संजय सिंह का भरोसा कमजोर पड़ गया, विश्वामित्र का विश्वास काम कर गया
रणघोष अपडेट. रेवाड़ी
बार एसोसिएशन रेवाड़ी के इस बार आए चुनाव परिणाम हर लिहाज से चौकाने वाले रहे। प्रधान पद के लिए जिस संजय सिंह यादव की जीत को एक दिन पहले तक निश्चित ओर बेफ्रिक माना जा रहा था वे अच्छी खासी 200 से ज्यादा वोटो से हार गए। विश्वामित्र का विश्वास अपना काम कर गया। इसकी समीक्षा करने पर कई वजह सामने आई है।
बार एसोसिएशन चुनाव में प्रधान पद के लिए सबसे पहले एडवोकेट संजय सिंह यादव ने लड़ने का एलान किया था। कुछ दिनों बाद एडवोकेट विश्वामित्र भी मैदान में उतर आए। शुरूआती चरण से ही संजय सिंह यादव असरदार नजर आ रहे थे। इसकी कई वजहें थी। पहली वे पूर्व प्रधान धर्म सिंह यादव के बेटे थे। बार के अधिकतर पूर्व प्रधान एवं वरिष्ठ अधिवक्ताओं का समर्थन भी खुलकर संजय सिंह यादव के पक्ष में नजर आ रहा था। ऐसा लग रहा था यह चुनाव एकतरफा है। उधर एडवोकेट विश्वामित्र यादव खुद को बेहद साधारण पेश करते हुए 5 से 10 साल से प्रेक्टिस कर रहे युवा अधिवक्ताओं को अपने विश्वास में लेने में सफल रहे। उनका मानना था की कई सालों से प्रभावशाली ओर असरदार लॉबी ही इस सीट पर काबिज होती रहेगी तो हमारा नंबर कब आएगा। यहां विश्वामित्र अपनी बात सहज भाषा एवं लहजे में उन अधिवक्ताओं को समझाने में सफल रहे जो दूसरे धड़े में किसी कार्यकाल में प्रधान रहे अधिवक्ता से किसी कारण से दूरियां रखते थे। जो सीनियर्स अधिवक्ता संजय सिंह यादव के साथ खुलकर सामने आ रहे थे। वे बजाय कैंपेन या इधर उधर प्रचार करने के इस भ्रम में रहे की युवा एडवोकेट उनकी फेस वैल्यू देखकर हमारे से बाहर नहीं जाएंगे। युवा दिखावे के तौर पर रहे भी लेकिन मतदान के दिन तक विश्वामित्र उनकी वोट पर अपने विश्वास की मोहर लगा चुके थे। मतदान होने तक भी संजय यादव की जीत को मजबूत माना जा रहा था। जैसे ही मतगणना शुरू हुई पहले ही चरण् में संजय सिंह यादव महज कुछ वोटों से पीछे नजर आए तभी भी दावा किया जा रहा था की अगले चरण में वे आगे हो जाएंगे। इसके बाद तो बाजी पूरी तरह से पलटती चली गईं। विश्वामित्र की जीत भी ठीक उसी तरह चौकाने वाली रही जिस तरह भाजपा ने तीन राज्यों में सीएम के नए चेहरे बनाकर की। इससे पूर्व इस तरह के चुनाव में कहने को प्रधान लड़ते हैँ लेकिन हकीकत में कुछ धड़े ही चुनाव की रणनीति तैयार कर उम्मीदवार खड़ा करते हैं। धड़ों के वजन से ही हार जीत का मापदंड तय होता है। इस बार यह फार्मूला भी नहीं चला।