डंके की चोट पर : नफरत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फैंको, मेरे नेताजी कुछ कह रहे हैं.. आइए सुने

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


 हम जिस माहौल में यह लेख लिख रहे हैं वहां नगर निकाय चुनाव का शोर मचा हुआ है। चुनाव प्रचार की गाड़ियां आती है और देशभक्ति से ओत प्रोत करने वाले गीतों को छोटे- छोटे टुकड़ों से जोशभर कर चली जाती है। अच्छा लगता है चुनाव में नेता जी की वजह से ये गीत हमें भारतीय होने का अहसास कराकर चले जाते हैं। इसके बदले नेताजी गानों के बीच में वोट मांगते हैं तो बुरा नहीं मानना चाहिए। यह उनका अधिकार भी है आखिर फ्री में हमारे अंदर जज्बा जो भर रहे हैं। चुनाव प्रचार में एक से बढ़कर एक गीतों को सुनने को अवसर मिलता है।  मौजूदा हालात को देखते हुए एक गीत जरूर सबको यूटयूब पर डाउन लोड करके बार बार सुनना चाहिए। फिल्म का नाम देश प्रेमी, गीत के बोल है नफरत की लाठी तोड़ों, लालच का खंजर फैंको..। इसे मोहम्मद रफी साहब ने आवाज दी है। इसे बार बार तब तक  सुनिए जब तक पूरे गाने का हमारे होटों पर कब्जा नहीं हो जाए। हो सके तो इसे खुद गाइए और रिकार्ड करके सुनिए। यह मत सोचिए आपकी आवाज में लय के साथ मिठास नहीं है, हिचक होती है, कोई मजाक उड़ाएगा, क्या सोचेगा। जब देश को चलाने वाले हमारे नेताजी इतना नहीं सोचते हम उन्हें बनाने वाले इतना क्यों बैचेन हो जाते हैं। मौजूदा हालात से देश को धर्म-जाति की  नफरत से बचाना है तो इस गीत को सुनना ही पड़ेगा और तय करना पड़ेगा हम कहां जा रहे हैं।     

नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको

ज़िद के पीछे मत दौड़ो,  तुम प्रेम के पंछी हो

देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों …

देखो, ये धरती, हम सब की माता है

सोचो, आपस में, क्या अपना नाता है

हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन सम्भालेगा

कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा

दीवानों होश करो, मेरे देश प्रेमियों …

मीठे, पानी में, ये ज़हर न तुम घोलो

जब भी, कुछ बोलो, ये सोच के तुम बोलो

भर जाता है गहरा घाव जो बनता है गोली से

पर वो घाव नहीं भरता जो बना हो कड़वी बोली से

तो मीठे बोल कहो, मेरे देश प्रेमियों …

तोड़ो, दीवारें, ये चार दिशाओं की

रोको, मत राहें इन, मस्त हवाओं की

पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन वालों मेरा मतलब है

इस माटी से पूछो क्या भाषा क्या इसका मज़हब है

फिर मुझसे बात करो, मेरे देश प्रेमियों …