दुनिया में छह करोड़ से भी ज्यादा लोग हर साल मेलेरिया की वजह से मारे जाते हैं. मलेरिया एक व्यापक महामारी नहीं है, ना तो इसमें संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है और ना ही यह लाइलाज है. लेकिन हर जगह समय पर इलाज ना मिलने से लोगों की मौत हो जाती है. ऐसे में मलेरिया दुनिया की कई कठिन लाइलाज बीमारियों की तरह है. लेकिन पिछले कुछ समय से मलेरिया पर बनी नई वैक्सीन लागातार उम्मींदें जगा रही है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्वीकृत की गई वैक्सीन से विशेषज्ञों को इतनी उम्मीदें हैं कि अनुमान लगाया जा रहा है कि 2040 मलेरिया दुनिया से खत्म हो जाएगा.
बहुत ही ज्यादा कारगर
इस वैक्सीन से काफी उम्मीदें क्यों हैं और इसमें इतना वक्त क्यों लगा, ऐसे तमाम सवालों के जवाला कन्वरशेसन्स के लेख में ऑक्सफोर्ट यूनिवर्रसिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के निदेशक और चीफ इन्वेस्टीगेटर एड्रियन हिल ने दिए है और बताया है कि ट्रायल के दौरान साल भर में करीब 75 फीसदी मलेरिया के मामले कम होते देखे गए हैं जिससे इस वैक्सीन को गेमचेंजर की तरह देखा जा रहा है.
कितनी वैक्सीन की जरूरत
लेकिन यह वैक्सीन की यही खासियत नहीं है. इस वैक्सीन को बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है और जो कि अफ्रीका जैसे देश में बच्चों को मलेरिया से बचाने के लिए बहुत ही जरूरी है. जहां दुनिया में मलेरिया से होने वाली मौतों का हिस्सा 90 फीसदी है. यह मलेरिया प्रभावित होनेइलाकों में पैदा होने वाले 4 करोड़ बच्चों को फायदा होगा.
बड़े पैमाने पर सस्ता निर्माण संभव
एक व्यक्ति को 14 महीनों में इस वैक्सीन के चार डोज की जरूरत होगी यानि कि हर साल 16 करोड़ डोज की जरूरत होगी इसके लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का निर्माण और व्यवसायिक साझेदार है जो करोड़ों डोजो का हर साल उत्पादन कर सकता है. इसका तीसरा सबसे बड़ा फायदा इसकी कीमत है. बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण यह एक डोज 5 अमेरिकी डॉलर की पड़ेगा.
मलेरिया की वैक्सीन बनना आसान काम नहीं था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Unsplash)
इतनी जटिलता क्यों
हिल ने बताया कि मलेरिया की वैक्सीन पर करीब सौ सालों से भी ज्यादा समय से काम चल रहा है और करीब सौ वैक्सीन ही बन सकी जिसमें बहुत ही कम कुछ ही हद तक कारगर हो सकीं. परेशानी ये है कि मलेरिया वायरस या बैक्टीरिया से नहीं बल्कि एक प्रोटोजोआ परजीवी से फैलता है जो वायरस से हजारों गुना ज्यादा बड़ा होता है. जहां कोविड में 13 जीन होते है वहीं मलेरिया के 5500 जीन होते हैं.
बदलता रहता है परजीवी
गंभीर स्थिति में मरीज कोमा में जा रहा है खून की बहुत कमी हो सकती है और लाल रक्त कोशिकाओं को हानि हो सकती है, यहां तक कि मौत भी हो सकती है. इस दौरान परजीवी बदलता रहता है यानि अगली बार मच्छर काटेगा और किसी और को संक्रमित करेगा, तब तक परजीवी फिर बदल सकता है.
कैसे फैलता है संक्रमण
यही वजह है कि मलेरिया इतना जटिल है. इतना ही नहीं मच्छरों के जरिए कई तरह के परजीवी त्वचा में चुभकर पहले तेजी से लीवर में जाते हैं जहां वे बहुगुणित होते हैं फिर कहीं जाकर खून में मिलकर फैलते हैं. वे अलग अलग चरणों में अलग अलग होते हैं. वे हर 48 घंटे में 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं. पहले तो संक्रमण का पता नहीं चलता है, लेकिन जब तक व्यक्ति बहुत बीमार होता है परजीवी घनत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है.
मलेरिया का संमक्रण चार जीवन चक्रों से गुजरता है. जहां वे सभी अलग अलग अवस्थाओं में होते हैं. यदि इनमें से एक लिए भी बढ़िया वैक्सीन मिल गई तो हम संक्रमण का यह चक्र तोड़ देंगे और वैक्सीन बनाते समय यही कोशिश थी. यह वैक्सीन मच्छर के काटने के बाद त्वचा में बनने वाले स्पोरोजोआइट्स को निशाना बनाती है यानि शरीर में संक्रमण फैलने से पहले ही उसे नष्ट कर दिया जाता है. कहा जा सकता है कि अगले 10 सालों में नहीं तो अगले 15 सालों या 2040 तक मलेरिया दुनिया से खत्म हो जाएगा.