किसान कृषि से जुड़े तीन बिलों को लेकर देशभर में चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच रेवाड़ी जिले के कुछ किसानों ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह को खुला पत्र लिखा है। मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कृष्ण सरपंच घासेड़ा, जय भगवान सरपंच किशनगढ़, करतार सरपंच भगवानपुर, सुरेश सरपंच गोकलगढ़, जितेंद्र सरपंच, सुरेश नंबरदार ढलियावास, सतवीर यादव, दिनेश यादव, चरण सिंह यादव, मदन सिंह, संदीप सिंह, आशीष यादव, मुकेश ने कहा कि किसानों के हितों के नाम पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। हम सभी का यही ध्येय है। हमारा सिर्फ इतना कहना है कि दक्षिण हरियाणा के खेत आज भी एसवाईएल के पानी के लिए कई सालों से तरस रहे हैं। यह वो इलाका है जो हरियाणा गठन के बाद से ही पानी के लिए तरसता रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह किसान के तीनों बिलों को लेकर हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं। हम उनका स्वागत करते हैं लेकिन एसवाईएल मुद्दे पर वो यह क्यों भूल जाते हैं कि यह पानी भी किसानों के खेतों में जाएगा। जहां प्यासी- सूखी जमीन पर फसल लहरा उठेगी। जब हमारे हक के पानी की बात आती है तो वे खून बहाने की बात करते हें। उस समय उन्हें किसान नजर क्यों नहीं आता। हम बताना चाहते हैं कि सन 1981 में एसवाईएल का निर्माण शुरू हुआ था। पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौजूदगी में एसवाईएल के निर्माण का समझौता किया था। वर्ष 1982 में इंदिरा गांधी जी ने पटियाला के गांव कपूरी में नहर का निर्माण का शुभारंभ किया था। वर्ष 1985 को ऐतिहासिक राजीव लोंगोवाल समझौता हुआ, जिसके तहत इराडी कमीशन का गठन हुआ, उस समय कांग्रेस सरकार ने कमीशन के सामने हरियाणा का पक्ष रखा था कमीशन द्वारा हरियाणा को 3.83 मिलीयन फुट पानी का अधिकार दिया गया। परंतु बार–बार हरियाणा के हिस्से का पानी मिलने में देरी होती रही, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 को पंजाब को निर्देश दिए कि या तो एक वर्ष में एसवाईएल नहर बनवाए या फिर इसका कार्य केंद्र के हवाले करे। सुप्रीम कोर्ट का वर्ष 2002 और वर्ष 2004 का एसवाईएल का हरियाणा के हक में आया फैसला लागू हो गया। इसके बाद भी जब हरियाणा प्रदेश को उसके हक़ का पानी नहीं मिला तो वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय लिया और एसवाईएल निर्माण की जिम्मेदारी का स्पष्ट आदेश केंद्र सरकार को दिया गया। वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक और ऐतिहासिक निर्णय में पंजाब सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में एसवाईएल निर्माण के निर्णय को स्थगित करने की अपील की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि एसवाईएल नहर निर्माण के अदालत के निर्णय को हर हालत में लागू किया जाए। वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों राज्यों को अपने अधिकारियों की कमेटी बनाकर मामला सुलझाने के निर्देश देने के साथ ही साफ कर दिया गया कि अगर दोनों राज्य आपसी सहमति से नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा। एक आकंड़े के मुताबिक हरियाणा में करीब 40 लाख हैक्टयेर कृषि योग्य जमीन है, इसमें 33 प्रतिशत भूमि की सिंचाई नहरी पानी से, 50 प्रतिशत की सिंचाई टयूबवलों के माध्यम से तथा 17 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई बरसात के पानी से होती है। जबकि हरियाणा प्रदेश में 30 लाख हैक्टयेर भूमि के नहरों का जाल बिछा हुआ है। लेकिन पानी नहीं होने से प्रदेश की नहरें सूखी पड़ी रहती है। आज दक्षिण हरियाणा बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहा है। इस पर पंजाब सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह क्यों दूसरे चेहरे में नजर आते हैं। हम सभी किसान के साथ साथ गांव के सरपंच भी है। इसलिए उनसे अपील है कि वो किसानों की आवाज के साथ साथ एसवाईएल नहर से हमारे हिस्से का पानी भी दे जो व्यर्थ तौर पर पाकिस्तान में जा रहा है।