श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने की संभावना को लेकर मंदिर कमेटी व जला प्रशासन हुआ स्तर्क
लॉक डाऊन के बाद बाघेश्वर धाम बागोत में फाल्गुन माह की त्रयोदशी के दिन 11 मार्च गुरुवार को कांवड़ मेला आयोजत होगा। जो शिवभक्त बीते सावन माह से हरिद्वार से गंगाजल नहीं ला सके थे। उनमें से अधिकांश श्रद्धालु महाशिवरात्री पर कांवड़ लेकर पंहुच रहे हैं। उनके द्वारा बम-बम का जयघोष के बीच प्राकृतिक शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जायेगा। मंदिर के महंत रोशनपुरी ने कहा कि कोरोना काल में लॉकडाऊन के चलते 400 वर्ष के इतिहास मेें बीते सावन माह में कांवड़ मेला आयोजित नहीं किया जा सका। रोशनपुरी ने बताया कि महाशवरात्री के दौरान सैंकडों कांवड़ अर्पित की जायेगीं तथा कोरोना महामारी को लेकर पूरी ऐतिहात बरती जायेगी।
नंदिनी गाय पर बाघ के आक्रमण से बना बाघेश्वरधाम
महंत रोशनपुरी व 80 वर्षीय ग्रामीण बम लहरी ने जानकारी देते हुए बताया कि दुबलधन में ऋषि दुर्वासा, ढोसी मेें ऋषि च्यवन, स्याणा में ऋषि उद्दालक व बागोत में ऋषि पिप्लाद का वास था। एक प्रसिद्ध किवंदती के मुताबिक ऋषि पिप्लाद यहां पर तपस्या कर रहे थे, राजा दिलीप को कोई संतान नहीं थी। जिसे लेकर वे दुखी थे, दुख के निवारण के लिए वे अपने कुलगुरू वशिष्ठ के पास गए ओर अपना दुखद वृतांत सुनाया। गुरु वशिष्ठ ने पिप्लाद ऋिषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय व कपिला बछिया को उपवास रखकर चराने को कहा। राजा दिलीप प्रतिदिन उपवास रखकर उन्हें चराने जंगल में जाता तो एक दिन शंकर भगवान ने राजा की परीक्षा लेने के लिए बाघ का स्वरूप धारण कर बछिया पर धावा बोल दिया। राजा की नजर जब बाघ पर पड़ी तो हाथ जोडक़र प्रार्थना करते हुए कहा कि वह उन्हें अपना भोजन बना ले ओर बछिया को बख्शीश दे। माना गया कि वे बछिया को खाने देते तो गाय का श्राप लगेगा ओर गाय को खायेगा तो उनकी तपस्या पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसा कहकर उन्हें अपने आप को बाघ के सामने पटक दिया। कुछ समय बाद कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने सिर उठाकर देखा तो उनके सामने भोले शंकर खड़े थे। इस किवंदती के बाद इस स्थान का नाम बाघेश्वर धाम पड़ा। पिप्लाद की माता सविता यहां पर सती हुई थी जिनका मंदिर भी बना हुआ है।
यहां पर प्रसिद्ध प्राचीन प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग है। जिनकी महिमा निराली है। जिसके बारे में बताया गया है कि इस शिवलिंग को झज्जर के नवाब फकरुद्दीन ने अपनी सेना को उखाड़ फेंकने का आदेश दिया था। लेकिन सेना इसे उखाडऩे में असफल रही थी। खुदाई के दौरान वहां पर काले सर्प निकले थे जिससे सैनिक कार्य छोडक़र भाग खड़े हुए थे। राजा ने यहां पर पशु मेला आयोजित करने का फरमान दिया। एक समय जब पशु मेला लगा था तो भयकंर औलावृष्टि हुई जिससे अनेकों पशु मारे गए। उसके बाद राजा ने गंगा जल लेकर जलाभिषेक करते हुए पुन: मेले की शुरूआत की। उसके बाद से यहां पर कांवड़ मेला आयोजित किया जाने लगा। शिवभक्त प्रतिवर्ष सावन व फाल्गुन माह की त्रयोदशी को आयोजित मेले में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
ब्रह्माजी व विष्णु विवाद में केतकी के फूल हुए पूजा से वंचित
एक बार ब्रह्मा जी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के रचियता होने के कारण श्रेष्ठ का दावा करत रहे वहीं भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। तभी वहां पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से निश्चय किया कि इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने लगे। छोर न मिलने के कारण विष्णु जी लौट आए लेकिन ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने विष्णु जी से कहा कि वे छोर तक पंहुच गए हैं। उन्होंने केतकी के फूल को इस बारे में साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिवजी वहां प्रकट हुए ओर उन्होंने ब्रह्मा जी का एक सिर काट दिया ओर केतकी के फूल का श्राप दिया कि वे पूजा से वर्जित रहेगें। उनके मुताबिक पूजा में कभी भी केतकी के फू लों का इस्तेमाल नहीं होगा और ब्रह्मा जी की पूजा भी नहीं की जाएगी। इसी के चलते केतकी के फूल पूजा से वर्जित हैं ओर ब्रह्मा जी की भी पूजा नहीं की जाती।
मंदिर कमेटी हुई मुस्तैद
निवर्तमान ग्राम सरपंच विनोद कुमार ने बताया कि महाशिवरात्री के पर्व पर श्रद्धालुओं की भीड़ की संभावना के चलते मंदिर कमेटी तथा उपमंडल प्रशासन की ओर से स्र्तकता बरती जा रही है। उनका चार्ज प्रशासक द्वारा लिये जाने के बाद बीडीपीओ की ओर से दुकानों की तहबाजारी अलाट की जायेगी वहीं मेला मैदान की सफाई भी उनके द्वारा ही करवाई जायेगी। उन्होंने बताया कि यहां पर 7 आंगनवाड़ी केंद्र व करीब 30 धर्मशाला बनी हुई हैं। मेले के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को एकत्रित नहीं होने दिया जायेगा। मेला कमेटी के सद्स्यों कैलाश चंद, महिपाल नम्बरदार, जिले सिंह, सुशील कुमार ने कहा कि मेले के दौरान पूरी ऐतिहात बरती जायेगी।