रणघोष खास. देशभर से
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत भले ही कम हो, भारत में डीज़ल–पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। क्या इसकी बड़ी वजह यह है कि केंद्र व राज्य सरकार इस पर टैक्स बढ़ाती रहती हैं और अपने घाटे की भरपाई इससे ही करती है? रविवार को पेट्रोल की कीमत दिल्ली में 87.50 रुपए और मुंबई में 92.28 रुपए थी। इस दिन डीज़ल की कीमत दिल्ली में 75.88 रुपए और मुंबई में 82.66 रुपए है।
सच क्या है?
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में शनिवार को कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 52.48 डॉलर थी। एक बैरल तेल लगभग 42 गैलन या 159 लीटर होता है।
शनिवार को डॉलर की कीमत 73 रुपए थी, यानी एक बैरल कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में 3831.04 रुपए थी। इस हिसाब से एक लीटर कच्चे तेल की कीमत 24.094 रुपए बैठती है।
इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए कीमत के ब्रेक अप को समझा जा सकता है। कच्चे तेल को साफ करने पर लगभग 3.84 रुपए खर्च होता है और इस तरह तेल की कीमत 28.75 पैसे बैठती है।
कच्चा तेल सस्ता, पेट्रोल महंगा
यह दर दिल्ली की है। अलग-अलग राज्यों में वैट अलग-अलग होता है।
इस तरह यह साफ हो जाता है कि कच्चे तेल की कीमत, रिफाइनरी चार्ज, परिवहन और कमीशन का जो खर्च बैठता है, उससे ज़्यादा इस पर टैक्स देना होता है। यानी दिल्ली शहर में पेट्रोल की कीमत 87.50 रुपए थी, उसमें सबसे ज्यादा 52.30 रुपए टैक्स था। यह अजीब विरोधाभाष है कि भारत में पेट्रोल और डीजल की क़ीमतें ऐसे समय में रिकॉर्ड ऊँचाई पर है, जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें कम हैं। बीजेपी के सत्ता में आने के एक साल पहले यानी 2012-13 में कच्चे तेल की कीमत जहां 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई थी, वह उनके सत्ता में आने के बाद ही गिरने लगी और कोरोना काल में वह 25 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई। यह बढ़ी, लेकिन अभी भी मनमोहन सिंह के समय की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल से काफी कम है, लेकिन उस जमाने से बहुत ज्यादा है।मनमोहन सिंह सरकार ने 25 जून 2010 को पेट्रोल की कीमत से सरकारी नियंत्रण हटा लिया, यानी उसकी कीमत सरकार तय नहीं करेगी, वह बाज़ार के मांग–खपत सिद्धान्त से तय होगी। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरन्त बाद 19 अक्टूबर, 2014 को डीज़ल की कीमत को नियंत्रण–मुक्त कर दिया।
जितनी कीमत, उससे ज़्यादा टैक्स
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत के साथ ही पेट्रोल–डीज़ल की कीमत रोज घटती–बढ़ती है क्योंकि सरकार सब्सिडी नहीं बढ़ाती है। इस वजह से पेट्रोल की कीमत दिल्ली में जो थी, उसका लगभग 65 प्रति हिस्सा तो सिर्फ टैक्स था। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनलिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार, 2019-2020 के दौरान केंद्र सरकार को पेट्रोल–डीज़ल की बिक्री से 2.23 लाख करोड़ रुपए का टैक्स मिला। वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में 2.67 लाख करोड़ रुपए बतौर उत्पाद कर मिलने की संभावना जताई गई है। कुल मिलाकर पेट्रोल- डीजल पर लगा टैक्स हमारी जिंदगी में आग लगा रहा है। यह आग फैलेगी या कंट्रोल में रहेगी। कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस सवाल पर सरकार ने अपनी जवाबदेही से आजादी पा ली है।