चुनाव में झूठ-छल सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं, सच छिपकर ताली बजाता है

Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

हम जो बता रहे हैं उसमें नया कुछ भी नही है। बस दिलो दिमाग में बनी तिहाड़ जेल में बिना अपराध की सजा काट रहे स्वाभिमानी और कटू शब्दों को कुछ दिनों के लिए पैरोल पर आ जाते है। बाहर आते ही खुली हवा में वे शोर मचाना शुरू कर देते हैं और इस तरह इस लेख का जन्म हो जाता है जिसकी मयाद महज कुछ दिनों की होती है। उसके बाद सबकुछ उसी तरह रूटीन में चलता है जो पहले से चला आ रहा है। इसलिए आप सभी इस लेख के प्रति सहानुभूति जता सकते हैं इस पर चर्चा करना या अमल में लाने का मतलब पैरोल का रद्द होना है। आइए लेख को आगे बढ़ाते हैं।  पहले की तरह इस बार भी 2024 के लोकसभा चुनाव में झूठ और छल सार्वजनिक तौर पर पूरे आत्मविश्वास और उत्साह के साथ सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए नजर आ रहे हैं।  सच सहमा हुआ किसी कोने में छिपकर ताली बजा रहा है ताकि उसकी आवाज सुनकर कोई उसे बाहर निकाल दे। अगर वह चिल्लाता तो उसका मुंह बंद कर देते। इसलिए ताली बजाने से शक की गुंजाइश कम रहती है। ऐसा करने से वह बाहर आ जाएगा। इसकी कोई गारंटी नही है। अगर किसी भले मानस ने गलती से उसे देख लिया तो बात अलग है।

शुरूआत चुनाव में खड़े प्रत्याशियों से करते हैं। नामाकंन भरने से लेकर जीतने पर ली जाने वाली शपथ पर स्याही सच से बनी होती है लेकिन हस्ताक्षर में झूठ की  चलती है।  कोई यह दावा करे की यह सरासर झूठ है तो  समझ जाइए की सच उसके नीचे छिपा हुआ है। अब आते हैं मीडिया पर। कोई मीडिया हाउस या कंपनी या टिडडी दल की तरह चारों तरफ फैल चुके यू टयूब चैनल वाले पत्रकार साथी  यह लगातार दावा करे की वह निष्पक्ष, बेबाक ओर बेखौफ होकर सच लिखते या बोलते है। उनका यह दावा एक तरह से मौके पर भरोसे को खत्म करना है। अगर सच को ही यह बताना पड़ रहा है की वह सचमुच में सच है तो वह सच नही है। बाजार में बिकने वाला वह माल है जिस पर चालाकी से सच की पॉलिश कर उसे बेचा जा रहा है। चर्चा अब मतदाताओं की। कोई यह कहे की राष्ट्र उसके लिए प्रथम है। जाति धर्म की जगह इंसानियत और मानवता उसकी पहचान है। हार- जीत, कमजोर- ताकतवर से ज्यादा वह मूल्यों का सम्मान करता है। समझ जाइए वह वोट डालने नही जा रहा है। वह चार लोगों में बैठकर प्रवचन देने वाला अघोषित खतरनाक शख्स है जो एक साथ कई चरित्र में जीता है। सोचिए मतदाता बेहतर इंसान वाली सोच के साथ मतदान करते तो देश में आज राजनीति भ्रष्टाचार-अपराध, छल फरेब में नही नहाती। सड़कों पर दंगे फसाद नही होते। अब बची अफसरशाही। यह नेता- मतदाता और मीडिया में पर्दे के पीछे होने वाले अनैतिक व मूल्यहीन क्रिया कलापों को छिपाने में ब्यूटी पार्लर वाली सुंदरता की तरह काम करती है। जानते हुए अनजान बन जाना। सामने हो रहे गलत क्रिया कलापों को देखकर आंखें बंद कर लेना इसकी खुबसूरती है। इस तरह हमारे देश का चुनाव  छिट- पुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्वक ढंग से संपन्न हो जाता है।