पश्चिम बंगाल के मिदनापुर की एक रैली में शुभेंदु अधिकारी ने शनिवार को अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा का दामन थाम लिया। बंगाल में शुभेंदु की छवि एक जननेता की है। वह अकेले 6 जिलों की कई सीटों पर असर डाल सकते हैं, जिससे टीएमसी को भारी नुकसान होने की आशंका है। पश्चिम बंगाल की 65 विधानसभा सीटों पर शुभेंदु अधिकारी की मजबूत पकड़ है। ये सीटें राज्य के छह जिलों में हैं। शुभेंदु पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए। खुद शुभेंदु कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं।
नंदीग्राम में खड़ा किया था आंदोलन
2007 में शुभेंदु अधिकारी ने पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में एक इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के खिलाफ भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। शुभेंदु ने भूमि उछेड़ प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले ये आंदोलन खड़ा किया था, जिसका बाद में पुलिस और वाम दलों के कैडर के साथ खूनी संघर्ष ङुआ था। इसी के बाद सिंगूर में भी भूमि अधिग्रहण आंदोलन तेज हो गया था। जिसने ममता बनर्जी को सत्ती में पहुंचाने में मदद की थी।
बड़ा वोट बैंक
नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों का प्रभाव पूरे राज्य में देखा गया था, लेकिन आसपास के जिलों में कुछ ऐसा हुआ जिसने शुभेंदु को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर दिया। 2016 में तृणमूल कांग्रेस को शुभेंदु की प्रभाव वाली सीटों पर पर करीब 48 फीसदी वोट मिले, जबकि वाम मोर्चा को 27 फीसदी और भाजपा को 10 फीसदी वोट मिले। हालांकि, पिछले साल राज्य में 18 संसदीय सीटें हासिल करने के बाद बीजेपी अब बंगाल में मुख्य विपक्ष के रूप में तृणमूल कांग्रेस को टक्कर दे रही है।