खुद बनाते हैं खाना, एक दूसरे का रखते पूरा ध्यान
रणघोष अपडेट. बव्वा की कलम से
मिलिए कोसली उपमंडल के गांव बव्वा निवासी 90 साल के सोहनलाल एवं 88 साल की चांदबाई से। कमाल की बात देखिए दोनों किसी पर आश्रित नहीं है। चांदबाई आज भी चूल्हे पर रोटी बनाती है और सोहनलाल उसका आनंद लेते है। हालांकि परिवार के सभी सदस्य उनका पूरा ख्याल रखते हैं। सोहनलाल फौजी है और आाजादी के समय ही देश की आवाज पर सेना में भर्ती हो गए थे। उसी दौरान उनकी शादी गांव बचीनी की चांद बाई से हो गई थी जो उनसे 2 साल छोटी थी। सोहनलाल ने 1962 में चीन से और 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध भी भाग लिया था। उसके बाद वे रिटायर होकर गांव आ गए। उनके एक बेटा नरेंद्र उर्फ टिल्लू भी 1984 में सेना में भर्ती हो गया। दो बेटियां पढ़ लिखकर अपने ससुराल चली गईं। सोहनलाल स्वास्थ्य के प्रति बचपन से ही सजग रहे। फौज में वैसे भी शरीर पर पूरा ध्यान दिया जाता है। उनके बेटे टिल्लू बताते हैं कि पिताजी खान पीन में किसी तरह का कोई समझौता नहीं करते हैं। आज भी मां अपने हाथ से उनके लिए खाना बनाती है। वे आज भी अपनी जीवन शैली से जीवन को आगे बढ़ा रहे हैं। अपनी दिनचर्या का कार्य भी खुद करते हैं। दो साल पहले तक वे सुबह रोज 4 बजे उठकर स्नान कर मंदिर में जाते थे। अब एक घंटा देरी से उठते हैं लेकिन अपने शरीर के प्रति गंभीर है। उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है। दोनों एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते हैं। सादा जीवन सादा खाना ही उनके बेहतर स्वास्थ्य होने का असली राज है। आज की पीढ़ी अगर 50 प्रतिशत भी उनकी जीवन शैली को अपना ले तो अनेक तरह की बीमारियों से बच सकती है। हमारे बुजुर्ग मूल्यों से समझौता नहीं उसे मजबूत करने के लिए संघर्ष करते हैं।