कापड़ीवास- सतीश का अपना निजी वोट बैंक है। बाकि खड़े प्रत्याशी सीधे तौर पर भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचांएगे, लड़ने वाले दो भाजपा के बागी हैं
रणघोष खास. वोटर की कलम से
नगर परिषद चुनाव में चेयरमैन पद के लिए कांग्रेस की दावेदारी 2019 के विधानसभा चुनाव से ज्यादा मजबूत है। इसमें कोई शक नहीं। वजह भी एक साल का कार्यकाल जिसमें विधायक चिरंजीव राव ने जनता से लगातार संपर्क बनाए रखा। उधर भाजपा ऐसा कोई बड़ा काम नहीं कर पाई जिससे लगे कि सरकार इस सीट से अपनी खोई प्रतिष्ठा को वापस हासिल करने के लिए बैचेन नजर आ रही हो। सबसे बड़ी बात पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह के यादव के गणित को आज तक कोई समझ नहीं पाया है और ना ही कोई तोड़ कर पाया है। 2014 के चुनाव में मोदी लहर जरूर कप्तान को बहाकर ले गई थी। उसके बाद वे तैरते हुए वापस अपनी जमीन पर लौट आए। कप्तान ने जितने भी चुनाव लड़े में उसमें अंतिम समय तक वे संघर्ष नजर आया। तीन चुनाव ऐसे थे जिसमें वे बेहद हार के करीब होकर गुजरे थे। इस चुनाव में कप्तान परिवार ने विक्रम यादव के तौर पर अपनी परिवार की राजनीति को आगे बढ़ाया है। इसलिए होने वाली हार- जीत से कांग्रेस को नहीं कप्तान पर असर पड़ेगा। यहां वोट कप्तान के नाम पर मिलेंगे। इसलिए यहां कप्तान वन मैन शो के तौर पर सामने हैं। यहां भाजपा- कांग्रेस के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार सतीश यादव की पत्नी उपमा देवी पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास का साथ मिलने के बाद पूरी तरह टक्कर में हैं। रणधीर सिंह एवं कापड़ीवास का अपना निजी वोट बैंक है। इसलिए उनके वोटों में कांग्रेस या भाजपा वर्कर सेंध नहीं मार पाएंगे। इसी तरह कप्तान का भी अपना मजबूत धड़ा है। अब बची भाजपा। यहां अन्य निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व प्रधान विजय राव ने अपनी पत्नी निर्मला राव को मैदान में उतारा है और खुद पार्षद के चुनाव में खड़े हैं। विजय राव ने भाजपा से टिकट मांगा था। नहीं मिलने पर वे निर्दलीय हो गए। इसी तरह गुर्जर समाज से भी दो चेहरे बसपा से मंजू चौकन व आजाद प्रत्याशी के तौर पर भाजपा की एबीवीपी ईकाई के वरिष्ठ कार्यकर्ता जगदीश सिराधना ने भी बगावत कर दी ओर अपनी पत्नी कमला सिराधना को मैदान में उतार दिया। जातिगत समीकरण से इन वोटों से भाजपा को नुकसान होगा। इसलिए कुल कांग्रेस मौजूदा माहौल में पूरी टक्कर दे रही है। उधर सतीश यादव का समीकरण भी हिलोरे मार रहा है। भाजपा के पास ताकत के तौर पर प्रदेश में सरकार होना है जिसके चार साल बचे हैं। दूसरा मजबूत संगठन का खड़े रहना जो पिछले दो दिनों से एकजुट नजर आ रहा है। अब देखना यह है कि कौन प्रत्याशी अपनी टाइम मैनेजमेंट से, कुशल रणनीति और जोड़ तोड़ की राजनीति का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर पाता है।
पढ़िए टाइम मैनेजमेंट की ताकत
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का फोन 14 दिसंबर को आ जाता तो तस्वीर कुछ ओर होती
15 दिसंबर को पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास ने पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव के समर्थन का एलान कर दिया था। सुबह 11 बजे तक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने फोन कर कापड़ीवास को ऐसा नहीं करने के लिए था। काफी इधर उधर से प्रयास भी हुए लेकिन कापड़ीवास ने कहा कि आपने देर कर दी है। अगर यह फोन एक दिन पहले आ जाता तो आज चुनाव की स्थिति कुछ और ही होती। कापड़ीवास की विधिवत घर वापसी थी। इसलिए टाइम मैनेजमेंट की ताकत भी हार- जीत का आधार तय करती है।