कहानी यूक्रेन की: कैसे हुआ था जन्म, रूस से कितनी जुड़ी हैं जड़ें?
रणघोष खास. देशभर से
बीते आठ साल से रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष ने न केवल दोनों देशों बल्कि सारी दुनिया को एक ख़तरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। बाक़ी पड़ोसी देशों की तरह यूक्रेन और रूस के बीच साझी विरासत का इतिहास है, जो दोनों को जोड़ने के साथ-साथ एक ढंग से अलग भी करती है। ये कहानी नवीं सदी में मौजूदा यूक्रेन की राजधानी कीएव से शुरू होती है. कीएव प्रथम स्लाविक साम्राज्य की राजधानी थी.
इस राज्य का गठन स्कैंडिनेवियन क़बीले ने किया था जो स्वंय को रूस कहते थे. यही महान मध्याकालीन राज्य बाद में कीएवियन रूस कहलाया। रूस और यूक्रेन दोनों का जन्म इसी महान साम्राज्य से हुआ है. 12वीं सदी में मॉस्को की स्थापना हुई. तब ये शहर कीएवियन रूस साम्राज्य की उत्तर-पूर्वी सरहद थी।
विरासत की कहानी
इस साम्राज्य में ओर्थोडॉक्स क्रिश्चियन धर्म का बोलबाला था. साल 988 में कीएव सम्राट व्लादिमीर प्रथम या सेंट व्लादिमीर स्वयातोस्लाविच द ग्रेट ने इस मत को अपनाया था. व्लादिमीर प्रथम ने मध्यकालीन रूस राज्य का विस्तार मौजूदा बेलारूस, रूस और यूक्रेन से लेकर बालटिक सागर तक किया। इस सारे क्षेत्र में बोली जाने वाली कई बोलियों से बेलारूसी, यूक्रेनी और रूसी भाषाएं निकलीं. ये साझी विरासत इन तीनों देशों को सांस्कृतिक रूप से जोड़ती है. हाल ही में व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की थी कि रूसी और यूक्रेनी लोग एक हैं लेकिन जानकार इससे सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं कि दोनों की उत्पति बेशक एक ही राज्य से हुई हो पर बीती नौ सदियों में यूक्रेन का अनुभव अलग रहा है. क्योंकि उसकी तकदीर का फ़ैसला अलग-अलग समय पर अलग-अलग ताक़तों ने किया है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन में यूक्रेनियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर डॉक्टर एंड्रयू विल्सन कहते हैं, “यूक्रेन को एक क्षेत्र या एक पहचान में बांधने के बजाय एक ‘उलझी पहेली’ की तरह देखना ज़रूरी है। 13 वीं सदी में रूस राज्य के कई सूबों पर मंगोल साम्राज्य का कब्ज़ा हो गया था. लेकिन 14 वीं सदी में कमज़ोर होते मंगोल राज का फ़ायदा मॉस्को और लिथुएनिया नाम की दो सूबों को हुआ. इन दोनों ने रूस को आपस में बांट लिया
इमपश्चिमी यूक्रेन से अलग ही पूर्वी यूक्रेन
कीएव और इसके आस-पास के क्षेत्र पर लिथुएनिया सूबे का कब्ज़ा हुआ. यही लोग यहां रेनेसां और सुधारवादी विचारधारा लेकर आए.
पश्चिमी यूक्रेन के एंड गैलिसिया या कारपेथिन गैलिसिया क्षेत्र पर हैब्सबर्ग साम्राज्य का राज रहा. उस इलाके में अब भी उस काल की सांस्कृतिक विरासत देखी जा सकती है। रूस के एक विख्यात इतिहासकार जॉफ़री होस्किंग ने बीबीसी हिस्ट्री एक्स्ट्रा को बताया था, “पश्चिमी यूक्रेन का इतिहास पूर्वी यूक्रेन से एकदम अलग र हा है। पश्चिमी यूक्रेन में कई लोग रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च के अनुयायी नहीं है. वे ईस्टर्न कैथोलिक चर्च को मानने वाले हैं. ये मत पोप को अपना अध्यात्मिक गुरु मानती है। इसके अलावा यूक्रेन का क्राइमिया क्षेत्र भी बाक़ी देश से काफ़ी अलग है. यहां का संबंध ग्रीक और तातार लोगों से रहा है और मध्यकाल में क्राइमिया रूसी एवं ऑटोमन साम्राज्य के अधीन भी रहा है.
17 वीं सदी में लिथुएनिया-पोलैंड के राष्ट्रमंडल और रूस के ज़ार सम्राटों के बीच युद्ध ने डनाइपर नदी के पूर्व के सारे इलाक़े रूस नियंत्रण में चले गए. यूक्रेन के लोग इस क्षेत्र को अपना ‘बायां किनारा’ मानते थे। मौजूदा यूक्रेन जहां हैं, उसके मध्य और उत्तर पश्चिमी इलाके में 17वीं शताब्दी में एक राज्य था, जिसे साल 1764 में रूस की साम्राज्ञी कैथरीन द ग्रेट ने विलय कर लिया. उन्होंने पोलैंड के अधिकार वाले यूक्रेन के इलाक़े पर भी अधिकार हासिल कर लिया। आने वाले सालों में एक नीतिगत आदेश के तहत यूक्रेन की भाषा के उपयोग और अध्ययन पर रोक लगा दी गई. आस्था को लेकर भी लोगों पर दबाव बनाया गया और इस तरह एक ‘छोटी जातीय’ समूह की रचना कर दी गई।
इअनसुलझी पहेली
इसी बीच पश्चिम के कई देशों में राष्ट्रवाद की लहर चली. इसका असर पोलैंड से लेकर ऑस्ट्रिया तक नज़र आया. इस दौरान यहां कई लोगों ने रूस के लोगों से अलग दिखाई देने के लिए ख़ुद को ‘यूक्रेनी’ बताना शुरू कर दिया लेकिन, 20 वीं सदी में रूस की क्रांति हुई और सोवियत संघ का गठन हुआ. इस दौरान ‘यूक्रेन से जुड़ी पहेली’ को नई शक्ल मिली। सोवियत नेता जोसेफ़ स्टालिन ने दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर पोलैंड से पश्चिमी यूक्रेन का अधिकार हासिल कर लिया। 1950 के दशक में मॉस्को ने क्राइमिया को यूक्रेन के हवाले कर दिया. ये सोवियत संघ का ही हिस्सा था. इस फ़ैसले के बाद भी रूस से गहरे संपर्क कायम रहे और ब्लैक सी में रूस का जो बेड़ा था, वो सांकेतिक रूप से इसकी पुष्टि करता था.
सोवियत सरकार ने यूक्रेन पर और ज़ोरदारी के साथ रूस का प्रभाव थोपने की कोशिश की. कई बार यूक्रेन को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही थी। 1930 के दशक में सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन के लाखों लोग स्टालिन की ओर से जबरन थोपे गए अकाल की वजह से मारे गए. इसके बाद स्टालिन ने वहां बड़ी संख्या में सोवियत लोगों को बसाया. इनमें से कई यूक्रेनी भाषा नहीं बोल पाते थे. इस इलाके से उनके संपर्क और संबंध भी बेहद सीमित थे. ये कोशिश पूर्वी इलाक़े को फिर से बसाने की थी। हालांकि, सांस्कृति रूप से सोवियत संघ कभी यूक्रेन पर आधिपत्य साबित नहीं कर सका। होस्किंग के मुताबिक केंद्र की ओर से आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य फ़ैसले भले ही थोपे जाते रहे लेकिन सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में यूक्रेन के पास एक ‘ख़ास स्वायत्तता’ थी। दबदबा भले ही रूसी भाषा का था लेकिन प्राइमरी स्कूल में बच्चे यूक्रेनी भाषा सीखते रहे. इस भाषा में कई किताबें छपी. ’20वीं सदी के दूसरे हिस्से में यूक्रेनी में शिक्षित लोगों के बीच एक मजबूत राष्ट्रवादी अभियान शुरू हुआ.। साल 1991 में सोवियत संघ बिखर गया और साल 1997 में रूस और यूक्रेन के बीच संधि हुई. इसके जरिए यूक्रेन की सीमाओं की अखंडता की पुष्टि हुई. लेकिन देश के अलग-अलग इलाकों में कुछ ऐसी खामियां रह गईं जिससे दरारें बनी रही हैं। यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में लोगों के रूस के साथ गहरे रिश्ते हैं. यहां रहने वाले लोग रूसी भाषा बोलते हैं और रुढिवादी हैं. यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में पश्चिमी देशों का प्रभाव नज़र आता है. पोलैंड और हंगरी का असर यहां दिखता है. यहां रहने वाले कैथलिक हैं और अपनी भाषा बोलते हैं। सपनों की खासियत यही है कि हर किसी के पास अपने लिए ख्वाब होता है. सपने देखने वालों में से कुछ अपने मूल की तरफ लौटना चाहते हैं तो कई दूसरे लोग आज़ाद रास्ते पर बढ़ना चाहते हैं।