा रही है। अगर मेवात में मतदान प्रतिशत गुरुग्राम व रेवाड़ी क्षेत्र से ज्यादा हुआ तो यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी होगा। इस सीट पर जाति और धर्म के आधार पर मतदान प्रतिशत भी बहुत कुछ हार जीत की प्रमुख वजह बनेगा। कुछ मिलाकर अगर कांग्रेस संगठित होकर पूरी तरह से ताकत से चुनाव लड़ रही है तो भाजपा की जीत आसान नही होगी। यहा दोनों दलों में भीतरघात होने की पूरी संभावना है। इसकी आहट सार्वजनिक हो चुकी है। भाजपा में एक मजबूत धड़े का राव इंद्रजीत सिंह के लिए प्रचार नही करना जग जाहिर हो चुका है। इसी तरह कांग्रेस संगठन का योजनाबद्ध तरीके से चुनाव नही लड़ना और पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव का चुनाव प्रचार के समय बीच बीच में राय बरेली में चुनाव प्रचार के लिए निकल जाना कही ना कही दोनों दलों के प्रत्याशियों की जीत को अच्छी खासी मुश्किल में डालने की तरफ साफ इशारा कर रहा है। कुल मिलाकर 20 दिन पहले तक भाजपा के लिए एक तरफा नजर आ रही गुरुग्राम सीट अब पूरी तरह से मुकाबले में आ चुकी है। जिसके चलते आगामी 9 दिनों में चुनाव प्रचार पूरी तरह धर्म और जाति के आधार पर बदला हुआ नजर आएगा।