रणघोष खास. वोटर की कलम से
हरियाणा में जब 2004- 2013 तक कांग्रेस का राज रहा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम बने तो उन्होंने यहां से लगातार छह बार विधायक का रिकार्ड बनाने वाले कप्तान अजय सिंह यादव को पूरा सम्मान दिया। एक समय ऐसा भी आया जब हाईकमान की नजर में कप्तान भी नॉन जाट के गणित में सीएम के तौर पर नजर आने लगे थे। समय बदला विकास के मुद्दों पर अलग अलग वजहों से सीएम हुड्डा- कप्तान में टकराव शुरू हो गया। वह इतना बढ़ गया कि कप्तान एक बार तो केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के साथ मंच सांझा कर गए। राजनीति में कोई लंबे समय तक सगा संबंधी, दुश्मन नहीं होता है। 2019 विधानसभा चुनाव से पहले तक दोनो दिग्गजों के बीच दूरियां बरकरार रही। रेवाड़ी- बावल में कांग्रेस में हुड्डा का एक धड़ा खड़ा हो गया। उस समय भाजपा देश- प्रदेश में अपने चरम पर थी। कांग्रेस तेजी से सिकुड़ रही थी। एक- एक करके पुराने वर्कर कप्तान का साथ छोड़ रहे थे। एक बार लगा कि कप्तान की राजनीति अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव में कप्तान ने खुद को बदला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा से सहयोग मांगा तो दीपेंद्र हुड्डा कांग्रेस प्रत्याशी चिरंजीवी राव के समर्थन में प्रचार करने आए। यहां चिरंजीव राव के विधायक बनने के साथ ही कप्तान- हुड्डा के संबंधों में फिर ताजगी लौटने लगी। उसके बाद कप्तान ने हुड्डा के खिलाफ कभी कोई बयानबाजी नहीं की। अब नगर निकाय चुनाव में खुद भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम यादव के प्रचार में एक लंबे समय बाद रेवाड़ी आए हैं। इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस के अंदरूनी मिजाज में मिठास नजर आने लगी है वहीं भाजपा में कम होती जा रही है। यानि जिस गुटबाजी, एक दूसरे को नीचा दिखाने की जो बीमारी कांग्रेस को थी उसके कीटाणु अब भाजपा में प्रवेश कर गए। राजनीति में संगठन बड़ा होने पर ऐसा होना नई बात नहीं है। कांग्रेस ने जो खोना था वह खो चुकी है जबकि भाजपा ने जो हासिल किया है उसके लिए उसे बचाए रखने की चुनौती है। कुल मिलाकर हुड्डा का रेवाड़ी में कप्तान के साथ नजर आना कहीं ना कहीं उम्मीदवार एवं कांग्रेस की वापस लौटती ताकत का संकेत है। इसका कितना फायदा मिलेगा यह रजल्ट के बाद ही पता चलेगा।