राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं
अपने माता-पिता के जीवन से जुड़ी संघर्ष की कहानियां
मेरा नाम काजल है। स्कूल में 10 वीं की छात्रा हूं। माता का नाम नीलम एवं पिता राजबीर सिंह है। माता-पिता के बारे में जितना लिखू उतना ही कम हे। यह मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटना है जब पहली बार माता-पिता ने बताया कि कैसे उन्होंने जिंदगी को जिम्मेदारियों के साथ संघर्षों से रिश्ता जोड़ते हुए आगे बढ़ाया। मां महज 5 वीं तो पिताजी 8 वीं तक ही स्कूल जा पाए। पिताजी मजदूर के तोर पर दिन रात मेहनत करते हैं ताकि हमारी पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आए। सुबह निकलते और शाम को आते हैं। मां घर को संभालती है। हमारा पूरा ध्यान पढ़ाई में रहे इसलिए वह हमसे काम भी नहीं कराती है। मेरे माता-पिता ने बचपन में गरीबी का दंश झेला है। उनका बचपन कब बड़ा होकर गुजर गया पता ही नहीं चला। दोनो की एक जैसी कहानी है। बचपन में खुशी क्या होती है। भरपेट भोजन और मिठाई किसी विशेष अवसर पर ही उन्हें नसीब होती थी। बचपन से ही परिवार को चलाने के लिए मजदूरी करने लग गए थे। जब हमने होश संभाला तो उन्हें संघर्ष करते हुए देखते आ रहे हैं। हमारी आदत सी पड़ गई थी इस तरह की दिनचर्या में। जब से माता-पिता के संघर्ष की कहानी की प्रेरणा स्कूल से मिली। उसके बाद हिम्मत जुटाकर बारी-बारी दोनों से उनके जीवन में जाना तो आंखों से आंसू में बहते चले गए। हे ईश्वर तेरा बहुत बहुत धन्यवाद तुने हमारी किसी ना किसी बहाने से आंखों खोल दी। अगर यह पहल शुरू नहीं होती तो हमें कभी अपने माता-पिता को इतनी करीब से जानने का अवसर नहीं मिलता और हम जिंदगी भर पश्चाताप में झुलसते रहते। मै नमन करती हूं मेरे शिक्षकों को जिन्होंने पढ़ाई के साथ साथ हमें बेहतर इंसान बनाने के लिए इस मुहिम के साथ जोड़ा। यह कहानी लिखने के बाद मेरे जीवन में मेरे माता-पिता के प्रति भगवान से ज्यादा सम्मान बढ़ गया है। इसे ज्यादा शब्दों में बयां नहीं कर सकती।