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युवाओं के कारण हुई है मिजोरम में जेएडपीएम की जीत 


रणघोष अपडेट. देशभर से 

पांच राज्यों के पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में मिजोरम के चुनाव नतीजों ने देश भर के लोगों को चौंकाया है। यहां सत्ता में रही मिजो नेशनल फ्रंट या एमएनएफ को करारी हार हुई और एक नई पार्टी जोरम पीपुल्स मूवमेंट या जेएडपीएम को भारी जीत मिली है। इस नई पार्टी ने मिजोरम विधानसभा की 40 में से 27 सीट पर जीत दर्ज की है। मिजोरम में जेडपीएम की इस जीत के क्या मायने है और एक नई पार्टी ने यह कैसे कर दिखाया इसको लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। मिजोरम में जेएडपीएम की इस जीत के कारणों की पड़ताल करते हुए 5 दिसंबर के इंडियन एक्सप्रेस में जाने-माने लेखक और उत्तर पूर्व मामलों के जानकार संजय हजारिका ने एक आलेख लिखा है। 

इंडियन एक्सप्रेस में छपे इस आलेख में संजय हजारिका ने बताया है कि मिजोरम में जेएडपीएम की जीत युवाओं के कारण हुई है। इसे युवाओं में पैदा हुई परिवर्तन की इच्छा के तौर पर उन्होंने देखा है। उन्होंने लिखा है कि म्यांमार और बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित राज्य मिजोरम में परिवर्तन के लिए आये एक स्पष्ट जनादेश द्वारा युवा मतदाताओं ने एक नई राजनैतिक पार्टी ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट को विजयी बनाया है। जोरम पीपुल्स मूवमेंट या जेडपीएम मूल रूप से सात छोटे और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन है। जिसके कारण मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और सीएम रहे ज़ोरमथांगा को चुनाव में जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। 

ज़ोरमथांगा ने राजधानी आइजोल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था जहां वे नए उम्मीदवार को हाथों हारे हैं। उनके साथ ही उनकी कैबिनेट के प्रमुख सहयोगियों और एमएनएफ के प्रमुख नेताओं को जेएडपीएम ने हराया है। 

इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जिसने 2018 के चुनाव में भी पार्टी को दो सीटें मिली थी और कांग्रेस पार्टी जिसने मिजोरम में 25 वर्षों तक राज्य पर शासन किया ने अपना खाता खोलने के लिए भी संघर्ष किया। वहीं एमएनएफ, जो की हालत यह है कि उसके नेता जोरमथांगा खुद चुनाव हार गये हैं। 10 सीट जीतने वाले एमएनएफ को अब अपने विधायक दल का नया नेता चुनना होगा।  

संजय हजारिका लिखते हैं कि मतदान से कुछ दिन पहले अक्टूबर में दो सप्ताह की यात्रा के दौरान हमने पाया कि चुनावी हवा की दिशा स्पष्ट थी। 

युवा लोग, जो भूमि की इस संकीर्ण पट्टी के मतदाताओं का 62 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं, बदलाव के लिए प्यासे थे। जेडपीएम की रैलियों में उमड़ रहे थे। हालांकि जेएडपीएम मूल रूप से एक एकल पार्टी नहीं है। लेकिन इसके निर्विवाद नेता लालदुहोमा काफी प्रभावशाली व्यक्ति थे। 

वह पुलिस अधिकारी रह चुके हैं। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वह सांसद भी रह चुके हैं। मिजोरम समझौते जिसने एमएनएफ के नेतृत्व में 20 साल के विद्रोह को समाप्त कर राज्य में शांति ला दी थी के बाद के करीब 4 दशक में यह पहली बार है कि राज्य का मुख्यमंत्री ऐसा व्यक्ति होगा जो न तो कांग्रेस से है और न ही एमएनएफ से है। 

मिजोरम में पार्टियों के पास अलग-अलग मंच और स्थानीय नेता हैं, लेकिन वे स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। इनमें मिज़ो पहचान की रक्षा करना, म्यांमार के गृहयुद्ध से भागकर आए चिन शरणार्थियों के साथ एकजुटता और साथ ही मणिपुर संघर्ष से विस्थापित कुकी लोगों के साथ एकजुटता शामिल है। 

दरअसल, कुकी-ज़ो (मिज़ो)-चिन समूहों को एक छत्र समूह के रूप में देखा जाता है जो कई छोटे विविध समुदायों को आश्रय देते हैं, लेकिन एक जैसी भाषाएं बोलते हैं और ईसाई धर्म को मानते हैं। हालांकि ये जनजाति समूह राज्य और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से विभाजित हैं। इस बड़े समूह में रिश्तेदारी की गहरी भावना व्याप्त है, जो बताती है कि कैसे केंद्र सरकार के विरोध के बावजूद म्यांमार से आए चिन शरणार्थियों का मिजोरम में स्वागत किया गया है। राज्य में 45,000 से अधिक चिन शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। म्यांमार में नागरिक आबादी पर सैन्य क्रूरता के कारण उनकी संख्या हाल के समय में काफी बढ़ गई है। जेडपीएम सहित यहां की अन्य पार्टियां समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और नागरिकता संशोधन अधिनियम का भी विरोध करती हैं।

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