21 हजार वोटो वाली धारूहेड़ा नगर पालिका पर किसी की जीत आसान नहीं, एक- एक वोट तय करेगी हार- जीत
रणघोष खास. वोटर की कलम से
मुख्यमंत्री मनोहरलाल के दौरे के बाद नगर पालिका धारूहेड़ा चुनाव की तस्वीर काफी हद तक साफ होने लगी है। इस पालिका के तहत आने वाले 21 हजार 819 वोटो का गणित भी मौजूदा समीकरण और हालात से बनता जा रहा है जो 27 दिसंबर तक बदल भी सकता है। राजनीति जानकारों की माने तो कुल वोटों में 16 हजार के आस पास मतदाता वोट डाल सकते हैँ। सीएम मनोहरलाल ने साफ तौर कह दिया कि इस सीट पर जेजेपी प्रत्याशी राम मान सिंह जेलदार हमारा मजबूत प्रत्याशी है। पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। सीएम के कहने से कितने भाजपाई जमीनी तौर पर जुड़ रहे हैं। यह उनके कार्यक्रम से ही स्पष्ट हो गया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को धारूहेड़ा कस्बे से 4200 से ज्यादा वोट मिले थे। अगर जेजेपी की टीम भाजपा पदाधिकारियों को आगे रखकर जनसंपर्क अभियान को तेज करती है तो माहौल मजबूत होता चला जाएगा। फिलहाल ऐसा लग नहीं रहा है। यहां उसे काफी मेहनत करनी पड़ेगी और समय बहुत कम है। यहां जेजेपी विधानसभा चुनाव में वोट के हिसाब से 200 तक ही सिमट गई थी। अन्य प्रत्याशियों में बाबूलाल लांबा तेजी से पकड़ बना रहे हैं। उन्हें धारूहेड़ा के सेक्टर 4-6 के 3500 के आस पास वोटरों का अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है क्योंकि उन्हें सेक्टरवासियों ने मीटिंग कर मैदान में उतारा है। इसके अलावा भाजपा धारूहेड़ा मंडल महासचिव प्रेमदास लोधी खुलकर उनके साथ है। लोधी की बाहरी वोटों पर भी अच्छी पकड़ है। इसके अलावा वार्ड 15 की पार्षद रही ममता भी लांबा के साथ नजर आ रही है। इसलिए यहां लांबा का गणित कमजोर नहीं है। आजाद उम्मीदवार पूर्व सरपंच कंवर सिंह ने भी रफ्तार पकड़ी है। वे नगर पालिका बनने से पहले धारूहेड़ा के सरपंच रह चुके हैं।
नगर पालिका बनवाने में उनका योगदान रहा है। पूर्व सरपंच मंगतराम भी उनके साथ जुट गए हैं। इसलिए उनका गणित भी दिन प्रतिदिन ठीक हो रहा है। जेलदार परिवार पहली बार राजनीति तौर पर चुनाव में एक दूसरे के सामने आ गया है। जेजेपी उम्मीदवार राव मान सिंह मंजीत जेलदार के बेटे हैं जो खुद रेवाड़ी विधानसभा से बसपा की टिकट पर लड़ चुके हैं। इसी परिवार से अब भाजपा की टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय शिवदीप सिंह मैदान में आ चुके हैं उनके पिता भी राव शिवरतन भाजपा से रेवाड़ी विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। शिवदीप धारूहेड़ा के सरपंच रहे हैं। इसलिए जमीनी तौर पर वे अच्छी खासी पकड़ रखते हैं। यहां उन्हें जेलदार परिवार के प्रभाव वाले वोटों के बिखरने से नुकसान हो सकता है। प्रजापत समाज में शिवदीप की पकड़ काफी ठीक है। इसी तरह भाजपा के युवा चेहरा संदीप बोहरा का चुनाव भी पकड बना रहा है। युवाओं में अच्छी खासी पकड़ बनी हुई है। पिता शेर सिंह हीरो होंडा में रहे हैं। इसलिए कंपनी के कर्मचारी यहां के वोटर है। लिहाजा वे भी कम ज्यादा का असर डालेंगे। जेलदार परिवार में बिखराव होने की वजह से इसका फायदा भी संदीप बोहरा को भी हो सकता है। लेकिन यहां उनका कमजोर पक्ष समझदार से ज्यादा उनका स्मार्टनेस ज्यादा होना है।
निर्दलीय में सैनी समाज से खेमचंद सैनी भी मतदान तक डटे रहे तो हार-जीत का गणित बिगाड़ेंगे। इस सीट पर समाज के 2 से 3 हजार वोट बताए जा रहे हैं। भाजपा से अलग होकर मैदान में उतर चुके दिनेश राव अपने पिता ईश्वर मुकदम की ताकत से ही डटे हुए हैं। पुरानी धारूहेड़ा में उनकी पकड़ ठीक है साथ ही उनकी गिनती राव इंद्रजीत सिंह खेमें से होती है। इसी तरह राज यादव पत्नी ज्ञानी यादव भी पूरे जोश में हैं। ज्ञानी राव के पिता राव अभय सिंह जिला पार्षद रह चुके हैं। राजनीति में पुराना नाम चला आ रहा है। इनके साथ महेश पांडेय है जो बांस रोड पर बाहरी वोटों में अपनी पकड़ रखते हैँ। इसलिए ये समीकरण को इधर उधर करने की पोजीशन में आ चुके हैं। इनका कमजोर पक्ष 10 दिन पहले राजस्थान में हुई एक घटना में उनका नाम आने से विपक्ष के लिए मुद्दा बन सकता है। इसके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में अपने दम पर यहां से 3 हजार से ज्यादा वोट लेने वाले पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास एवं पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव का वोट बैंक भी हार- जीत के गणित को इधर उधर कर सकता है। अब देखना यह है कि ये दोनो दिग्गज खुलकर किसके समर्थन में आएंगे। कुल मिलाकर धारूहेड़ा की हार-जीत किसी मुद्दे या लहर से नहीं वोटों के समीकरण में रोज बनते बिगड़ते समीकरण से तय होगी। इस सीट पर एक- एक वोट तस्वीर बदलने की ताकत रखता है। इसलिए जिस प्रत्याशी के पास मैनेजमेंट मजबूत होगी वह मजबूत दावेदारी में रहेगा।