रणघोष खास. प्रदीप नारायण
भाजपा में अब यादव असरदार है, राव मुश्किल में। एक ही समाज से निकले इन दो शब्दों ने देश प्रदेश की राजनीति की परिभाषा ही बदलकर रख दी है। हम जिस जमीन से यह लेख लिख रहे हैं यहां कुछ समय पहले तक राव का डंका बजता था। खेतों में फसले गीत गाती थी राव आया भाव आया। राव शब्द कानों में पड़ते ही राजा या राजकुमार जैसी अनुभूति होती थी। गांव की चौपालों पर चर्चा आज भी होती है राव जिससे हाथ मिला लेते है वह शख्स अपने इलाके में खुद को चौधरी समझता था। भाजपा की प्रयोगशाला में अब राव की जगह यादव ने ले ली है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्या डॉ. सुधा यादव के बाद मध्यप्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव। राज्य एवं जिला स्तर पर यादव नेता, पदाधिकारी व सरकार में अलग अलग ओहदे संभालने वालों की संख्या अलग है।
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह एवं केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के संदर्भ से मौजूदा देश की राजनीति में राव व यादव की असरदार मौजूदगी को समझा जा सकता है। भाजपा संगठन के तौर पर भूपेंद्र यादव राव इंद्रजीत सिंह से सीनियर है लेकिन राजनीति अनुभव व उम्र में काफी पीछे। ओहदे पर केंद्र सरकार में राव राज्य तो भूपेंद्र यादव कैबिनेट मंत्री है। संगठन में ताकत महसूस करनी है तो भूपेंद्र यादव भाजपा के थिंक टैंक हैं जिसकी सिफारिश पर सीएम बनते हैं। एमपी में मोहन यादव का सीएम बनना इस बात का प्रमाण हैं। जब भी भाजपा मुश्किल में नजर आती है वहां भूपेंद्र यादव संकट मोचक नजर आते हैं। एमपी में चुनाव प्रभारी के तौर पर कमाल दिखाया तो राजस्थान को भी बराबर संभाला। यहां राव इंद्रजीत सिंह कहीं नजर नहीं आए। यहां तक की गुरुग्राम लोकसभा जहां से वे सांसद है से सटे राजस्थान के अलवर जिले में भी चुनाव के समय भाजपा हाईकमान ने उनकी जरूरत नहीं समझी। 2024 में होने जा रहे हरियाणा विधानसभा व लोकसभा चुनाव में राव खुद के साथ साथ बेटी आरती राव को चुनाव मैदान में उतारने का इरादा बना चुके हैं। उन्हें चिंता इस बात की है कि भाजपा पिता- पुत्री को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। राजस्थान- एमपी एवं छत्तीसगढ़ में सरकार आने के बाद तो संभावना ना के बराबर रह गई है। हालांकि चुनाव में छह माह से अधिक का समय है इसलिए बदलते राजनीति घटनाक्रम में परिस्थितियां बदलती रहती है। इससे उलट भूपेंद्र यादव राव इंद्रजीत सिंह के संसदीय क्षेत्र गुरुग्राम में अपने पृतक गांव जमालपुर में बने घर से भाजपा शासित राज्यों में सीएम बनाने व हटाने की पोजीशन का खाका तैयार करते हैं। इसी तरह संसदीय बोर्ड सदस्या डॉ. सुधा यादव भी गुरुग्राम में बने अपने आवास से भाजपा हाईकमान के अह्म फैसलों में अपनी सिफारिशों को सांझा करती है। वे 1999 में महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा सांसद रह चुकी है जिसका आधा हिस्सा परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए गुरुग्राम लोस क्षेत्र में आ चुका है जहां से राव लगातार तीन बार सांसद है। इस तरह मौजूदा तस्वीर यह साफ हो रहा है कि भाजपा के राजनीति ड्राफ्ट में राव बेहद मुश्किल ओर यादव हर लिहाज से मजबूत स्थिति में आ चुके हैं।
यादव गैर कुलीन चरवाहे तो राव राजसी उपाधि से संबंध रखते हैं
समाज के इतिहास पर जाए तो यादव एक तरह से परंपरागत रूप से, वे गैर-कुलीन चरवाहे जाति से आते हैं। उत्तरी भारत विशेष रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा संख्या है। राव का संबंध राजसी उपाधि से रहा है। राव अपने आप में ही एक जाति हैं. राव को एक भारतीय उपनाम से जाना जाता हैं. भारत के काफी ऐसे राज्य हैं. जहां राव उपनाम से जाना जाता हैं. महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में राव उपनाम से अधिकतर लिया जाता हैं।