रणघोष अपडेट. उत्तराखंड से
उत्तराखंड के जोशीमठ शहर के हजारों लोगों का इन दिनों एक ही सवाल है कि वह आने वाले दिनों में कहां जाएंगे, कहां रहेंगे। यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि जोशीमठ के कई घरों में जमीन के लगातार धंसने की वजह से दरारें आ चुकी हैं। इस वजह से लोग बुरी तरह डरे हुए हैं और रात भर जागने को मजबूर हैं क्योंकि उनके घर रहने और सोने लायक नहीं बचे हैं। कुछ घरों में तो दरारें इतनी बड़ी हो गई हैं कि इन्हें देखकर दिल दहल जाता है। लोगों ने जिंदगी भर की कमाई से अपने लिए घर बनाए थे लेकिन आज इन घरों में दरारें देखकर ये लोग बेहद परेशान हैं। अब तक 590 घरों में दरारें आ गई हैं और इससे 3 हजार लोग प्रभावित हैं। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने कहा है कि अगर समय रहते यहां से प्रभावित लोगों को विस्थापित नहीं किया गया तो बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि होगी। संघर्ष समिति ने राज्य सरकार से मांग की है कि लोगों को जल्द विस्थापित किया जाए।
गांवों की ओर लौट रहे लोग
घरों में दरारें आने की वजह से लोगों ने अपने मकान खाली करने शुरू कर दिए हैं और वह सुरक्षित स्थानों पर या अपने पुश्तैनी गांव की ओर लौटने लगे हैं। उन्होंने अपने किरायेदारों से भी मकानों को खाली करवाना शुरू कर दिया है। बता दें कि जोशीमठ बद्रीनाथ धाम जाने का प्रवेश द्वार है और हजारों लोगों के आने की वजह से यहां की जमीन पर जन दबाव ज्यादा है। मकानों में दरारें आने का यह सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है जो बीते कुछ महीनों में तेज हुआ है। यहां रहने वाले लोग अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं क्योंकि अब वह किसी नई जगह पर अपना आशियाना कैसे बनाएंगे। उसके लिए बहुत पैसे की जरूरत होगी। इसलिए उनका कहना है कि वह लोग अब वे कहां जाएंगे और कहां रहेंगे। बताना होगा कि जोशीमठ को लेकर साल 1976 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में भी इस शहर के धंसने का जिक्र किया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि 1976 की रिपोर्ट के बाद से आज तक भी सरकारों ने कोई कार्रवाई नहीं की। लोगों का साफ कहना है कि उनका अस्तित्व खत्म होने की कगार पर आ गया है।