‘दिव्यांग बेटे का रखूं ध्यान इसलिए नहीं पैदा की दूसरी संतान’, रंग लाया त्याग, बेटा बना मिस्टर इंडिया
मिस्टर इंडिया प्लस का खिताब जीत चुके आशुतोष की मां सुदेश को उस वक़्त बड़ा सदमा लगा था जब उन्हें पता चला कि उनका डेढ़ साल का बेटा सुन नहीं सकता। वे बेहद परेशान और चिंतित हुईं लेकिन अब वे अपनी आंखों में खुशी और होठों पर मुस्कुराहट के साथ बताती हैं कि उनका बेटा उनकी सबसे बड़ी ताकत और गर्व है। वाकई, ‘कुछ भी असंभव नहीं है’…जैसे वाक्य किताबी नहीं लगते जब आप 28 साल के आशुतोष से मुखातिब होते हैं।
गुरुग्राम के मारुति विहार में रहने वाले आशुतोष तब सुर्खियों में आए जब 28 फरवरी 2021 को एमएस ब्यूटी पीजेंट द्वारा आयोजित मिस्टर इंडिया प्लस का खिताब उन्होंने अपने नाम किया। राजधानी दिल्ली में आयोजित इस प्रतियोगिता में उन्हें 10 प्रतिभागियों को कड़ी टक्कर देने के बाद यह कामयाबी मिली।
मिस्टर इंडिया प्लस के खिताब से सम्मानित आशुतोष
आशुतोष भले ही जन्म से ही सुनने में असमर्थ हैं, लेकिन उनकी मेहनत और कोशिशों के आगे उनके सामने आने वाली कठिनाइयां हांफने लगती हैं। उनकी मां बताती हैं, “आशुतोष ने बचपन से लेकर अब तक कभी भी खुद को कमतर नहीं समझा और न ही कड़ी मेहनत से वह कभी पीछे हटा। इसीलिए, दिल्ली के हंसराज कॉलेज से बीकॉम (ऑनर्स) और आईआईएम लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त की। इस वक्त वह इंडसइंड बैंक में एसोसिएट मैनेजर के पद पर कार्यरत है।”
मॉडलिंग और अभिनय का शौक रखने वाले आशुतोष वाद विवाद प्रतियोगिताओं में भी अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। दुभाषिए के जरिए वे अपने विचारों को लोगों के समक्ष रखकर कई पुरस्कार बंटोर चुके हैं। आशुतोष लिखकर भी खुद को अभिव्यक्त करते हैं। उनकी राइटिंग भी काफी खूबसूरत बनती है।
आशुतोष का लिखा हुआ संदेश
मिस्टर इंडिया प्लस में भाग लेने के बारे में कैसे ख्याल आया इस सवाल पर वे लिखकर बताते हैं, “स्कूल कॉलेज से लेकर अब तक डिबेट और आर्ट मेरे दो पैशन रहे हैं। मैं द ड्रामेटिक सोसाइटी (अभिव्यक्ति) आईआईएम लखनऊ का मुख्य सदस्य था। मैंने विभिन्न मंचों पर अपनी टीम के साथ नाटकों का प्रदर्शन किया जो मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रहा है। इस तरह ऐसे आयोजनों में हमेशा मेरी दिलचस्पी रही है।”
आशुतोष के परिश्रम और सफलता की इस कहानी के पीछे उनकी मां की भी बहुत बड़ी भूमिका है। उनकी मां बताती हैं कि जिस दिन उन्हें अपने बेटे की विकलांगता का पता चला उस वक़्त भले ही उन्हें धक्का सा लगा था। लेकिन उन्होंने तय किया कि वे और कोई संतान नहीं लेंगी। अर्थशास्त्र की व्याख्याता के तौर पर नौकरी कर रही सुदेश ने फैसला किया कि वे आशुतोष पर ही अपना पूरा ध्यान देंगी। अपने बेटे के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और उसकी स्कूलिंग और स्पीच थैरेपी के लिए जुट गईं। वे मुस्कुराते हुए कहती हैं, “मुझे अब बेटी की भी कमी महसूस नहीं होती। आशुतोष मेरे हर काम में हाथ बटाता है। वह बहुत अच्छा खाना भी बनाता है।”
एक नाटक के दौरान प्रस्तुति देते आशुतोष
आशुतोष बैंक में अपनी नौकरी के साथ-साथ अपनी हॉबी को भी भरपूर तवज्जो देते हैं। अभिनय से संबंधित कई वीडियो वगैरह बनाकर सोशल मीडिया पर भी साझा करते रहते हैं। आशुतोष का कहना है, “मेरे नाम का अर्थ आसानी से और जल्दी से संतुष्ट होना भले है लेकिन इसमें विरोधाभास है। क्योंकि मैं शायद ही कभी संतुष्ट होता हूं। मैं अपने नतीजों को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहता हूं और मुस्कान के साथ आगे बढ़ता हूं चाहे सफर कितना भी मुश्किल क्यों न हो। मैं ‘नथिंग इज इम्पॉसिबल’ (कुछ भी असंभव नहीं है) के सिद्धान्त पर यकीन रखता हूँ।”