मुकदमा, धमकियां, सदमा पॉस्को में दोषी

बाबा आसाराम बापू के खिलाफ जारी है एक पिता की 10 साल से लड़ाई


आसाराम का मुकदमा लड़ने और गुरू को बचाने के लिए कानून उद्योग से जुड़े एक से एक नामी गिरामी जिसमें राम जेठमलानी, सलमान खुर्शीद और यूयू ललित जैसे महंगे वकील आते रहे हैं.


रणघोष खास. ज्योति यादव दी प्रिंट की रिपोर्ट  शाहजहांपुर/यूपी से

पिछले 10 साल से चल रहे मुकदमों में भाग लेने, वकीलों के दस्तावेज़ों में डूब जाने और अपनी बेगुनाही साबित करने में दो लोगों ने अपनी ज़िंदगी के महत्वपूर्ण साल बिताए हैं.लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं है. इन दो में एक आसाराम हैं, जो गुजरात के 82-वर्षीय शक्तिशाली, सफेद वस्त्रधारी, दाढ़ी वाले, स्वयंभू ‘गुरू’ हैं — जिनके पास भक्ति, दान और प्रभुत्व का एक विशाल पंथ जैसा साम्राज्य है — जो 16- वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार का दोषी है. दूसरे हैं सिंह, वे आसाराम के पूर्व भक्त हैं, लेकिन वो उसी नाबालिग के पिता भी है. अब उनके जीवन का मिशन सिर्फ आसाराम को आजीवन जेल में रख कर उस बैरक की चाभियां कहीं फेंक देने का है.

अपनी बेटी के अधिकार और उसकी सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे, सिंह अब एंटीडिप्रेशन दवा रोज़ लेने लगे हैं, वे कहते हैं, “यह अब अदालती लड़ाई नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका बन गया है. हम हमेशा के लिए इसमें फंस गए हैं.”आसाराम बलात्कार, हत्या, भूमि अतिक्रमण और गवाहों से छेड़छाड़ जैसे कई मामलों में कोर्ट ले जाए गए हैं. जोधपुर में 2018 में नाबालिग से बलात्कार के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने और तब से आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम उच्च न्यायालयों में अपनी सजा के निलंबन के लिए लगातार अपील कर रहे हैं — लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. इस बार, उन्होंने 10 जुलाई को राजस्थान हाई कोर्ट का रुख किया और अपने एक आश्रम जाने के लिए 20 दिन की पैरोल की गुहार लगाई है.भारत में किसी प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु के खिलाफ कोई एक्शन लेना आसान नहीं रहा है और कोई भी ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाता है, क्योंकि ये आध्यात्मिक-औद्योगिक परिसर, सभी अर्थों में, धर्म, राजनीति, धन, बाहुबल और कभी-कभी भू-माफिया का मिला जुला भयानक रूप होते हैं. इसलिए, जब सिंह ने 2013 में अपनी बेटी के बलात्कार के बाद आसाराम के खिलाफ लड़ाई शुरू की, तो गुरु पंथ के अनुयायी सिंह के परिवार पर जवाबी हमलों के साथ, देश के सबसे शक्तिशाली वकीलों की एक सेना के साथ कोर्ट में उतर आए.

लेकिन निःसंदेह सिंह की साहसिक लड़ाई एक शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के मामले को कैसे लड़ना है, इसका एक खाका भी बन गया है, जो कानूनी, सामाजिक और वित्तीय — कई मोर्चों पर जबरदस्त रसूख रखता है. 61 साल की उम्र में वे उत्साहपूर्वक अपने परिवार की गोपनीयता की रक्षा करते हैं. हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज़ हुई मनोज वाजपेयी अभिनीत फिल्म सिर्फ एक ही बंदा काफी है, में सिंह के परिवार की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करती है. यह सिंह के वकील पीसी सोलंकी पर केंद्रित कानूनी लड़ाई को भी दर्शाती है.

शिकायत दर्ज करने के बाद, सिंह को अज्ञात लोगों से जान से मारने की धमकी देने वाले सैकड़ों फोन आए. उन लोगों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, उन पर अपने गुरु को बदनाम करने के लिए अपनी बेटी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया यही नहीं उन पर इस मामले को छोड़ने का तरह तरह से दबाव भी डाला गया. सिंह ने अपना फोन नंबर बदल लिया और अज्ञात नंबरों से आए कॉल को उठाना बंद कर दिया.

लेकिन फिर, चिट्ठियां आनी शुरू हो गईं

गुस्साए आसाराम के भक्त अक्सर उनकी बेटी के खिलाफ अभद्र भाषा वाली चिट्ठियां उनके दरवाजे पर फेंकते थे. अजनबी, उनके परिवहन व्यवसाय में रुचि रखने वाले ग्राहक होने का नाटक करते हुए, उन्हें डराने के लिए उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे, लेकिन सिंह ने हार नहीं मानी.उन पांच वर्षों में उनका ट्रक का बिजनेस पूरी तरह से बर्बाद हो गया और उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हुआ, गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं, उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों ने साथ देना छोड़ दिया और वो एक जुनूनी की तरह इस व्यक्ति का पर्दाफाश करने में जुट गए. ऐसा नहीं था कि सिर्फ उनकी 16-वर्षीय बेटी का पारिवारिक गुरू ने यौन शोषण किया था, बल्कि वह व्यक्तिगत रूप से ठगा हुआ भी महसूस कर रहे थे, ये उनके टूटे हुए विश्वास की भी कहानी है.सिंह कहते हैं, ”जब तक उन्होंने मेरी बेटी का यौन शोषण नहीं किया, तब तक हम उन्हें भगवान की तरह पूजते थे.” उन्होंने आगे कहा कि जब भी वह यूट्यूब पर आसाराम का कोई वीडियो देखते हैं तो उन्हें आज भी घृणा महसूस होती है. भले ही उन्होंने सभी बाधाओं के बावजूद 2018 में आसाराम को सजा दिलाने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी ये कानूनी लड़ाई अंतहीन है और जारी है. आसाराम के वफादार भक्तों के गुस्से के खिलाफ यह डेविड बनाम गोलियथ की लड़ाई रही है, जिन्होंने सिंह को जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपहरण, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के कई जवाबी मामलों में निशाना बनाया था. वे अपनी बेटी और अपने परिवार को निर्दोष साबित करने के लिए पिछले 10 वर्षों से एक अदालत से दूसरी अदालत में दौड़ रहे हैं.

सिंह की बेटी अब शादीशुदा है और अपने माता-पिता से दूर रहती हैं, सिंह अभी भी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में रहते हैं.सिंह ने दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में हाल ही में एक अन्य मामले में उनका प्रतिनिधित्व कर रही वकील गरिमा भारद्वाज के माध्यम से बात की, “यह मेरे खिलाफ आठवां मामला है, महाराज. मुझे पहले भी सात मामलों में बरी किया जा चुका है. मैं एक आदमी के खिलाफ लड़ रहा हूं.”सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक गठीला आदमी, जिसकी उपस्थिति शानदार थी, वे अदालत के कमरा नंबर 207 में खड़ा था, जिसके बगल में उत्तर प्रदेश के तीन पुलिसकर्मी थे. तीन घंटे के इंतज़ार और ऊपर-नीचे चक्कर लगाने के बाद, आख़िरकार अगली सुनवाई की तारीख हाथ में लेकर वे बाहर निकला.आसाराम के कट्टर भक्तों की दुनिया में यह अदालती तारीखों और धीमी गति से चलने वाली बहसों का एक अंतहीन चक्र रहा है – जो अंततः एक पिता की दृढ़ता बनाम विश्वास की लड़ाई में बदल गया.राजस्थान हाई कोर्ट में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ आसाराम की अपील पर अंतिम सुनवाई जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है. सिंह के सबसे बड़े बेटे ओमवीर* कहते हैं, ”अगर वह बाहर होता, तो हम जेल में होते.”

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