रणघोष खास. रेवाड़ी टीम
तीन दिन बाद नगर निकाय रेवाड़ी- धारूहेड़ा चुनाव की तस्वीर काफी बदल सकती है। पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास की विधिवत तौर पर भाजपा में वापसी की तैयारी चल पड़ी है। यह चुनाव भाजपा की प्रतिष्ठा से जुड़ चुका है। ऐसे में कापड़ीवास का वापस अपने घर आना सीधे तौर पर कांग्रेस एवं निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों के लिए सीधे चुनौती होगा। सबसे बड़ी बात केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए यह बहुत बड़ा हमला होगा। कापड़ीवास खुलकर राव इंद्रजीत सिंह की खिलाफत कर रहे हैं। 2019 के चुनाव में निर्दलीय लड़ने की वजह भी राव इंद्रजीत द्वारा अपने समर्थक सुनील यादव को भाजपा की टिकट देना रहा। इस चुनाव में राव ने कापड़ीवास के दुबारा विधायक बनने की संभावना को इधर उधर बिखेर दिया था। लिहाजा नगर निकाय के 15 दिन के चुनाव में भाजपा के इन दिग्गजों का एक मिजाज एवं एक सुर में आना किसी भी सूरत में आसान नजर नहीं आ रहा है।
हालांकि अभी आधिकारिक तौर पर ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है लेकिन विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबकि कापड़ीवास की कुछ शीर्ष नेताओं से मीटिंग भी हो चुकी है। खुद कापड़ीवास बार बार कह चुके हैं कि वे आज भी भाजपाई है। पार्टी ने उन्हें कभी निकाला ही नहीं और ना ही लिखित में ऐसा आज तक कोई पत्र जारी किया है। चुनाव में उन्होंने भाजपा को इसलिए छोड़ना पड़ा कि टिकट सहीं हाथों में नहीं जाने से यह सीधे तौर पर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता का अपमान था। यहां बता दें कि विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान भाजपा में खुलकर प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद यादव के समर्थकों ने राव इंद्रजीत सिंह के समक्ष अपनी भड़ास निकाली थी। खुद अरविंद यादव टिकट के प्रमुख दावेदार थे। बाद में अरविंद यादव पार्टी से कुछ समय के लिए निष्क्रिय भी हो गए थे।
यहां तक की उनकी आगे की राजनीति पर भी विराम लगने की भविष्यवाणी की जा चुकी थी लेकिन एक साल बाद ही अचानक भाजपा हाईकमान ने उन्हें हरको बैंक का चेयरमैन बनाकर सभी को हैरत में डाल दिया। इसलिए राजनीति में माहौल के हिसाब से क्या हो जाए। कुछ नहीं कहां जा सकता। इतना जरूर है कि भाजपा में कापड़ीवास की वापसी से यह चुनाव किसी के लिए आसान नहीं होगा। यह सीधे तौर पर कांग्रेस को चुनौती होगी जो अभी तक भाजपा की अंदरूनी लड़ाई के चलते मजबूत नजर आ रही थी। उधर कापड़ीवास का साथ मिलने की उम्मीद से मैदान में उतरने की तैयारी में जुट गए पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव को भी नए सिरे से अपना गणित तैयार करना पड़ेगा। ऐसे में ऐन वक्त पर कौन किसका साथ देकर समीकरण बदलेगा यह देखने वाली बात होगी क्योंकि राजनीति में कोई किसी का स्थाई दुश्मन और दोस्त नहीं होता है।