कौमी एकता और भाईचारे की घिसी पिटी बातों को एक तरफ रखते हैं और आज ये मान लेते हैं कि भारत में हिन्दू मुसलमानों से और मुसलमान हिन्दुओं से नफरत करते हैं.। इस बात ज्यादा आश्चर्य में पड़ने की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया का रुख करिए, रोज दंगा होता है. सुबह होते ही एक धड़ा दूसरे पर हमला बोल देता है. ऐसे में दूसरा भी खामोश नहीं रहता, पलटवार करता है. इसमें से हिंदू कौन है और मुसलमान कौन, ये ज्यादा दिमाग लगाने वाली चीज नहीं है।
आज के हालात पर ये कहना गलत नहीं है कि सोशल मीडिया के आने के बाद नफरत के उन परिंदों को पंख मिल गए जिनके जीवन का एक ही उद्देश्य है- दूसरे समुदाय को अपशब्द कहना। एक वक़्त था जब लोग दिलों में कुंठा लिए थे, मगर इस बात से डरते थे कि अगर अपने दिल में बसी उस नफरत को वो लोगों के सामने लाएं तो समाज क्या कहेगा लेकिन सोशल मीडिया ने अब ऐसा लोगों को बेपरवाह बना दिया है। सियासी कहा-सुनी देखते हुए देखते धार्मिक उलाहने पर पहुंचने लगी है।
ट्विटर, फेसबुक, वॉट्सएप… सोशल मीडिया के इन प्लेटफॉर्म पर कुंठित दिमाग वाले जहर पका रहे हैं. जहर परोस रहे हैं. और जहर ही खा रहे हैं. और इस जहर के खाने से इस जहरीले समुदाय की तादाद कम होने के बजाए बढ़ ही रही है। हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन्हें अपने जैसे लोग मिलते जा रहे हैं, और इनका कारवां हुजूम बनता जा रहा है. ये उन लोगों को फॉलो कर रहे हैं, जो इनसे मिलती-जुलती बात करते हैं। नतीजा ये होता है कि यदि विचारों में कुंठा शामिल है, तो वह कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है.
इसका नतीजा है पूजा और उस ओला कैब ड्रायवर जैसे लोग. जो कही-सुनी बातों पर अपनी धार्मिक राय तय कर रहे हैं. और उसे दूसरों पर थोपकर समाज को चौंका रहे हैं. परेशान कर रहे हैंद्ध सोशल मीडिया पर फैलते जहर से उपजते हैं शंभू रैगर जैसे दानव. जो हत्या करने के बाद लाश के सामने खड़े होकर विभत्स वीडियो बनाते हैं और फिर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। उनके इस दुस्साहस को आसानी से समझा जा सकता है कि कुछ लोग उस वीडियो में शंभू की दलील पर सहमति जताते हैं। अब जाहिर है जब ऐसी चीजें होंगी तो नफरत आना और उसे कहीं न कहीं निकलना स्वाभाविक है.
उपरोक्त मामलों में जो भी हुआ उसे देखकर ये कहना गलत नहीं है कि यदि 21 वीं सदी में भी हम हिन्दू-मुस्लिम से ऊपर नहीं उठ पाए हैं तो वाकई स्थिति दयनीय है जो भविष्य में बेहद विकराल रूप धारण कर हमारे सामने आने वाली है। याद रहे जो युद्ध आज ट्विटर और फेसबुक पर छिड़ा है कल सड़कों पर होगा. और तब जो लाशों के ढेर लगेंगे उस पर कफन ओढ़ाने का काम सोशल मीडिया नहीं कर पाएगा. इसलिए इस मध्यम को इसकी औकत में रखिए. लोगों से उस औकात का पालन करने का आग्रह कीजिए