रणघोष अपडेट. वोटर की कलम से
राज्य सरकार के एक फैसले ने वार्ड पार्षदों की चौधराहट को बौना दिया है। सीधे मतदाता को चेयरमैन चुनने का अधिकार क्या मिला चुनाव में वार्ड मेंबरों का प्रभाव भी के गांव के पंच जितना बना दिया। हालांकि लोकतांत्रिक प्रणाली में चुने हुए छोटे- बड़े जनप्रतिनिधि बहुत अह्म पोजीशन रखते हैं इसलिए पंचायती राज में पंच को परमेश्वर का दर्जा दिया गया है। बात यहां पद से जुड़ी चौधराहट की है इसलिए नगर निकाय चुनाव में जो मारा मारी पार्षद उम्मीदवारों के बीच होती थी वह अब चेयरमैन को लेकर साफ नजर आ रही है। जिस भी मतदाता से बात करिए वह चेयरमैन प्रत्याशी की चर्चा कर रहा है। यहां तक की चेयरमैन पद के दावेदार अपने जनसंपर्क अभियान में या गुपचुप अपनी ही वोट को पक्की करने में लगे हुए हैं। यहीं स्थिति वार्ड मेंबरों की है। हालांकि भाजपा ने सिंबल पर उम्मीदवार उतारे हैँ इसलिए बाहरी तौर पर वे बेशक भाजपाई नजर आ रहे हैं लेकिन अपनी वोट के लिए अन्य चेयरमैन प्रत्याशियों के साथ भी गुणा गणित बैठा रहे हैं। कहने को राजनीतिक दलों ने इस चुनाव को भी पूरी तरह बाहर से राजनीति रंग में रंग दिया है लेकिन अंदरूनी तौर पर शत प्रतिशत प्रत्याशी अपनी जीत के लिए वह सब हथकंडे अपना रहे हैं जो ना तो किसी पार्टी की विचारधारा में आते हैं और ना हीं विकास के एजेंडे से जुड़े हुए हैं। मतदाता भी समझदार है उसे पता है कि अगर प्रत्याशियों से विकास के नाम पर एयरपोर्ट, मैट्रो, मेडिकल कॉलेज, नेशनल हर्बल पार्क जैसी मांग भी करेंगे तो वे झट इसे अपने एजेंडे में शामिल कर वोट देने की अपील करेंगे बेशक यह उसके दायरे में नहीं आती हो। स्थानीय मुद्दों की बात करें तो जब से नगर निकायों के गठन हुआ है उसी समय भी वहीं मुद्दे थे और आज भी वहीं। बदलाव सिर्फ इतना आया है कि पहले भाईचारे में उम्मीदवार चुनते थे आज एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए गली मोहल्लों में जाति- धर्म की दीवारें खड़ी हो गई हैं जिसे ढहाने की बजाय चुनाव की आड़ में उस पर मजबूत लिपाई कर दी जाती है। ताकि अगले पांच साल तक यह कहीं ढहे नहीं। कुल मिलाकर यह चुनाव भी बहुत कुछ छोड़ कर जाने वाला है। इसमें क्या अच्छा बुरा होगा यह आने वाले परिणामों की समीक्षा रिपोर्ट से सामने आएगा।