भाजपा ने नगर निकाय की सबसे छोटी ईकाई वार्ड पार्षद को पार्टी सिंबल पर उतारकर बेशक नया प्रयेाग किया है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इस निर्णय से वार्ड के गली मोहल्ले धड़ो में भी बंट गए। इससे पहले पता नहीं चलता था कि उम्मीदवार या मतदाता पार्टी से जुड़े हुए हैं। यह सीधे तौर पर फेस टू फेस, आपसी व्यवहार एवं भाईचारे का चुनाव होता था। जिसमें सभी के पास एक दूसरे का जानकारी का बायोडाटा होता था। भाजपा को इससे क्या राजनीति फायदा होगा यह आने वाले रजल्ट से स्पष्ट हो पाएगा। अगर नगर निकाय चुनाव में भाजपा का प्रयोग कामयाब रहता है तो जाहिर है कि वह दो माह बाद पंचायती राज के होने वाले चुनाव में भी पीछे नहीं रहेगी। अगर वह असफलत रहती है तो मंथन कर आगे के छोटे चुनाव में अपनी रणनीति को बदलेगी। उधर भाजपा की रणनीति पर अपनी नीति बनाकर आगे बढ़ रही कांग्रेस ने ऐन वक्त पर वार्ड प्रत्याशी सिंबल पर नहीं उताकर कर अपना नया राजनीति दांव खेला है। हालांकि वह आजाद खड़े अपने कुछ पुराने वर्कर को बाहरी तौर पर समर्थन दे रही है। सोमवार शाम को भाजपा ने काफी मथ्था पच्ची के बाद रेवाड़ी नगर परिषद की कुल 31 में से 26 प्रत्याशियों की सूची जारी की। 5 सीट जेजेपी के खाते में गई है। जिस प्रत्याशियों का चयन किया गया है उसमें आधे से ज्यादा नए चेहरे हैं। जातीय समीकरण का भी पूरा ध्यान रखा गया है। हालांकि भाजपा के पास 150 से ज्यादा आवेदन आए थे। ऐसे में जिस उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिली उसमें कुछ आजाद चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं। इसका सीधा नुकसान भाजपा को सकता है। दूसरा जो सिंबल मिलने पर ही चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे। टिकट नहीं मिलने पर चुपचाप ऐसी भूमिका में रहेंगे जिसमें यह पता ही नहीं चलेगा कि वे भाजपा को मजबूत करने में लगे हुए थे या कमजोर करने में। आमतौर पर इस तरह के छोटे चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ज्यादा मजबूत इसलिए रहता है कि उस पर किसी का कोई सिबंल नहीं होता है। इस हिसाब से वह अलग अलग धड़ों में सेंध लगाने में कामयाब रहता है। कुल मिलाकर भाजपा का यह प्रयोग जमीनी स्तर पर आने वाले समय में बहुत कुछ तय करने जा रहा है।