नगर निकाय चुनाव की तस्वीर की हकीकत को समझिए……बेशक राजनीतिक दल सिंबल से लड़े, मुकाबला उम्मीदवार अपनी ताकत से ही जीतेगा

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

नगर निकाय चुनाव में भाजपा- कांग्रेस ने पार्टी सिंबल से लड़ने का एलान कर दिया है लेकिन हकीकत में इससे पार्टी को ज्यादा फायदा होने वाला नहीं है। आमतोर पर इन छोटे चुनाव में उम्मीदवार की अपनी जमीनी ताकत, व्यवहार, काम करने के तौर तरीकों को देखकर मतदाता अपने मत का प्रयोग करता है। यह सीधे तौर पर फेस टू फेस चुनाव है। इसमें उम्मीदवार को किसी भी तरह हर घर में हाजिरी लगानी जरूरी होती है। मतदाता सीधा प्रत्याशी से जुड़ाव चाहता है। इसमें पुराने उम्मीदवारों के सामने कई तरह की चुनौतियां भी होती है तो अनुभव का लाभ भी मिलता है। इन उम्मीदवारों के पांच साल के कार्यकाल में अलग अलग वजहों के चलते वार्ड में खिलाफत करने वाला धड़ा भी बन जाता है। लेकिन दूसरी तरफ चुनाव कैसे जीता जाता है के गणित का तर्जुबा भी उसे समझ में आ जाता है। इन उम्मीदवारों को पता होता है कि चुनाव में वोट बैंक किस रास्ते से होकर अपनी ताकत दिखा रहा है या कमजोर कर रहा है। दूसरी तरफ नए प्रत्याशी के लिए सबकुछ नया होता है। हालांकि चुनाव लड़ने वाले पहले से ही अलग अलग तरीकों से वार्ड में अपना होमवर्क पूरा कर चुके होते हैं। पहली बार उतरे उम्मीदवारों के लिए प्लस प्वाइंट यह है कि उनका निजी विरोध कम होता है लेकिन राजनीति अनुभव नहीं होने की वजह से उनका गणित फेल होने का डर बना रहता है। इस चुनाव में अगर पार्टियां चेयरमैन के साथ साथ पार्षद उम्मीदवार भी सिंबल से उतारती है तो इसका फायदा निर्दलीय लड़ने वालों को ज्यादा होगा। उसकी वजह राजनीति में सहयोग करके नहीं एक दूसरे को कुचलकर आगे बढ़ने का फार्मूला ज्यादा असरदार माना जाता है। टिकट एक को मिलती होती है। ऐसे में अन्य दावेदार किसी सूरत में नहीं चाहेंगे कि उनकी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतकर आगे के लिए अपना मैदान मजबूत कर ले। खासतौर से छोटे चुनाव में यह स्थिति आमतौर पर बनी रहती है। इसलिए यहां निर्दलीय उम्मीदवार मजबूत स्थिति में रहता है बशर्ते उसकी अपनी मजबूत पकड़ भी हो। कुल मिलाकर पहली बार नगर निकाय का चुनाव बहुत कम समय में रोचक और आगे की राजनीति के लिए बहुत कुछ तय करने जा रहा है।

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