शहर की सरकार के इतिहास में पहली बार वैश्य समाज ने तीन सीटों पर कब्जा जमाया
रणघोष अपडेट. वोटर की कलम से
नगर परिषद रेवाड़ी चुनाव में पहली बार रेवाड़ी वैश्य समाज ने वार्ड पार्षद की तीन सीटों पर कब्जा जमाकर अपनी मजबूत दावेदारी पेश की। इसमें दो भाजपा के सिंबल पर जीते तो एक भाजपा की टिकट नहीं मिलने पर आजाद प्रत्याशी के तौर पर कांटे के मुकाबले में जीत दर्ज कर गए। तीनों की जीत की अलग अलग कहानियां हैं। एक कॉमन बात जरूर है कि इनके पीछे समाज पहली बार एकजुट नजर आया। यहां जाति वोट कार्ड अपना काम कर गया। इसके अलावा इन उम्मीदवारों की अपनी रणनीति एवं मेहनत भी जीत का आधार बन गईं। शुरूआत करते हें वार्ड 21 से सबसे बुजुर्ग उम्मीदवार राजेंद्र सिंहल से। यह भाजपा की नजर में सबसे सुरक्षित सीट थी। यहां से चेयरपर्सन पद की उम्मीदवार पूनम यादव एवं उनके पति बलजीत यादव लगातार पार्षद बनते आ रहे थे। इस सीट पर चेयरपर्सन बनने की चौधर का नारा असर डाल रहा था। खुद पूनम यादव एवं बलजीत यादव की अपनी छवि और करवाए गए विकास कार्य भी अपना प्रभाव बनाए हुए थे। इसलिए यहां राजेंद्र सिंहल की जीत का गणित पहले से ही मजबूत था और वे 613 वोटों से जीत दर्ज कर पहली बार निर्वाचित पार्षद बन गए। इसी तरह वार्ड 23 से भाजपा के सिंबल पर पार्षद बने भूपेंद्र कुमार गुप्ता तीन साल से ज्यादा समय से चुनाव की तैयारी कर रहे थे। हालांकि वे सरकार द्वारा नामित पार्षद भी रहे हैं। भूपेंद्र गुप्ता ने अपनी दिमाग की राजनीति से इस चुनाव को जीता है। उसे पता है कि राजनीति छोटी हो या बड़ी पहले उसका रास्ता तलाशना जरूरी है। कहां ब्रेकर आएंगे और कहां पानी में नजर नहीं आने वाला गड्ढा उसे डूबो सकता है। इसलिए भूपेंद्र ने अपनी तरकश में सारे तीर रखे हुए थे। पहले वार्ड में अपनी जमीन तैयार की। लगातार लोगों के संपर्क में रहे। टिकट मिलती है तो क्या समीकरण बनाने हैं और नहीं मिलने की स्थिति में किस योजना के तहत इस चुनाव को जीतना है। साथ ही किस नेता का कितना प्रभाव काम करता है। उसी हिसाब से अपनी रणनीति को आगे बढ़ाया और लंबे समय से काबिज रामौतार छाबड़ी को शानदार 847 वोटों से हरा दिया। इस सीट पर भूपेंद्र की अपनी मेहनत भी काफी मजबूत थी। अगर उन्हें भाजपा का सिंबल नहीं मिलता तो भी वे सीट निकालने की पोजीशन रखते थे। वार्ड 18 में मुकाबला बेहद दिलचस्प रहा। यहां हार-जीत का गणित एक- एक वोट पर टिका हुआ था। भाजपा की टिकट नहीं मिलने पर आजाद उम्मीदवार लड़े युवा मनीष गुप्ता को वैश्य समाज समेत एबीवीपी एवं आरएसएस का पूरा सहयोग मिला। मनीष भी पिछले दो सालों से चुनाव की तैयारी में जुटा हुआ था। एबीवीपी में काफी सीनियर पद पर रहने के बाद उसे उम्मीद थी कि भाजपा उसे टिकट जरूर देगी लेकिन सफल नहीं हुए। टिकट नहीं मिलना भी मनीष के लिए फायेदमंद रहा। इस सीट पर काफी धुरंधर चुनाव लड़ रहे थे। इसलिए 24 वोटों से जीत के साथ उसने सैनी समाज के पूर्व प्रधान एवं अलग अलग वार्डों में पार्षद बनते आ रहे चेतराम सैनी को हराकर अपनी मजबूती साबित कर दी। वोटो के धुव्रीकरण में मनीष को कुल 569 वोट मिले। कुल मिलाकर इस बार के चुनाव में वैश्व समाज ने रेवाड़ी के इतिहास में पहली बार अपनी मजबूत उपस्थिति दिखाकर राजनीति के पहले प्रभाव को कायम कर लिया है।