महापुरुषों को अपनी क्षमताओं पर विश्वास होता है वे ही वास्तविक धर्म के संस्थापक एवं सूत्रधार होते हैं। जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने स्थापित कर उपदेश दिया कि यदि धर्म इस जन्म में शांति और सुख नहीं देता है तो उससे पारलौकिक शांति की कल्पना व्यर्थ है। यह बात जैन समाज के 23वें तीर्थकंर भगवान पार्श्वनाथ जयंती अवसर पर स्थनीय छोटी बजारी स्थित जैन स्थानक परिसर में इन दिनों नगर प्रवास पर पधारे उप प्रवर्तक महा श्रवण पंडित रत्न आनंद मुनि तथा प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने बताई। उन्होंने कहा कि भगवान पार्श्वनाथ ने आस्था को नये आयाम दिए। वो कहते थे कि हमारे भीतर अनंत शक्ति है, असीम क्षमता है। उन्होंने जिस धर्म का उपदेश दिया, वह विशुद्ध धर्म था। वे एक क्रांतिकारी युगपुरुष थे। क्रांति का अर्थ है परिवर्तन, जागृति, स्वस्थ विचारों की ज्योति, सत्य की ओर अभियान, पूर्णता की ओर बढ़ना क्रांति है। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। जैन पुराणों के अनुसार तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलतः ही वे तेईसवें तीर्थंकर बने। इस दौरान श्री जैन श्वेताबंर मूर्ति पूजक संघ के तत्वावधान में जैन श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर परिसर में सांयकालीन जाप व अन्य धार्मिक कार्य किए गए। प्रभावना का वितरण इंद्र चंद जैन, देवेन्द्र जैन, मोतीलाल जैन ने सह परिवार किया। संघ महासचिव धीरज जैन ने बताया कि 10 जनवरी को जैन समाधी स्थल परिसर में प्रात कालीन साढे नौ से 11 तक भजन सत्संग होगा, आरती व भंडारे का आयोजन इसके उपरांत किया जाएगा। इस अवसर पर बडी संख्या में जैन श्रद्धालु, मौजिज नागरिक उपस्थित थे।