चुनाव शहर की सरकार का…उम्मीदवार क्या सोचकर मैदान में उतर रहा है, वोटर इस नब्ज को समझ ले, बेहतर हो जाएगा

 रणघोष खास. पूनम यादव


नगर परिषद के चुनावी शोर में आम मतदाता का विवेक किस तरह से सही उम्मीदवार का चयन करेगा,ये देखने वाली बात होगी।हर वार्ड से बहुत से प्रत्याशी चुनाव लड़ते नज़र आएंगे।ऐसे में देखना जरूरी होगा कि चुनावी ताल ठोकने वाले लोगों को उनके वार्ड की कितनी समझ है।वार्ड के लोगों को सही प्रतिनिधित्व देने वाले चंद चेहरे ही होंगे जिन्हें यही मायने में पार्षद की भूमिका के बारे में पूरा ज्ञान होगा।वार्ड के लिए परिषद द्वारा स्वीकृत बजट को किस तरह से उस वार्ड के विकास में लगाया जा रहा है,ये सवाल शायद ही कुछ वोटरों के मन में आता होगा।विकास कार्यों के नाम पर मौहल्लों में बनने वाली सड़कों की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़ा करने वाले जागरूक मतदाता शायद ही कभी देखने को मिलते हैं।वार्ड के वास्तविक जरूरतमंद लोगों की जगह अपने नजदीकी लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने का काम अधिकतर पार्षदों द्वारा आमतौर पर किया जाता है।इस बारे में लोग दबी जुबान में बात करते हैं लेकिन खुले तौर पर कोई सामने नहीं आता है। ऐसे में यक्ष प्रश्न ये है कि लोग पार्षद का चुनाव अपना रसूख बनाने के लिए लड़ते हैं या फिर इसके पीछे कुछ कारण और भी हैं?कारण चाहे जो भी हों लेकिन मुख्य कारण जनसेवा का होना चहिए जो तथाकथित प्रत्याशियों की कथनी में तो नज़र आता है लेकिन उनकी करनी कुछ और ही होती है।अनाधिकृत कॉलोनियों में बिजली,सीवर और पेयजल की सुविधाओं का जाल देखकर नगर परिषद समेत दूसरे  महकमों की कार्यप्रणाली पर अक्सर सवाल खड़े होते रहते हैं।ऐसे हालातों में पार्षदों की भूमिका सवालों के घेरे में रहना लाज़मी है।   क्या इन चुनावों में पार्षद या चेयरमैन पद के लिए ऐसे भी चेहरे सामने आएंगे जो 10 मिनट के लिए बिना पढ़े या उधारी ज्ञान के वार्ड के विकास के लिए सार्वजनिक मंच पर बात कर सके?अपनी उम्मीदवारी तो कोई भी व्यक्ति पेश कर सकता है किंतु उसकी कार्यकुशलता या दूरदर्शिता की परख तो आम वोटर को ही करनी पड़ेगी।आज अगर हम अपने विवेक की उपेक्षा करके किसी अयोग्य व्यक्ति को पार्षद या चेयरमैन  बना देते हैं तो आने वाले वक्त में उसके दुष्परिणाम भी हमें भुगतने पड़ सकते हैं।अतः हमें मिले मतदान के अधिकार का प्रयोग हमें निष्पक्ष एवं विवेक से करना चाहिए।

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