देश के अलग अल राज्यों में गठबंधन पर सरकार चला रहे राजनीतिक दलों के रणनीतिकारों से प्रेरणा लेने का समय आ चुका है। कायदे से देश का असली चेहरा और चरित्र ही यही है। सोचिए विचारिए और मंथन करिए। जब इन दलों ने अपने दम पर पिछला चुनाव लड़ा उस समय मैदान में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तमाम मर्यादाओं का चीरहरण किया। जनता ने अपने मतों से जब उन्हें बहुमत से दूर पटक दिया तो यही दल आरोप प्रत्यारोप के कीचड़ से सनी एक दूसरे की कमीज को सत्ता हासिल करने की वाशिंग मशीन से साफ करते नजर आए। इन नेताओं का मानना है कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है। इसलिए अब जनादेश को भी चौराहे पर जलील होने की आदत पड़ गई है।
केंद्र की भाजपा सरकार को हटाने के लिए विपक्षी दलों का अपनी मजबूरी में एक छत के नीचे आने की बात हो या महाराष्ट्र, मिजोरम समेत अन्य राज्यों की तरह हरियाणा में सरकार चला रहे भाजपा- जेजेपी नेताओं का अपने दम पर लड़ने का दावा हो। यही देश की राजनीति का मूल चरित्र है जिसके मूल्यों एवं सिद्धांतों में सिर्फ सत्ता ही समाई रहती है। कायदे से गठबंधन की बैशाखी पर शानदार और सफल सरकार चला रहे नेताओं व रणनीतिकारों के दिमाग का राजनीति की प्रयोगशाला में शोध होना चाहिए। राजनीति विषयों को पढ़कर अपना भविष्य बना रहे विद्यार्थियों को बजाय क्लास में प्रोफेसर का रटा रटाया पढ़ने के ऐसे नेताओं की शरण में चले जाना चाहिए। गठबंधन के मायने ही बदल गए हैं। वह ‘ भानुमती का कुनबा ‘ ही नहीं बल्कि ‘ केर-बेर का संग ‘ भी हो गया है। ताजा मसला महाराष्ट्र का लिजिए। यहां भाजपा और विखंडित शिवसेना की सरकार में अब एनसीपी भी बिखरकर गठबंधन की शक्ल में शामिल हो गई है। तोड़फोड़ की राजनीति अब दलों के लिए परमधर्म बन चुका है। हरियाणा में भाजपा- जेजेपी नेताओं का भी यही हाल है। जनता में जाकर अकेले लड़ने का दंभ भर रहे हैं चंडीगढ़ पहुंचते ही साथ साथ कॉफी पीते हैं। दुर्भाग्य ये है कि ऐसा करने वाले अपने प्रतिवंदियों से सीधी लड़ाई लड़ने के गुरिल्ला युद्ध के जरिये जीत हासिल करने में ज्यादा यकीन रखते है। इसलिए तमाम नैतिकताओं को तिलांजलि देकर राजनीतिक दल अपनी ताकत बढ़ाने की हाड- तोड़ कोशिश में जुटे हुए हैं। साम,दाम ,दंड और भेद के जरिये सत्ता में बने रहने या सत्ता हासिल करने में किसी को भी धर्म विमुख होने में न कोई संकोच है और न कोई लज्जा। गठबंधन की इस अधार्मिक राजनीति का जिसे स्वागत करना हो कर सकता है किन्तु यह भी कटू सत्य है कि तोड़फोड़ की राजनीति केवल राजनीतिक दलों को ही नहीं तोड़ती समाज को भी तोड़ती है । देश को आज तोड़फोड़ की नहीं बल्कि जोड़ने की राजनीति की आवश्यकता है।