चंद्रयान-3 के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण होंगे लैंडिंग के समय के अंतिम 15 मिनट

रणघोष अपडेट. देशभर से 

भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के करीब पहुंच चुका है। अब बुधवार की शाम करीब 6 बजकर 4 मिनट पर  चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास प्रज्ञान रोवर के साथ विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने का प्रयास इसरो करके इतिहास रचने के लिए तैयार है। ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि लैंडिंग के समय के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतिपूर्ण होंगें। यही वह समय होगा जो इस मिशन की सफलता को निर्धारित करेगा। बुधवार के ये 15 मिनट देश के लिए सबसे कठिन और रोमांचकारी  मिनट माने जा रहे हैं। इन रोमांचकारी क्षणों को आतंक या खौफ के मिनटों के रूप में माना जा रहा है। यही वह समय होगा जब इसरो के निर्देश पर विक्रम लैंडर 25 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह की ओर उतरना शुरू कर देगा। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक विक्रम लैंडर इस दौरान 1.68 किमी प्रति सेकंड के वेग से चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ना शुरू कर देगा।यह स्पीड लगभग 6048 किमी प्रति घंटा के बराबर है जो एक हवाई जहाज के वेग से लगभग दस गुना अधिक है। इसके बाद विक्रम लैंडर के सभी इंजनों की गति धीमी हो जाएगी। इसे रफ ब्रेकिंग स्टेज कहा जाता है जो लगभग 11 मिनट तक रहेगा। फिर विक्रम लैंडर को चंद्रमा की सतह पर लंबवत बनाया जाएगा, इसके साथ ही ‘फाइन ब्रेकिंग चरण’ शुरू होगा। इंडियन एक्प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार शाम के ये आखिरी 15 मिनट मिशन की सफलता तय करेंगे। इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ के सिवन ने इस चरण को “आतंक के 15 मिनट” के रूप में वर्णित किया था। यही वह समय है जब विक्रम लैंडर के क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर स्थिति में उचित रूप से स्विच नहीं करने के बाद चंद्रयान -2 विफल हो गया, और चंद्रमा की सतह पर टकरा गया था। तब वह चंद्रमा की सतह से 7.42 किमी दूर “फाइन ब्रेकिंग चरण” में प्रवेश कर रहा था।

कई दिनों तक चंद्रमा की कक्षा में स्थिर रहा है चंद्रयान-3

इससे पहले 1 अगस्त को चंद्रयान-3 ने अपनी 3.84 लाख किलोमीटर की यात्रा पर चंद्रमा की ओर बढ़ा था। 5 अगस्त को चंद्रयान-3 उपग्रह धीरे-धीरे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया था और चंद्रमा की कक्षा में स्थिर हो गया। चंद्रयान-3 कई दिनों तक चंद्रमा की कक्षा में स्थिर रहा है। वहीं 17 अगस्त को जब चंद्रयान-3 उपग्रह 153 किमी गुणा 163 किमी की कक्षा में था तब  प्रोपल्शन मॉड्यूल, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर अलग हो गए थे। विक्रम लैंडर और रोवर दोनों सौर ऊर्जा से संचालित हैं । इनका निर्माण एक चंद्र दिन तक चलने के लिए हुआ है जो कि पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है।

लैंडिंग के बाद शुरु होगा मिशन का असली काम 

चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 मिशन का आधा हिस्सा ही पूरा होगा। इसरो के वैज्ञानिकों का असली काम तो इसके चंद्रमा की सतह पर कदम रखने के बाद शुरु होगा। वे लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ से भेजे गए डेटा की स्टडी करेंगे। लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ दोनों चांद पर पूरे एक दिन यानी धरती पर के 14 दिन तक रहेंगे। इन दोनों में कुल 5 तरह के साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स लगे हुए हैं जो काफी तरह के डेटा को धरती पर भेजेंगे। धरती के इन 14 दिनों में ही वैज्ञानिक चांद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एकत्र करेंगे। रोवर ‘प्रज्ञान’ केवल लैंडर ‘विक्रम’ से संवाद कर सकता है। ‘विक्रम’ ही सारा डेटा धरती पर भेजता है।

इस मामले में भारत बन सकता है दुनिया का पहला देश 

चांद की सतह पर उतरते ही भारत इसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा। चांद का दक्षिणी ध्रुव ऐसा इलाका है जहां अब तक कोई देश नहीं पहुंचा है। बीते चार साल में यहां तक पहुंचने की यह इसरो की दूसरी कोशिश है। अगर बुधवार को इसमें उसे सफलता मिलती है तो वह इतिहास रच देगा। वहीं अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन जाएगा। चांद का दक्षिणी ध्रुव इस मामले में खास है कि यहां पर पानी का भंडार होने का अनुमान है। अगर यहां से पानी की खोज होती है तो भविष्य में चांद पर वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।

2019 में विफल रहा था चंद्रयान-2 

इससे पहले चांद पर जाने के लिए इसरो ने 2019 में चंद्रयान-2  को लांच किया था। उसका मकसद भी चांद की सतह पर सुरक्षित सॉफ्ट-लैंडिंग करना और वैज्ञानिकों के लिए जरूरी डाटा को जुटाना था। चंद्रयान-2 मिशन में इसरो को कामयाबी हाथ नहीं लगी थी। सात सितंबर, 2019 को चांद पर उतरने के दौरान इन्हीं अंतिम 15 मिनट में  मिशन का लैंडर ‘विक्रम’ ब्रेक संबंधी प्रणाली में गड़बड़ी होने के कारण चांद की सतह से टकरा गया था। इस तरह से चंद्रयान-2  विफल रहा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d bloggers like this: