इस बार ‘महाभारत काल’ तक पहुंचने का है एएसआई का लक्ष्य
दिल्ली आने वाले ज्यादातर पर्यटक लाल किला और कुतुब मीनार ही देखते हैं. एएसआई को उम्मीद है कि वो जी20 सम्मेलन तक लोगों के सामने एक ऐसा पुराना किला पेश करेंगे जहां दिल्ली का 2500 सालों का इतिहास होगा.
रणघोष अपडेट. कृष्ण मुरारी दि प्रिंट से
मिट्टी की अलग-अलग परतों से जो जानकारी मिली है, उससे यही पता चलता है कि दिल्ली का इतिहास काफी पुराना है और पुराना किला परिसर में गहराई से इसका रहस्य छिपा हुआ है. इस परिसर में पुरातात्विक उत्खनन फिर से शुरू हो चुका है और इस बार का लक्ष्य उस स्तर तक पहुंचना है जिसे महाभारत का समय माना जाता है, जो कि तकरीबन 900 ईसा पूर्व का है.पुरातत्वविद वसंत स्वर्णकार के नेतृत्व में उत्खनन का काम शुरू हुआ है. 2013-14 और 2017-18 में हुई पिछली दो खुदाई भी उन्हीं के नेतृत्व में की गई थी. उस समय मौर्य से लेकर शुंग, कुशान, गुप्त, राजपूत, सल्तनत और मुगल काल की सांस्कृतिक सामग्रियां यहां मिली थीं.इस बार की खुदाई का एक और भी लक्ष्य है. इस साल सितंबर में होने वाले जी20 सम्मेलन में आने वाले डेलीगेशन को भी दिल्ली के इतिहास से रू-ब-रू कराया जाएगा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के प्रवक्ता स्वर्णकार ने बताया, ‘खुदाई का काम जी20 को नजर में रखकर नहीं किया जा रहा है. लेकिन भारत आने वाले डेलीगेशन को यहां लाकर ये दिखाया जाएगा.’पद्म विभूषण से सम्मानित पुरातत्वविद स्वर्गीय बीबी लाल ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने 1954 में और फिर 1969-73 में पुराना किला के अंदर किए गए विस्तृत उत्खनन कार्य के दौरान इस स्थल को सबसे पहले महाभारत काल से जोड़ा था.पुरातत्वविद के.के. मुहम्मद ने भारत के किलों के बारे में 2015 की दूरदर्शन की एक सीरीज़ में कहा था, ‘इस स्थान की प्राचीनता महाभारत काल से जुड़ी है. इंद्रपथ (किले की दीवारों के भीतर मौजूद एक प्राचीन शहर) का उल्लेख न केवल प्राचीन भारतीय साहित्य में बल्कि फारसी साहित्य में भी मिलता है. यह उन पांच स्थानों में से एक है जिन्हें पांडव चाहते थे.’
अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं
लाल ने दावा किया था कि पुराना किला ही पांडवों का इंद्रप्रस्थ है. जबकि इस तरह के कोई प्रत्यक्ष या निर्णायक सबूत मौजूद नहीं है. पुराना किला में पेंटिड ग्रे मिट्टी के बर्तनों की खोज, एक संपन्न संस्कृति के अस्तित्व की ओर इशारा करती है जो 600-1200 ईसा पूर्व तक की हो सकती है. इस खोज के कारण इस अवधि को आधिकारिक रूप से पेंटेड ग्रे वेयर (पीजीडब्ल्यू) संस्कृति कहा जाने लगा.किले और पांडव साम्राज्य के बीच संबंध को भारत सरकार भी मानती है. सरकार के ‘भारतीय संस्कृति’ पोर्टल में कहा गया है, ‘पुरातत्व के अलावा, अबुल फ़ज़ल (16वीं शताब्दी) के ऐन-ए-अकबरी जैसे पाठ्य स्रोतों में उल्लेख है कि हुमायूं ने पांडवों की प्राचीन राजधानी इंद्रप्रस्थ के स्थान पर किले का निर्माण किया था.’ साथ ही बताया गया कि 1913 तक किले की दीवारों के भीतर इंद्रपथ नामक एक गांव था लेकिन जब अंग्रेजों ने दिल्ली में आधुनिक राजधानी का निर्माण शुरू किया, तब इस गांव को स्थानांतरित कर दिया गया.स्वर्णकार के मुताबिक, ‘आज दिल्ली में सिर्फ मुगल और कोलोनियल लेयर दिखती है लेकिन यहां का इतिहास इससे भी पुराना है. माना जाता है कि दिल्ली सात बार बसी और उजड़ी लेकिन इसे मध्य काल से ही हमेशा जोड़कर देखा गया।
मिट्टी में छिपे रहस्य
पुराना किला और इसके नीचे की जमीन में ऐसे उत्तर छिपे हैं जो दिल्ली के समृद्ध और विस्मृत इतिहास को परत दर परत खोल सकते हैं. स्वर्णकार द्वारा 2017-18 में की गई पिछली खुदाई सबसे निचले स्तर तक नहीं हो पाई थी. एएसआई को उम्मीद है कि महाभारत काल के और भी पेंटिड ग्रे वेयर यहां मिल सकते हैं.स्वर्णकार ने कहा, ‘सबसे पहले यहां कौन आकर बसा, उसके बारे में तभी पता चलेगा जब हम सबसे निचली मिट्टी (नेचुरल स्वाइल) तक पहुंचेंगे.’
हर दिन सुबह 8 बजे से पुराना किला परिसर में खुदाई का काम शुरू हो जाता है. दो इंटर्न सहित छह पुरातत्वविद 2013-14 और 2017-18 में खोदे गए ट्रेंच को फिर से अपने ट्रॉवेल्स और ब्रश से खोदना शुरू कर देते हैं.13 जनवरी को यहां खुदाई शुरू हुई थी. इसने न केवल पर्यटकों के बीच बल्कि आसपास रहने वाले निवासियों के बीच भी उस शहर के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुकता पैदा कर दी है जिसे वे अपना घर मानते हैं. पुराना किला घूमने आने वाले लोग स्वर्णकार की टीम को काम करते हुए देखते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यहां हो क्या रहा है.
इतिहास की पड़ताल
चार में से दो ट्रेंच की खुदाई का काम शुरू हो चुका है. हर ट्रेंच को चार हिस्सों में बांटा गया है और बारी-बारी से हर हिस्से में काम किया जाता है.
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